एनकाउंटर स्पेशलिस्ट शाहिदा,0 जिनसे दूरभागते हैं आतंकी आतंकियों को मारने के लिए 3 दिन तक जंगलों में रहीं, ईरान में अलीनेजाद की क्रांति
सबसे पहले कहानी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट शाहिदा परवीन की
शाहिदा परवीन 1995 में पुलिस सब इंस्पेक्टर के तौर पर भर्ती हुईं थीं। स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में शामिल हुई वे पहली महिला कमांडो थी। 1997 से 2002 के बीच उन्होंने राजौरी और पुंछ जिलों में हिजबुल और लश्कर के कई खूंखार आतंकियों का सफाया किया।
महिला एनकाउंटर स्पेशलिस्ट की कहानी खुद शाहिदा की जबानी…..

चार साल की उम्र में पिता चल बसे, टीचिंग की फिरपुलिस में भर्ती हुई
जब मैं लगभग चार साल की थी तब पिता चल बसे थे। मैं छह भाई बहनों के परिवार में सबसे छोटी थी। लेकिन मां ने किसी की पढ़ाई नहीं छूटने दी । भाइयों के साथ मुझे भी पढ़ाया।
बाद में मैंने जम्मू में एक प्राइवेट स्कूल में टीचर के तौर पर काम शुरू किया। इस बीच सरकारी स्कूल में टीचर के जॉब का इंटरव्यू भी दिया, लेकिन बेमन से। मैं दुआ कर रही थी कि यह नौकरी मुझे न ही मिले।
फिर परिवार में किसी को बिना बताए पुलिस भर्ती का फार्म भर दिया। हालांकि मेरी मां को हमेशा से मेरी इच्छा के बारे में पता था । रमजान के दिनों में मैं सुबह-सुबह ग्राउंड में दौड़ने जाती थीं, लॉन्ग जम्प, हाई जम्प की प्रैक्टिस करती थी।
जो आतंकी निर्दोषों को मारते हैं, वो अल्लाह के बारे में कुछ नहीं जानते
पुलिस में भर्ती के बाद जीवन और मौत से नया साक्षात्कार हुआ। एक आतंकी हमले के बाद मैं अपने साथियों के साथ मौके पर पहुंची थी।
एक ही परिवार के छोटे बच्चों और औरतों तक की हत्या कर दी गई थी। पहली बार ऐसा भयानक दृश्य देखा था।
उस दिन मैंने घर आकर मां से कहा था- जिन्होंने निर्दोषों को मार डाला, वो अल्लाह के बारे में कुछ नहीं जानते थे।
मां ने कहा था- आतंकियों को सबक सिखाने में तुम्हारे हाथ कांपने नहीं चाहिए
मां ने कहा था- तुम मुल्क से, वर्दी से प्रेम करती हो तो ऐसे लोगों का सबक सिखाने में तुम्हारे हाथ कांपने नहीं चाहिए। और ऐसा ही हुआ।
जीवन के पहले ऑपरेशन के समय मुझे सूत्रों से खुफिया जानकारी मिली थी कि बड़ी संख्या में आतंकी एक गांव में मौजूद हैं। मैंने ऑपरेशन लॉन्च किया।
टीम के साथ घेराबंदी की, लेकिन लड़कों ने उत्साह में फायर कर दिया। और आतंकी भागने लगे। हमने पीछा किया… सैकड़ों राउंड गोलियां दोनों तरफ से चलीं। लेकिन वो भाग निकले।
मुझे लगा सीनियर्स क्या सोचेंगे। पहले ऑपरेशन में ही असफलता मिली थी। लेकिन सीनियर्स ने कहा कि अच्छी बात यह है कि तुम्हारी सूचना सही थी, यानी तुम्हारा नेटवर्क सही काम कर रहा है। इससे मुझे आत्मविश्वास मिला।
आउट ऑफ टर्न प्रमोशन से इंस्पेक्टर बनी
ऐसे ही जुलाई 2001 में गांव की एक लड़की ने एक ने घर में कुछ आतंकियों के छिपे होने की सूचना दी थी। हम पूरी तैयारी से मौके पर पहुंचे, लेकिन आतंकी भाग निकले।
हमने घर की तलाशी ली, पर कुछ नहीं मिला। मैंने देखा घर वाले डरे हुए थे और कुछ छुपा रहे हैं। मुझे शक हो गया कि आतंकी यहां थे। लगा कि वो पीछे खेतों की तरफ गए होंगे।
हमने मक्की के खेतों में तलाशी शुरू की। हम खेतों में थे और अचानक एक आतंकी ने फायर शुरू कर दिया। मैंने उसे ठिकाने लगा दिया।
इसके बाद साल भर एक के बाद एक कामयाब ऑपरेशंस किए। मुझे आउट ऑफ टर्न प्रमोशन देकर इंस्पेक्टर बना दिया गया।
आतंकियों के खिलाफ 3 दिन तक चला था ऑपरेशन
राष्ट्रपति पुलिस पदक दिया गया। हमारा एक ऑपरेशन तो तीन दिन तक चला था। हमारे साथी ऑपरेशन के दौरान खुद ही खाना बनाते थे। मैं हमेशा अपनी टीम को लीड करती थी। मैं 10 किमी बेहद विकट परिस्थितियों में चली हूं और घंटों फायरिंग करती रही हूं… और मैं कभी थकी नहीं। हमेशा टीम से पांच कदम आगे चलती थी।
(शाहिदा ने जैसा मोहित कंधारी को बताया)
अब ईरान में महिलाओं की आवाज को क्रांति बनाने वाली अलीनेजाद की कहानी….
सितंबर 2022 में महसा अमिनी की ईरान में पुलिसहिरासत में हत्या हो गई। आरोप था कि उन्होंने ठीक सेहिजाब नहीं पहना था। इसके बाद से महिलाएं अपनेबाल काट रही हैं और बिना हिजाब के बाहर निकल रहीं