ग्लोबल वार्मिंग के क्या कारण है?

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ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में सूखा और बाढ़ जैसे की घटनाएँ बढ़ेंगी और मौसम का मिज़ाज बुरी तरह बिगड़ा हुआ दिखेगा।

इसका असर दिखने भी लगा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं और रेगिस्तान दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि इसके पीछे तेज़ी से बढ़ता हुआ औद्योगीकरण है, और जंगलों की कटाई से जंगलों का तेज़ी से कम होना है।

पेट्रोलियम पदार्थों के धुँए से होने वाला प्रदूषण है और रेफ्रिजरेटर, एयरकंडीशनर इत्यादि चीजों का बढ़ता प्रयोग भी है। कुछ गैसें, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन, पृथ्वी के वातावरण में सूरज की गर्मी को अपने अंदर रोकती हैं। ये ग्रीनहाउस गैस वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से भी मौजूद हैं।

मानव गतिविधियों, विशेष रूप से बिजली वाहनों, कारखानों और घरों में जीवाश्म ईंधन (यानी, कोयला, प्राकृतिक गैस, और तेल) के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को वायुमंडल में छोड़ा जाता है। पेड़ों को काटने सहित अन्य गतिविधियां भी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं।

वायुमंडल में इन ग्रीनहाउस गैसों की उच्च सांद्रता पृथ्वी पर अधिक गर्मी बढ़ाने के लिए जिम्मेवार है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है। जलवायु वैज्ञानिक मानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के पीछे मानव गतिविधियां मुख्य है।

क्या जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग से अलग है?

Environmental And Energy Studies Institute के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का उपयोग अक्सर एक-दूसरे के लिए किया जाता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन मोटे तौर पर औसत मौसम (जैसे, तापमान, वर्षा, आर्द्रता, हवा, वायुमंडलीय दबाव, समुद्र के तापमान, आदि) में लगातार परिवर्तन करने के लिए जाना जाता है जबकि ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि करने के लिए जाना जाता है।

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ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान में वृद्धि क्या है?

ग्लोबल वार्मिंग औद्योगिक क्रांति के बाद से औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि को दर्शाता है। 1880 के बाद से औसत वैश्विक तापमान में लगभग एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। ग्लोबल वार्मिंग एक सतत प्रक्रिया है, वैज्ञानिकों को आशंका है कि 2035 तक औसत वैश्विक तापमान अतिरिक्त 0.3 से 0.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग का खतरनाक प्रभाव :-

ग्लोबल वार्मिंग की वृद्धि से तूफान, बाढ़, जंगल की आग, सूखा और लू जैसे खतरे की आशंका बढ़ जाती है। एक गर्म जलवायु में, वायुमंडल अधिक पानी एकत्र कर सकता है और बारिश कर सकता है, जिससे वर्षा के पैटर्न में बदलाव हो सकता है। बढ़ी हुई वर्षा से कृषि को लाभकारी हो सकती है, लेकिन एक ही दिन में अधिक तीव्र तूफानों के रूप में वर्षा होने से, फसल, संपत्ति, बुनियादी ढांचे इत्यादि को नुकसान होता है और प्रभावित क्षेत्रों में जन-जीवन का भी नुकसान हो सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री सतह का तापमान भी बढ़ जाता है क्योंकि पृथ्वी के वातावरण की अधिकांश गर्मी समुद्र द्वारा अवशोषित हो जाती है। गर्म समुद्री सतह के तापमान के कारण तूफान का बनना आसान हो जाता है।

मानव-जनित ग्लोबल वार्मिंग के कारण, यह आशंका जताई जाती है कि तूफान से वर्षा की दर बढ़ेगी, तूफान की तीव्रता बढ़ जाएगी और श्रेणी 4 या 5 के स्तर तक पहुंचने वाले तूफानों का अनुपात भी बढ़ जाएगा।

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ग्लोबल वार्मिंग का असर :-

2100 तक इसमें डेढ़ से छह डिग्री तक की वृद्धि हो सकती है. वैज्ञानिकों के अनुसार एक चेतावनी यह भी है कि यदि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन तत्काल बहुत कम कर दिया जाए तो भी तापमान में बढ़ोत्तरी तत्काल रुकने की संभावना नहीं है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पर्यावरण और पानी की बड़ी इकाइयों को इस परिवर्तन के हिसाब से बदलने में भी सैकड़ों साल लग सकते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के उपाय :-

(1) वैज्ञानिकों और पर्यावरणवादियों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिए मुख्य रुप से CFC गैसों का ऊत्सर्जन कम रोकना होगा और इसके लिए रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिनसे CFC गैसें कम निकलती हैं।

(2) औद्योगिक कंपनियों की चिमनियों से निकले वाला धुँआ हानिकारक हैं और इनसे निकलने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड गर्मी बढ़ाता है. इन इकाइयों में प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे।

(3) वाहनों में से निकलने वाले धुँए का प्रभाव कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का सख़्ती से पालन करना होगा। तभी जाकर ग्लोबल वार्मिंग को रोका जा सकता है।

(4) उद्योगों और ख़ासकर रासायनिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे को फिर से उपयोग में लाने लायक बनाने की कोशिश करनी होगी। और प्राथमिकता के आधार पर पेड़ों की कटाई रोकनी होगी और जंगलों के संरक्षण पर बल देना होगा।

(5) अक्षय ऊर्जा के उपायों पर ध्यान देना होगा यानी अगर कोयले से बनने वाली बिजली के बदले पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पनबिजली पर ध्यान दिया जाए तो आबोहवा को गर्म करने वाली गैसों पर नियंत्रण पाया जा सकता है. याद रहे कि जो कुछ हो रहा है या हो चुका है वैज्ञानिकों के अनुसार उसके लिए मानवीय गतिविधियाँ ही दोषी हैं।

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भारत में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने की पहल :-

जलवायु परिवर्तन को गहराती समस्या को देखते हुए दुनिया के कई देश जीवाश्म ईंधनी पर अपनी निर्भरता को चरणबद्ध तरीके से घटाने के लिए प्रयासरत है। कुछ विकसित देशों ने 2030 तो अन्य ने 2010. कोयला आधारित पारगाजनाआओं के लिए वित्तपोषण रोकने का फैसला किया बंद करने का संकल्प लिया है। इसके अलावा 11 देशों ने ‘चियाड़ आयत एंड गैस पानी एवं गैस से परे नामक एक नए गठबंधन की घोषणा की है

जिसमें आयरलैंड, फ्रांस, डेनमार्क, कोस्टारिका जैसे देश शामिल है। पर गठजोड़ राष्ट्रीय स्तर पर तेल व गैस के अन्वेषण व उनके दहन को समाप्ति के लिए एक समय सीमा तय करेगा फूल उत्पादन क्षमता में गैर-जीवाश्म ऊर्जा ती की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत करने का लक्ष्य हासिल कर लिया है। दरअसल कुल ऊर्जा जरूरती का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा जिन जीवाश्म ईंधनों से प्राप्त होता है।

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उनके इस्तेमाल की मानवता और पर्यावरण को भारी कीमत भी चुकानी है. जबकि 77 देशों ने कोयलाउपड़ा है। जावाश्म ईश्नों में कार्बन की मात्रा अधिक होती है, क्योंकि पौधों और जीवों के अवशेषों से निर्मित होते हैं। जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम प्राकृतिक गैस आदि अनवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत हैं। इन्हें किसी प्रयोगशाला में तैयार नहीं किया जा सकता है।

इनका उत्पादन प्राकृतिक रूप से और लाखों-करोड़ों वर्ष की जैविक प्रक्रिया के फलस्वरूप होता है। ये समाप्य प्रकृति इसी कड़ी में भारत ने बिजली की स्थापित हैं, इसलिए इसके शामिल उपभोग पर बल दिया जाता है। जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल से वायुमंडल में गैस बह जाता है, जो वायुमंडल का औसत तापमान बढ़ाने के का हो जाएगी। लिए जिम्मेवार होता है, जिसे हम ग्लोबल वार्मिंग कहते है।

कार्बन डाईआक्स के उत्सर्जन में कोयला 40 फीसद, पेट्रोल और डीजल 33 फीसदी और प्राकृतिक गैस 20 फीसदी तक जिम्मेदार है। जीवाश्म ईंधनों के उपभोग का मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। साथ ही भावी पीढ़ी के लिए उनको उपलब्धता भी प्रभावित ती प्राप्त होता है, उनके इस्तेमाल की मानवता है। जीवाश्म ईंधना के इस्तेमाल से उत्पन्न वायु प्रदूषण से हर साल 25 लाख भारतीयों की मृत्यु हो जाती है। इसके विपरीत कर्जा जीवाश्म ईंधना का सर्वोत्तम विकल्प है।

ऊर्जा के ये स्रोत असीम है और पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल भी और पवन और जल विद्युत ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा संसाधनों के प्रयोग से जायु की गुणवत्ता निखरेगा और धरती पुनः जीने लायक बन पाएगी।

जीवाश्म ईंधन का सीमित कर खनन आपदाओं में कमी लाई जा सकती है। साथ ही इससे खनन कर्मियों के साथ-साथ आस पास की आबादी भी दूषित आबोहवा में सांस लेने की अभिशप्तता से मुक्त हो जायेगी।

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