अबीर-गुलाल से काशी की गलियां हुईं लाल पालकी पर सवार होकर गर्भगृह में विराजे शिव-पार्वती; बरसाने से लहंगा और सूरत सेआया खद्दर रंगभरी एकादशी पर काशीवासियों ने बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेली। पालकी में सवार मां गौरा और बाबा विश्वनाथ ने अपने भक्तों को राजसी स्वरूप में दर्शन दिया। इसके बाद देवी पार्वती और गणेश के साथ चिनार और अखरोट की लकड़ी से बनी रजत जड़ित पालकी पर प्रतिष्ठित करके बाबा की चल प्रतिमा काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में ले जाई गई। इस दौरान हर-हर महादेव के जयघोष से गलियां गूंज उठी।

पालकी में सवार होकर श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में विराजमान शिव-पार्वती ।
विश्वनाथ धाम में ढाई लाख भक्तों ने खेली होली मथुरा से आए अबीर-गुलाल को इतना उड़ाया गया कि महंत आवास से मंदिर प्रांगण तक (करीब 500 मीटर) गलियों की जमीन पर अबीर-गुलाल की परत जम गई। भक्तों ने गौरा और बाबा के धुन पर तांडव किए। इस दौरान पालकी को छूने पर रोक थी। पालकी यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं से संयम बरतने की अपील की गई। काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील कुमार वर्मा ने बताया कि सुबह से लेकर रात्रि 11:00 बजे तक करीब ढाई लाख श्रद्धालुओं ने बाबा के दर्शन पूजन किया।
राजशाही पगड़ी और मुकुट से राजसी श्रृंगार
गौना कार्यक्रम की शुरुआत बाबा के स्नान और पूजा के साथ भोर में साढ़े 3 बजे से शुरू हुई। बाबा विश्वनाथ और मां पार्वती की रजत चल प्रतिमा पर पंचगव्य और पंचामृत स्नान कराकर रुद्राभिषेक किया गया। सुबह पंचामृत स्नान कराकर रुद्राभिषेक किया गया। सुबह साढ़े 8 बजे से बाबा का राजसी श्रृंगार किया गया। बाबा ने राजशाही पगड़ी और महारानी पार्वती ने मुकुट धारण किया।
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रंगभरी एकादशी के दौरान जमकर अबीर और गुलाल की होली खेलीगई।
भूतभावन भगवान शंकर दूल्हा बनकर अपने बारातियों के साथ बुधवार देर शाम से अपने ससुराल (टेढ़ीनाम स्थित महंत आवास) में डेरा रहे। यहां पर उनकी और बारातियों की खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। फल, मेवा और मिश्रांबू की खास ठंडई से स्वागत किया गया। समय-समय पर पकवान परोसे गए।
गौरा के लिए बरसाने का लहंगा और बाबा के लिए सूरतसे खद्दर आया
बरसाने के लहंगे और आभूषणों में देवी पार्वती का शृंगार संजीव रत्न मिश्र ने किया। भगवान शंभू सूरत से आए खादी परिधान पहनाया गया। इसके बाद शिवगण और आम लोगों ने पालकी के दर्शन किए। बाबा के मस्तक पर बनारस की गंगा जमुनी तहजीब रेशमी पगड़ी के रूप में इठला रही थी। इस दौरान शिवांजलि संगीत महोत्सव हुआ। पंडित अमित त्रिवेदी के रुद्रनाथ बैंड की प्रस्तुतियां हुईं। वहीं पौने 4 बजे बाबा मां गौरा को पालकी में बिठाकर काशी विश्वनाथ मंदिर रवाना हुए।
\s\sयहां पर भोग आरती के बाद शिव विवाह का कार्यक्रम संपन्न हुआ। भक्तों की हर्ष ध्वनि के बीच शिव-पार्वती की चल रजत प्रतिमा को काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया गया और गुलाल की बौछार के बीच सप्तऋषि आरती की प्रक्रिया पूरी की गई। शृंगार और भोग आरती के बाद महंत आवास विशेष कक्ष में बाबा के शृंगार का दर्शन भक्तों के लिए खोला गया।
बाबा विश्वनाथ का उतारा गइ सप्तऋषि आरता।
शिवांजलि में संगीतकार पं. अमित शंकर त्रिवेदी की राग नटभैरव और बगड़ बम बम बगड़ बम बम पर सैकड़ों भक्तों को जमकर नचाया। इस दौरान हर तरफ से रंग बिरंगे अबीर गुलाल और गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा होती रही। पुनीत पागल बाबा ने उनकी रचना पागल पागल पर भक्तों ने जमकर ठुमके लगाए। इसी बीच आकाश और उनके साथियों ने भगवान श्रीकृष्ण राधा और शिव पार्वती की होली पर आधारित नृत्यमय झांकी प्रस्तुत कर भक्तों को भावविभोर कर दिया।
ऐसा लग रहा था जैसे की समूची काशी डमरू निनाद उमड़ी पड़ी हो
ऐसी भी स्थिति आई जब एक तरफ बाबा की रजत पालकी उठाने की तैयारी हो रही थी। दूसरी ओर भक्तों का रेला बाबा के दर्शन के लिए महंत आवास में प्रवेश करने की जद्दोजहद कर रहा था। डमरू दल ने थोड़ी-थोड़ी देर पर अपनी कला का प्रदर्शन किया। कुछ समय के लिए ऐसा माहौल बन गया मानो समूची काशी ही डमरू निनाद करने उमड़ पड़ी हो।
चंदन का बुरादा और फूलों से बनी अबीर की वर्षा की गई उनका जोश व्यवस्था पर भारी पड़ता दिखा। ऐसे में कुछ समय के लिए सांस्कृतिक अनुष्ठान शिवांजलि को रोकना भी पड़ा। सांगीतिक अनुष्ठान के दौरान चंदन का बुरादा और फूलों से बनी अबीर की वर्षा भी रह-रह कर की जाती रही।