कम्प्यूटर सिस्टम हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर दोनों से मिलकर पूर्ण होता है। हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर एक-दूसरे के पूरक हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि हार्डवेयर द्वारा कार्य कराने के लिए प्रयोगकर्ता को निर्देश देने होते हैं। ये निर्देश सॉफ्टवेयर की सहायता से दिए जाते हैं। हम पहले पढ़ चुके हैं कि सॉफ्टवेयर विभिन्न प्रकार के होते हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम, सिस्टम सॉफ्टवेयर की श्रेणी में आता है।
वास्तव में ऑपरेटिंग सिस्टम अनेक सॉफ्टवेयर्स का एक समूह है, जिसकी सहायता से कम्प्यूटर सिस्टम की समस्त गतिविधियों पर नियन्त्रण किया जा सकता है। इसका प्रमुख कार्य प्रयोगकर्ता तथा कम्प्यूटर सिस्टम के मध्य एक सम्बन्ध स्थापित करना है। कम्प्यूटर सिस्टम में हार्डवेयर को दिए गए निर्देश मशीनी भाषा में होते हैं। अतः ऑपरेटिंग सिस्टम प्रयोगकर्त्ता द्वारा प्रदत्त निर्देशों को हार्डवेयर के अनुरूप परिवर्तित कर देता है, जिसकी सहायता से हार्डवेयर सुचारु रूप से कार्य करता है।

अतः हम यह कह सकते हैं कि ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर सिस्टम तथा प्रयोगकर्त्ता के मध्य सेतु (Bridge ) के रूप में कार्य करता है। Operating system अन्य प्रोग्राम्स के क्रियान्वयन में भी सहायता करता है। यह एक से अधिक प्रयोगकर्ताओं या एक से अधिक प्रोग्राम्स के मध्य कम्प्यूटर के संसाधनों (Resources); जैसे- सी०पी०यू० मैमोरी, हार्ड डिस्क, फाइल्स इत्यादि को बाँटने का कार्य करता है।

यह निम्नलिखित कारणों से आवश्यक है-
(1) यह प्रयोगकर्त्ता तथा कम्प्यूटर सिस्टम के मध्य सेतु की भाँति कार्य करता है।
(2) कम्प्यूटर सिस्टम का स्विच ऑन (On) होते ही यह मैमोरी में स्वतः ही लोड हो जाता है।
(3) यह संसाधनों के प्रबन्धन का कार्य करता है।
(4) यह प्रयोगकर्त्ता के प्रोग्राम्स के संचालन में सहायता प्रदान करता है।
(5) यह इनपुट तथा आउटपुट की क्रियाओं पर नियन्त्रण रखता है।
(6) यह कम्प्यूटर सिस्टम को सुरक्षा भी प्रदान करता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य (Functions of Operating System) :-

ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं
(1) जॉब प्रबंधन (Job Management) :-
(2) प्रॉसेसर का प्रबन्धन (Processor Management) :-
प्रॉसेसर के प्रबन्धन में, ऑपरेटिंग सिस्टम एक समय में एक से अधिक चल रहे प्रोग्राम्स के क्रियान्वयन के लिए, एक ही प्रॉसेसर को विभिन्न प्रोग्राम्स के मध्य विभाजित (share) करने का कार्य करता है। यह इस बात का ध्यान रखता है कि किस समय, किसी प्रोग्राम को, प्रॉसेसर की आवश्यकता है या नहीं।
(3) प्राथमिक व द्वितीयक स्मृति का प्रबन्धन (Management of Primary and Secondary Memory) :-
(4) इनपुट तथा आउटपुट का प्रबन्धन (Input / Output Management ) :-
(5) डाटा तथा प्रोग्राम फाइल का प्रबन्धन (Data and Program File’s Management) :-
ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार (Types of Operating System) :-

Operating system को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-
(1) सिंगल यूज़र ऑपरेटिंग सिस्टम (Single User Operating System) —
(2) मल्टी यूज़र ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi User Operating System) —
सामान्य रूप से प्रचलित कुछ ऑपरेटिंग सिस्टम (Some Commonly Used Operating Systems) :-

(1) Windows 95, 98, 2000, ME, XP –
ये माइक्रोसॉफ्ट द्वारा बनाए गए डेस्कटॉप ऑपरेटि सिस्टम हैं, जो मुख्यत: PC (Personal Computer) के लिए प्रयुक्त होते हैं।
(2) DOS—
यह डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम (Disk Operating System) है, जो सिंगल यूज सिस्टम (Single User System) है।
(3) Unix—
यह मुख्यतः नेटवर्किंग के लिए प्रयुक्त होने वाला एक ऑपरेटिंग सिस्टम है।
(4 ) Linux —
यह यूनिक्स (Unix) का अधिक विकसित संस्करण है, जिसका प्रयोग यूनिक्स (Unix) के स्थान पर अधिकांशतः होता है।
(5) Windows NT —
यह माइक्रोसॉफ्ट द्वारा बनाया गया एक अन्य प्रकार का ऑपरेटिंग सिस्टम है, जो नेटवर्किंग की सुविधा प्रदान करता है।
(6) OS/2-
यह आई०बी०एम० (IBM) द्वारा बनाया गया ऑपरेटिंग सिस्टम है।
(7) Rhapsody-
यह यूनिक्स (Unix) पर आधारित ऑपरेटिंग सिस्टम है। उपर्युक्त ऑपरेटिंग सिस्टम्स में से डॉस, विण्डोज तथा लाइनक्स का संक्षिप्त परिचय निम्नवत है-
[DOS (Disk Operating System)] :-

यह एक प्रमुख operating system है। इसका पूरा नाम MS-DOS (Microsoft Disk Operating System) है। अगस्त, 1981 में माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन, अमेरिका ने इसे तैयार किया था, यह ऑपरेटिंग सिस्टम हार्ड डिस्क पर संगृहीत रहता है और कम्प्यूटर के ऑन होते ही सबसे पहले मैमोरी में संगृहीत हो जाता है।
DOS हमें कम्प्यूटर में फाइल्स, फोल्डर आदि पर नियन्त्रण रखने तथा विभिन्न संसाधनों; जैसे— प्रिण्टर, मॉनीटर, माउस, की-बोर्ड आदि को भी जाँचकर पूरे कम्प्यूटर पर नियन्त्रण करने में सहायता करता है। DOS एक सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम है अर्थात् एक समय पर DOS एक ही प्रयोगकर्त्ता (User) के निर्देशों का पालन करता है। DOs को यूनिटास्किंग सिस्टम (Unitasking System) भी कहते हैं क्योंकि एक समय में यह एक ही process को क्रियान्वित करता है।
DOS एक ऐसा operating system है जिसमें की-बोर्ड द्वारा टाइप करके कमाण्ड दी जाती है, अतः प्रयोगकर्त्ता के लिए यह आवश्यक है कि कमाण्ड लिखने से पूर्व उसका Syntax याद हो अर्थात् प्रयोगकर्त्ता को कमाण्ड तथा उसके साथ दिए जाने वाले arguments की पूरी जानकारी हो। क्योंकि सभी कार्य कमाण्ड की सहायता से किए जाते हैं, अत: DOS को Command Line Interface अथवा Character User Interface सिस्टम भी कहते हैं।

डॉस की कार्य-प्रणाली (Functioning of DOS) :-
DOS के अन्दर कुछ ऐसे मौलिक नियम या निर्देश निहित होते हैं, जो सभी प्रोग्राम्स को मानने पड़ते हैं।
DOS का कार्य कम्प्यूटर ON करने के तुरन्त बाद प्रारम्भ हो जाता है। जैसे ही हम कम्प्यूटर ON करते हैं, कम्प्यूटर यह जाँच करता है कि उसके सभी आन्तरिक उपकरण (Internal Devices); जैसे— रैम, रॉम, विभिन्न संलग्नक यन्त्र, जैसे—माउस, मॉनीटर, की-बोर्ड आदि ठीक से काम रहे हैं अथाब हो जाने के बाद ऑपरेटिंग सिस्टम स्वतः लोड हो जाता है। डॉस सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के मध्य सम्बन्ध स्थापित करता है। डॉस सभी कार्यों को स्वयं नहीं कर सकता। कुछ कार्य यह स्वयं करता है तथा कुछ कार्य इसके द्वारा कराए जाते हैं।
DOS द्वारा स्वयं किए गए कार्य (Functions performed by DOS itself) :-
(1) सी०पी०यू० और मैमोरी जैसे हार्डवेयर के संचालन पर नियन्त्रण।
(2) यह निर्धारित करना कि किस प्रोग्राम के लिए कितनी मैमोरी चाहिए व उसके लिए मैमोरी उपलब्ध कराना।
(3) इनपुट डिवाइस से सूचना प्राप्त करना व उसको मॉनीटर पर प्रदर्शित करना।
(4) संलग्नक यन्त्र (Peripheral Devices); जैसे—प्रिण्टर आदि के संचालन को नियन्त्रित करना।
डॉस की सहायता द्वारा किए जाने वाले कार्य (Functions performed with the help of DOS) :-
(1) नई फाइल्स का निर्माण करना, पुरानी फाइल्स की समाप्ति व फाइल्स को नया नाम
(2) डिस्क की क्षमता को दुगनी करना।
(3) नई फ्लॉपी डिस्क को फॉर्मेट करना, अर्थात् उपयोग हेतु तैयार करना।
(4) डिस्क में संचित (Stored) फाइल्स की सूची (List) प्राप्त करना।
(5) डिस्क की संचित फाइल्स को पुनः संगठित (Reorganize) करना।
(6) हार्ड डिस्क से फ्लॉपी डिस्क पर फाइलों को स्थानान्तरित करना ।
(7) वाइरस (Virus) की खोज करना और उसको नष्ट करना।
विण्डोज ऑपरेटिंग सिस्टम (Windows Operating System) :-
विण्डोज ऑपरेटिंग सिस्टम भी माइक्रोसॉफ्ट कार्पोरेशन द्वारा बनाया गया है। सन् 1995 में release किए गए Windows 95 ऑपरेटिंग सिस्टम ने कम्प्यूटर जगत में अभूतपूर्व क्रान्ति ला दी। Windows 95 के अलावा Windows ऑपरेटिंग सिस्टम के अन्य वर्जन Windows 98, ME, 2000, XP तथा Windows NT हैं।विण्डोज ऑपरेटिंग सिस्टम की प्रमुख विशेषता Graphical User Interface को सपोर्ट करना है। इसका अर्थ यह है कि DOS के विपरीत Windows ऑपरेटिंग सिस्टम में ग्राफिकल आइकन तथा माउस का प्रयोग किया जाता है।
यह Interface प्रयोगकर्ता के लिए अत्यन्त आसान है तथा प्रयोगकर्ता को कमाण्ड याद करने की आवश्यकता नहीं होती है। जिस प्रकार DOS में कमाण्ड की सहायता से कार्य किए जाते हैं विण्डोज ऑपरेटिंग सिस्टम में वही कार्य माउस द्वारा क्लिक करके सम्पादित किए जाते हैं।विण्डोज ऑपरेटिंग सिस्टम के कुछ वर्जन, 74 – 95 98, ME सिंगल यूजर, यूनिटास्किंग सिस्टम । तथा अन्य कुछ वर्जन; जैसे – Windows NT, 2000 मल्टीयूजर एवं मल्टीटास्किंग सिस्टम हैं।

लाइनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम (Linux Operating System) :-
लाइनक्स 32-बिट का ऑपरेटिंग सिस्टम है। overline 48 एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम है, जो व्यावसायिक कार्यों, शिक्षा तथा व्यक्तिगत कार्यों के लिए समान रूप से कार्य कर सकता है। इसकी दूसरी मुख्य विशेषता इसका मुक्त (free) होना है। आज इण्टरनेट के माध्यम से कई स्रोतों द्वारा, न्हें डिस्ट्रीब्यूशन कहते हैं, पूरी दुनिया hat 7 लाइनक्स उपलब्ध है। लाइनक्स एक सशक्त और दक्ष ऑपरेटिंग सिस्टम के रूप में सामने आया है। यह घर के पर्सनल कम्प्यूटर से लेकर कॉरपोरेट जगत की जरूरतों को पूरा करने में पूर्णतः सक्षम है।
लाइनक्स का इतिहास (History of Linux) :-
लाइनक्स, यूनिक्स का ही एक संस्करण है, जोकि मुक्त (free) है। इसे फिनलैण्ड में हेलसिंकी विश्वविद्यालय के लाइनस टॉरवाल्ड्स (Linus Torvalds) ने अनेक यूनिक्स प्रोग्रामर्स की सहायता से बनाया था। यह विभिन्न प्लेटफार्मों पर आसानी से कार्य करने में सक्षम था (विशेष रूप से Intel 80386 तथा उससे उन्नत प्रॉसेसर्स पर)। बाद में लाइनक्स के विभिन्न स्वरूप; जैसे—Red Hat, Debian, Trinux आदि बाजार में आए।
1970 के दशक में बनाया गया यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम अपने उन्नत गुणों के कारण एक प्रचलित सिस्टम था। हालांकि इसका इन्टरफेस अधिक अच्छा नहीं था, समय के साथ-साथ यूनिक्स की लोपता बढ़ती गई। यूनिक्स के अनेक संस्करण (Versions) बाजार में उपलब्ध हैं, जो पर्सनल कम्प्यूटर से लेकर सुपरकम्प्यूटर तक के लिए कार्य कर सकते हैं। परन्तु यूनिक्स के अधिकांश संस्करण (Versions) महँगे हैं।
लाइनक्स की विशेषताएँ (Features of Linux) :-
लाइनक्स में यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम की समस्त खूबियाँ तो हैं ही, साथ ही कई अतिरिक्त विशेषताएँ भी हैं।लाइनक्स एक पूर्ण मल्टीटास्किंग, मल्टीयूजर, ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसका तात्पर्य यह है कि एक से अधिक यूजर एक ही सिस्टम पर लॉग-इन (Login) कर सकते हैं तथा उस पर साथ-साथ अनेक प्रोग्राम चला सकते हैं। लाइनक्स विभिन्न प्रकार के फाइल सिस्टमों पर कार्य कर सकता है।
यह MS-DOS, Windows 95, Unix आदि ऑपरेटिंग सिस्टमों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले फाइल सिस्टमों के अनुरूप अपने आप को ढाल लेता है।लाइनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम TCP/IP प्रोटोकॉल का पालन करता है। यह प्रोटोकॉल ऐसे सिद्धान्तों पर कार्य करती है, जिसकी सहायता से कोई भी कम्प्यूटर संसार के सबसे विशाल नेटवर्क इण्टरनेट से जुड़ सकता है।
इसके अलावा, यह IPS/SPX प्रोटोकॉल के द्वारा नॉवेल नेटवेयर तथा अन्य माध्यमों से Windows तथा मैकिनटॉश कम्प्यूटर सिस्टमों से जुड़ सकता है।लाइनक्स प्रोग्रामिंग के लिए अनेक Shell का प्रयोग कर सकता है; उदाहरणार्थ-Csh, Bourne Shell, Bash आदि।
[ नोट — Shell एक विशेष प्रोग्राम होता है जो प्रयोगकर्त्ता द्वारा दी गई कमाण्ड्स को पढ़ सकता है। तथा क्रियान्वित कर सकता है । ]
लाइनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ हम कम्प्यूटर में अन्य ऑपरेटिंग सिस्टम, जैसे-डॉस, विण्डोज, यूनिक्स आदि भी चला सकते हैं।
लाइनक्स हेतु आवश्यक हार्डवेयर (Required Hardware for Linux) :-
लाइनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम को चलाने के लिए निम्नलिखित हार्डवेयर की आवश्यकता होती है-CPU – 80386 या उन्नत संस्करण RAM – 16 MB तथा अधिक हार्ड डिस्क – 20 MB तथा अधिकमॉनीटर – CGA, VGA तथा अन्य विकसित प्रकार।
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