कम्प्यूटर पर कार्य करने के लिए हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर, दोनों की आवश्यकता होती हैं। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक होते हैं। ये आपस में एक-दूसरे से इस प्रकार सम्बन्धित होते हैं कि एक के बिना दूसरा अनुपयोगी हो जाता है। इनका विस्तृत विवरण निम्नलिखित है-
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हार्डवेयर (Hardware) :-
कम्प्यूटर के जिस भाग को हम देख या छू सकते हैं, उसे ‘हार्डवेयर’ कहते हैं। कम्प्यूटर से जुड़ी इस प्रकार की सभी डिवाइस हार्डवेयर कहलाती हैं, जैसे-की-बोर्ड (Keyboard), मॉनीटर (Monitor), हार्ड- डिस्क, मदर-बोर्ड आदि।
सॉफ्टवेयर (Software) :-
सॉफ्टवेयर उन प्रोग्राम्स (निर्देशों के सामूहिक स्वरूप) को कहते है, जिन्हें हार्डवेयर (कम्प्यूटर) पर चला सकते हैं। यह क्रमबद्ध निर्देशों (Commands) का समूह होता है। इसके द्वारा किसी विशिष्ट कार्य को पूर्ण किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, पत्र लिखने (Type) के लिए ‘माइक्रोसॉफ्ट वर्ड’ (Microsoft Word) का प्रयोग किया जाता है, जबकि लेखांकन (Accountancy) कार्य के लिए ‘टैली’ (Tally) का। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि सॉफ्टवेयर मनुष्य और कम्प्यूटर के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने का माध्यम होते हैं। सॉफ्टवेयर के प्रकार के होते हैं।
(1) सिस्टम सॉफ्टवेयर (System Software) :-
सिस्टम सॉफ्टवेयर एक या एक से अधिक प्रोग्राम्स का समूह होता है, जिसका निर्माण कम्प्यूटर पर नियन्त्रण रखने के लिए किया जाता है। इसके द्वारा हम कम्प्यूटर को सरलतापूर्वक तथा अच्छी प्रकार से चला सकते हैं। इसका प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। यह आकार में बहुत बड़ा तथा संरचना में अत्यधिक जटिल होता है, जिस कारण इसके निर्माण के लिए कम्प्यूटर की संरचना का ज्ञान होना अति आवश्यक है।
इसके अन्तर्गत सभी ऑपरेटिंग सिस्टम, भाषा अनुवादक (Language Translator) वडी॰बी॰एम॰एस॰ (DBMS), ड्राइवर्स (Drivers) तथा सिस्टम टेस्टिंग सॉफ्टवेयर आदि आते हैं।
प्रकार (Types)—सिस्टम सॉफ्टवेयर विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जैसे—
(क) अनुवादक (Translator),
(ख) ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System)।
(क) अनुवादक (Translator) —
अनुवादक वे प्रोग्राम होते हैं, जो किसी कम्प्यूटर भाषा में लिखे प्रोग्राम को मशीनी भाषा (Machine Language) में Hands का कार्य करते हैं। कम्प्यूटर भाषा को मशीनी भाषा में बदलने के लिए, तीन प्रकार के भाषा अनुवादक उपलब्ध हैं-
(i) असेम्बलर (Assembler),
(ii) इन्टरप्रेटर (Interpreter)
(iii) कम्पाइलर (Compiler)।
(i) असेम्बलर (Assembler) :-
यह अनुवादक असेम्बली भाषा में लिखे प्रोग्राम को मशीनी भाषा में बदलने के काम आता हैं। असेम्बलर असेम्बली भाषा में लिखे स्रोत प्रोग्राम (Source Program) को इनपुट के रूप में प्राप्त कर, मशीनी भाषा में लिखे प्रोग्राम (जिसको कि Object Program कहते हैं) को आउटपुट के रूप में देता है।
(ii) इन्टरप्रेटर (Interpreter) :-
इन्टरप्रेटर एक अनुवादक प्रोग्राम है, जिसका प्रयोग उच्च स्तरीय भाषा [High Level Language (HLL)) को मशीनी भाषा में बदलने के लिए किया जाता है। यह HLL में लिखे प्रोग्राम के एक कथन पर क्रमवार कार्य करता है तथा उसको मशीनी भाषा में अनुवादित कर उसका क्रियान्वयन (execution) करता है।
जब एक कथन का क्रियान्वयन (execution) हो जाता है, तब यह इससे अगले कथन पर कार्य करता है और उसका मशीनी भाषा में अनुवाद करता है तथा उसका क्रियान्वयन (execution) करता है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक कि प्रोग्राम का अन्त नहीं हो जाता। यदि इस क्रिया के अन्तर्गत, किसी कथन में कोई त्रुटि (error) आ जाती है तो यह कथन का अनुवाद करने व क्रियान्वित (execute) करने की क्रिया को वहीं रोककर, प्रोग्रामर को पहले इस त्रुटि को दूर करने (सही करने) के लिए कहता है।
यह तब तक आगे नहीं बढ़ता, जब तक कि प्रोग्रामर उस त्रुटि को दूर न कर दे।
(iii) कम्पाइलर (Compiler) –
यह एक अन्य प्रकार का अनुवादक प्रोग्राम (Translator Program) है, जो HLL को मशीनी भाषा में बदलता है। यह HLL में लिखे प्रोग्राम के एक-एक कथन को अनुवादित (translate) व क्रियान्वित (execute) न करके, सम्पूर्ण प्रोग्राम को एक ही बार में, मशीनी भाषा में अनुवादित करता है। यदि प्रोग्राम में कहीं कोई त्रुटि होती है तो यह प्रोग्राम की त्रुटियों की एक सूची (list) प्रोग्रामर के समक्ष प्रदर्शित कर देता है।
अनुवादन-क्रिया के माध्यम से यह स्रोत प्रोग्राम (Source Program—HLL में लिखे प्रोग्राम) के तुल्य ऑब्जेक्ट प्रोग्राम (Object Program) को बनाता है जिसको Object फाइल कहते हैं।
(ख) ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System) –
यह एक विशेष प्रकार का प्रोग्राम होता है, जो कम्प्यूटर के समस्त स्रोतों पर नियन्त्रण रखता है तथा उनका प्रबन्धन करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System) वह प्रोग्राम होता है, जो कम्प्यूटर का स्विच ऑन (On) होते ही, कम्प्युटर मैमोरी में लोड (load) हो जाता है तथा कम्प्यूटर की समस्त क्रियाओं को नियन्त्रित करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम ही वह प्रोग्राम है, जो कम्प्यूटर तथा प्रयोगकर्त्ता के मध्य की भाँति कार्य कर, इनके बीच में सम्बन्ध स्थापित करता है।
(2) एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software) :-
एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर एक या एक से अधिक प्रोग्राम्स का ऐसा समूह होता है, जिसको किसी विशेष कार्य के सम्पादन के लिए बनाया जाता है। इनका प्रयोग सामान्य तथा सीमित होता है। इनका प्रयोग सिस्टम सॉफ्टेवयर के साथ ही किया जाता है। इनके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के प्रोग्राम आते हैं, जो या तो प्रयोगकर्त्ता द्वारा बनाए जाते हैं या बने-बनाए (Readymade) बाजार में उपलब्ध होते हैं।
इनका एक उदाहरण-पे-रोल पैकेज (Pay-roll Package) है, जिसका प्रयोग प्रत्येक महीने पे-स्लिप्स (Pay-slips) आदि बनाने में किया जाता है।
इनके अन्य उदाहरण हैं-वर्ड प्रोसेसर प्रोग्राम (Word Processor Program), स्प्रेडशीट (Spread sheet), डेस्क टॉप पब्लिशिंग (Desk Top Publishing), मेल प्रोग्राम (Mail Program), डाटा एन्ट्री (Data Entry), ड्राइंग या सी०ए०डी० प्रोग्राम (Drawing or CAD Program), फाइल स्थानान्तरण प्रोग्राम (File Transfer Program), डेवलपमेंट टूल (Development Tool), पेन्ट प्रोग्राम (Paint Program) आदि।
प्रकार (Types)—एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर को मुख्यतः दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-
(क) यूज़र डेवलप्ड या कस्टमाइज्ड एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (User Developed or Customized Application Software)
(ख) स्टैन्डर्ड पैकेज या स्टैन्डर्ड एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (Standard Package or Standard Application Software)
(क) यूज़र डेवलप्ड या कस्टमाइज्ड एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (User Developed or Customized Application Software) :-
हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर तथा प्रयोगकर्त्ता के मध्य सम्बन्ध
ये वे एप्लिकेशन प्रोग्राम हैं जिनको प्रयोगकर्ता के किसी विशेष कार्य के लिए, स्वयं प्रयोगकर्ता या प्रोग्रामर द्वारा बनाया जाता है। इनका निर्माण वर्तमान समय में उपलब्ध प्रोग्रामिंग भाषाओं में से किसी भाषा में तथा इनके कार्य के आधार पर किया जाता है। इनका एक प्रमुख उदाहरण पेरोल (Pay-roll) है।
(ख) स्टैन्डर्ड पैकेज या स्टैन्डर्ड एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (Standard Package or Standard Application Software) :
इन प्रोग्राम्स का निर्माण किसी एक प्रयोगकर्त्ता की आवश्यकता को ध्यान में न रखकर सामान्यतः सभी (या बहुत से) प्रयोगकर्त्ताओं की आवश्यकता को ध्यान में रखकर किया जाता है। इनका निर्माण सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ निर्माताओं के द्वारा किया जाता है।
इनके उदाहरण एम०एस० ऑफिस (MS-Office), वर्डस्टार (WordStar), टैली (Tally) आदि हैं।
3) यूटिलिटी सॉफ्टवेयर (Utility Software or Service Programs) :-
ये विशेष प्रकार के प्रोग्राम होते हैं, जिनको कम्प्यूटर अथवा कम्प्यूटर से जुड़े अवयवों की मरम्मत या रख-रखाव के लिए बनाया जाता है। इनके प्रयोग से कम्प्यूटर को सरलतापूर्वक तथा अच्छे ढंग से चलाया जा सकता है। ये सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक नहीं होते हैं अर्थात् इनके बिना भी कम्प्यूटर को चलाया जा सकता है। इनको सर्विस प्रोग्राम (Service Program) भी कहते हैं।
ये मुख्यतः अन्य प्रोग्राम्स में से त्रुटि हटाने (De-bugging), टेक्स्ट का सम्पादन (Editing) करने, डाटा आदि को किसी विशेष क्रम में व्यवस्थित करने तथा डाटा को आगम/निर्गम युक्ति (Input / Output से कहीं और भेजने आदि में प्रयुक्त होते हैं। इनके उदाहरण अग्रलिखित हैं-
(i) डिस्क डिफ्रैगमेंटर (Disk Defragmenter)
,(ii) वायरस स्कैनर एवं रिमूवर (Virus Scanner and Remover)
(iii) टेक्स्ट सम्पादन (Text Editing)
(iv) डीबगिंग टूल (De-bugging Tool),
(v) सोर्ट एण्ड मर्ज (Sort and Merge),
(vi) फाइल का रख-रखाव (File Maintenance) आदि ।
उपर्युक्त यूटिलिटी सॉफ्टवेयर में दो प्रोग्राम प्रमुख हैं जो निम्नलिखित हैं-
(क) डिस्क डिफ्रैगमेंटर (Disk Defragmenter) :-
सामान्यतया डिस्क पर जहाँ भी स्थान होता है, वहीं पर कम्प्यूटर फाइलों को संगृहीत कर देता है। जब स्थान कम पड़ जाता है तो कम्प्यूटर फाइल के अन्य भागों को, डिस्क के अलग स्थान पर संगृहीत कर देता है। इस प्रकार से एक फाइल डिस्क पर बहुत से टुकड़ों में संगृहीत हो सकती है। जब कम्प्यूटर द्वारा संगृहीत फाइल को पढ़ा जाता है तो इसके बहुत से टुकड़े होने के कारण, हार्ड डिस्क के हैड को बहुत तेजी से कार्य करना पड़ता है, जिस कारण इसमें काफी समय लगता है।
डिस्क डिफ्रैगमेंटर (Disk Defragmenter) एक प्रोग्राम है, जो फाइलों के टुकड़ों को डिस्क पर क्रमवार लगाने की कोशिश करता है। इससे कम्प्यूटर की गति तेज हो जाती है।
(ख) वायरस स्कैनर एवं रिमूवर (Virus Scanner and Remover )—
वायरस स्कैनर एवं रिमूवर वे प्रोग्राम होते हैं, जो हमारे कम्प्यूटर में वायरस को तलाश कर उसे समाप्त करने का कार्य करते हैं। वायरस बायोलॉजिकल वायरस न होकर, कुछ विशेष प्रोग्राम होते हैं, जिनके द्वारा अनेक प्रकार की हानियों का सामना भी करना पड़ जाता है। सर्वप्रथम वायरस का निर्माण, पाकिस्तान में किया गया था।
वायरस द्वारा हमारे कम्प्यूटर के संक्रमित होने की सम्भावना उस समय रहती है जब हम किसी ऐसी फ्लॉपी या सी०डी० को अपने कम्प्यूटर में लगाते हैं जिसमें वायरस हो या हम इन्टरनेट (Internet) पर कार्य कर रहे हों।
वायरस स्कैनर (Virus Scanner) प्रोग्राम विभिन्न प्रकार के वायरस को कम्प्यूटर में तलाश करता है तथा वायरस रिमूवर इन वायरस को नष्ट करता है। सामान्यतः वायरस स्कैनर व वायरस रिमूवर अलग-अलग प्रोग्राम होते हैं, परन्तु कुछ प्रोग्राम ऐसे भी होते हैं, जो वायरस स्कैनिंग व वायरस रिमूविंग की सुविधा एक साथ प्रदान करते हैं।
दिल्ली पुलिस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्टर लगाने के आरोप में 6 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। इस संबंध में 100 FIR दर्ज की हैं।
बस्ती जिले के सभी 119 पंजीकृत अल्ट्रासाउंड केंद्रों की जांच की जायेगी। तहसील के एसडीएम जांच संबंधित टीम का नेतृत्व करेंगे। सीएमओ को डीएम ने आदेश दिया है कि टीम में एक डॉक्टर और एक जिला स्तरीय अधिकारी शामिल किए जाएंगे। उन्होंने सीडीओ, एसडीएम डीडीओ, सीआरओ, पीडी व अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को टीम में स्थान देने के लिए कहा है।
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