कासगंज में मरे चंदन का न चौक, न नौकरी: मां बोलीं- जिसके लिए मरा, वही पार्टी भूली; पिता बोले- लोग मजाक उड़ाते है ‘वो तो योगीजी और BJP का भक्त था। 2017 में योगी जब मुख्यमंत्री बने, तो संतों का भंडारा किया था। उस दिन भी (26 जनवरी 2018) खीर बनाने के लिए दूध लाया था, खीर तो बनी, लेकिन वो खाने के लिए नहीं लौटा।’ कासगंज दंगों में मारे गए चंदन गुप्ता की मां संगीता ये बताते हुए रोने लगती हैं।
फिर कहती हैं- ‘उसके नाम पर चौक बनाने का वादा था, बना भी। 5 साल से मूर्ति लगी है, ढकी हुई है। किसी नेता को फुर्सत नहीं कि उद्घाटन कर दें। उसकी मौत की बरसी पर हमें वहां दीया तक नहीं जलाने देते। बेटी को सरकारी नौकरी दी थी, 6 महीने बाद ही निकाल दिया। अब किसी को याद नहीं चंदन कौन था, किसके लिए मर गया?’
आखिर चंदन गुप्ता था कौन
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़ा चंदन गुप्ता मोदी-योगी का कट्टर समर्थक था । 26 जनवरी 2018 की सुबह 9 बजे यूपी के कासगंज में विश्व हिंदू परिषद, ABVP और हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता करीब 100 मोटरसाइकिलों पर तिरंगा और भगवा झंडा लेकर निकले। चंदन गुप्ता भी इसी भीड़ में था। प्रशासन ने यात्रा निकालने की इजाजत नहीं दी थी, लेकिन ये लोग नहीं माने। छोटी-छोटी गलियों वाले कासगंज कोतवाली इलाके में घुस गए। ये लोग मुस्लिम आबादी वाले बड्डूनगर की एक गली से गुजरने की जिद करने लगे। वहां स्थानीय लोग पहले से गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम कर रहे थे। नारेबाजी शुरू हो गई, माहौल बिगड़ा और दोनों तरफ से पथराव शुरू हो गया। एक गोली चली, जो सीधे चंदन को लगी। उसे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वो बच नहीं पाया। मौत की खबर फैलते ही पूरे कासगंज में दंगे शुरू हो गए। 2 मुस्लिम युवक भी बुरी तरह घायल हुए।
चंदन की मौत के बाद कासगंज में तीन दिन तक हालात इतने खराब रहे कि प्रशासन को इंटरनेट बंद करना पड़ा। मुसलमानों की दुकानें जलाने की बातें भी सामने आई थीं। ये दंगे एक हफ्ते तक चले। चंदन की हत्या के मामले में सलीम, वसीम और नसीम आरोपी हैं। अब तीनों जमानत पर बाहर हैं। चंदन के परिवार से तीन वादे किए गए थे, जिनमें से सिर्फ मुआवजे का वादा पूरा हुआ है।
पिता बोले- चंदन तो योगीजी का समर्थक था, लेकिन हमारी कोई नहीं सुनता
चंदन की मौत को 5 साल गुजर चुके हैं। कासगंज की गलियों को अब न कोई तिरंगा यात्रा याद है और न ही चंदन गुप्ता। हर 26 जनवरी पर प्रशासन अलर्ट जरूर रहता है, लेकिन बाकी सब नॉर्मल है। कासगंज में नदरई गेट मोहल्ले की शिवालय वाली गली में चंदन का घर है। 5 साल पहले यहां हजारों की भीड़ थी, नेताओं का आना-जाना था, लेकिन अब ये सुनसान है।
घर का वो कमरा, जहां 27 जनवरी को चंदन का शव रखा था, अब सरकारी गल्ले की दुकान में बदल गया है। ये दुकान चंदन के बड़े भाई की है। मैं घर में दाखिल होता हूं, तो अस्पताल में काम करने वाले चंदन के पिता सुशील गुप्ता भी लौट आते हैं। मुझे बाहर के कमरे में एक मिनट रुकने को कहा जाता है। अंदर जाने पर बरामदे में सोफे पर पूरा परिवार बैठा नजर आता है। चंदन के बड़े भाई के बच्चे बरामदे में खेल रहे हैं।
मेरे कुछ पूछने से पहले ही चंदन के पिता बताने लगते हैं- ‘वो तो उस दिन सुबह-सुबह दूध लेकर आया था। मां से बोला खीर बना देना, तिरंगा यात्रा के बाद दोस्तों के साथ लौटूंगा। फिर लौटा ही नहीं । ‘
ये कहते हुए उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। खुद को संभालते हुए कहते हैं- ‘चंदन तो महाराज जी (योगी आदित्यनाथ) का समर्थक था । मैं खुद 1984 से RSS से जुड़ा हूं। इस सबके बावजूद मुआवजे के अलावा कोई वादा नहीं निभाया गया।’
‘वो मुझसे बात कर रहा था, पीछे धमाका हुआ फिर उसकी लाश आई’

सुशील गुप्ता मुझे उस दिन की कहानी सुना रहे थे, तो सामने तखत पर बैठी चंदन की मां संगीता उसकी फोटो दिखाते हुए रोने लगती हैं। मैं फिर कुछ नहीं पूछता, वे खुद ही कहने लगती हैं- ‘उस दिन दंगे होने की खबर जैसे ही मुझे मिली, मैंने सबसे पहले चंदन को ही फोन किया। मेरा जी घबरा रहा था, लग रहा था उसके साथ कुछ गलत हुआ है। सिर्फ एक बार घंटी बजी और उसने फोन उठा लिया। मैंने कहा कि लल्ला जल्दी आ जा। माहौल बिगड़ रहा है। पीछे से एक धमाके की आवाज आई, शायद गोली चली थी। फोन कट गया, उसकी आवाज आखिरी बार उसी दिन सुनी थी। ‘ बताते-बताते संगीता रोने लगती हैं, मैं उन्हें चुप कराने की कोशिश करता हूं। चंदन के पिता भी उन्हें दिलासा देते हैं। कुछ देर सब चुप बैठे रहते हैं, संगीता फिर बोलती हैं- ‘योगीजी CM बने तो संतों को खाना खिलाया, उन्हें नए कपड़े दिलाए थे। अब उसे याद करने वाला कोई नहीं। हम बहुत अपमानित महसूस करते हैं। ये घर कभी-कभी जेल जैसा लगता है। न तो चंदन चौक बनाया, न ही कोई सुनवाई हुई। जॉब की तो हम भूल ही गए।’
