अपने आप को बचाना हैं तो कर्ज(Loan) लेने से बचें, भले ही कितना भी कम ब्याज या बिना ब्याज के मिल रहा हो !

120

अपने आप को बचाना हैं तो कर्ज लेने से बचें, भले ही कितना भी कम ब्याज या बिना ब्याज के मिल रहा हो ! उधार में हाथी खरीदने की आदत छोड़ें !


John Perkins ने एक Books लिखी Confessions Of An Economic Hit Man, वे लिखते हैं : किसी भी राष्ट्र को गुलाम बनाने के २ तरीके हैं। –

Loan

१. तलवार की धार से,
२. और दूसरा उसे कर्ज (Loan)के जाल में फंसाकर।-America के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एडम,
तलवार की धार से गुलाम बनाएँ गये लोग तो स्वाभाविक रूप से एक न एक दिन स्वतंत्र हो, ही जायेंगे,
जिन्हें कर्ज के बोझ तले गुलाम बनाया जाए वो ऐसे ही गुलामी की जंजीरों में उलझें रहेंगे,
उदाहरण यक्ष हैं कर्ज के बवंडर में फंसा देश,

संसाधन संपन्न किसी एक राष्ट्र को ढूंढो, उसे विश्व बैंक या आईएमएफ ( IMF ) से विकास के नाम पर विशाल ॠण प्रदान करा दो, पैसा लोगों को नहीं बल्कि विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनियों को जाता है भारत सरकार ने पहला कर्ज ( सन् १९९०, १९९१, व १९९२ के बीच में लिया था )

( IMF, WTO, विश्व व्यापार संगठन की )
एक-एक संधियाँ कितनी खतरनाक है यह आप सब जानते हैं,

( इक्वाडोर सन् १९९१ में )
जैम रोलदस ने इक्वाडोर के संसाधनों को लोगों की मदद करने के लिए इस्तेमाल करने का वायदा किया यह सुनिश्चित करने के लिए वह चुनाव लड़ा और वह अब तक के रिकोई मतों से राष्ट्रपति बना,

जॉन पर्किन्स ने उनसे कहाँ अगर तुम और तुम्हारा परिवार हमारे खेल खेलों तो ठीक है तुम बहुत अमीर बन सकते हो लेकिन तुम वो नीति अपनाओगे जो जनता से वादा किया था तो माफ कीजिएगा आपको मरना पडे़गा,

अंग्रेज जनता को गुलाम आशान्वित बनाते हैं बेंकर इससे विपरीत दिशा में काम करते हैं जनता को नहीं सत्ता हथियाने का काम करते हैं जनता खुद सत्ता के आगे स्वतः ही गुलामी में दस्तक देगी,

संसद एक बिल को पास करें।


समाधान हेतु,
१. भारत सरकार ही देश के लिए कर्जमुक्त पैसा बनाए / जारी करे ना कि निजी बैंक,

२. अंश रिजर्व बैंक प्रणाली १००% रिजर्व बैंकिंग बनाएँ जाए,

३. सट्टाबाजारी, ( Derivatives ) पूरी तरह से बंद हो,

४. अंतराष्ट्रीय व्यापार डॉलरमुक्त करके भारत को अमेरिका से मुक्त कराएँ,

५. अंग्रेज़ों के बनाएँ सारे काले कानून हटाएं जाए,

जब तक सारी लड़ाई भारत के भीतर लड़ी जायेगी तब तक कुछ नहीं होगा,

कारण साफ़ हैं बैंकर्स के पास खोने के लिए कुछ नहीं और पाने के लिए पूरा भारत
और भारतीयों को पाने के लिए कुछ नहीं,

अतः अपनी सुरक्षा बनीं रहेगी आने वाली पीढ़ी को उज्ज्वल भविष्य दे सके और मैं मानता हूं यह तो बहुत कुछ है देने के लिए,

जंग तो वही जीती जा सकती है जो दूसरे की सीमा में लड़ी जाये,

अपनी सीमा में तो बस आत्मरक्षा की ही बात की जा सकती है,

डर क्या होता है यह तो वही जानता है जिनके पास खोने को सारा जहां हैं पाने के लिए कुछ नहीं और दानवों के पास पाने के लिए सारा जहां हैं खोने के लिए कुछ नहीं,

भारत शुरू से ही मेहनतकश देश रहा है पूरें जीवन इसी में संघर्षरत हैं चाहें वो किसी भी काष्ट का किसी भी वर्ग का ही क्यों न हो ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी सुख-चैन से रहे यह देश आध्यात्मिक संत महात्माओं की धरोहर रहीं हैं और हमें गर्व है ऐसे देश पर,

काला धन का जो वास्तविक रूप से मुद्दा था वो काला धन बैंकर्स की रीढ की हड्डी बन गई थी सत्ता हथियाने में तख्तापलट मे वास्तव में अगर इस देश में काला धन आता तो बैंकर्स की क्षति में नुकसान दायक था यह जो आप पूंजीवादी+
साम्राज्यवादी+साम्यवादी ताकतें देख रहे हो ना मान लो सामाजिक तौर पर काला धन पूरा एक साथ भारत मैं आता तो फिर से विश्व स्तर पर एवं आर्थिक स्थिति में सुधार ही नहीं होता बल्कि पूरे विश्व पटल पर भारत पुनः पूंजीवादी शक्तिशाली देश बन जाता मात्र विदेश में रखा काला धन आ जाए तो इस देश में, इस बात को बैंकर्स अच्छे से जानते हैं और ऐसा वो कदा भी नहीं चाहते बेंकर,

Loan

जो भी पूंजी हैं वो सब कहाँ जाती है घुमती-घुमती इकट्ठा होकर बैंक में जमा होती है और बैंक किसके अधीन-अधीक्षक मे हैं यह अंतरगत्वा बताने की जरूरत नहीं उन्होंने विश्व स्तर पर ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया है अच्छे-अच्छे पढे़ लिखे लोगों का दिमाग चकरा जाता है,

बैंकर्स किंग सिस्टम वाले इसी फिराक में ताकते-फिरते हैं कैसे भी करके सारे पैसे बैंकों में कैसे लाए जाए इसका उदाहरण भी आप सबने देख लिया नोटबंदी में एक ही Order पर कतारों में खड़े करने वालो को ( The Great Gambler ) कह सकते हो,

ग्लोबल माफियाओं ने कच्ची शराब नहीं पी और नाही कच्ची गोटियाँ खेलीं १ मिनट के लिए ये सोच लेते हैं स्विस बैंकों मे जितना भी काला धन जमा है भारतीयों का
किसी भी तरह नेता को तलवार की नोंक झोंक से हांमी दे भी दे तो बैंकर्स इतनी आसानी से अपने हाथों से खेल को फिसलने नहीं देंगे उदाहरण मिल जायेगा ( पनामा पेपर में ) एक बात कहूँ असलियत में असली खेल के मालिक भी यही है और खेलने वाले भी यही हैं ,( हार तो असमंजस, असंभव है Don’t worry )

यहीं हीरो बनाते हैं और यहीं बचा के निकाल लेते हैं और यहीं बदनाम करके निष्कासित लात मारते हैं वो कहावत तो सुनी होगी ( काम का न खाज का दुश्मन भर अनाज का )

५% १०% भारत सरकार के कन्ट्रोल में हैं देश बाकि ९०% स्वाहा,
इस देश का स्वामी रोथ्सचाइल्ड लोभी।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here