डाकू सिस्टम, जज सिस्टम एवं जूरी सिस्टम में क्या अंतर है, और इनमे से कौनसा बेहतर है?
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(1) डकैत सिस्टम :-
जब कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का गिरोह हथियारों के बल पर किसी की संपत्ति का हरण करने को अपना पेशा बना ले तो वे डाकू है। डाकू सिस्टम में, ताकतवर आदमी कमजोर व्यक्ति की संपत्ति का हरण कर लेता है। बेरोजगारी, परिस्थिति, फितरत आदि के अतिरिक्त कई मामलो में बंदूक उठाने की एक बड़ी वजह अन्याय भी होता था। जब अदालतें ठीक से काम नहीं करती है तो अन्याय से पीड़ित लोग बागी होकर बंदूक उठा लेते है। ऐसे कई डाकू हुए जिन्होंने सिर्फ अन्याय की वजह से ही बंदूक उठायी, और बाद में वही उनका पेशा बन गया।

(2) जज सिस्टम :-
भारत की जज प्रणाली में जिला स्तर पर एक शेषन जज होता है, और जिले में सभी मामलो में दंड देने की शक्ति इस एक आदमी के पास होती है। राज्य में यह शक्ति हाई कोर्ट जज के पास होती है। हाई कोर्ट जज शेषन जज को प्रमोट कर सकता है, या उसे नौकरी से निकाल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के जज के पास पॉवर है कि वह हाई कोर्ट जज को प्रमोट कर सके या नौकरी से निकाल सके। जो व्यक्ति एक बार जज बन जाता है, उसके पास विभिन्न स्तरों पर दंड देने की यह शक्ति आजीवन बनी रहती है। एक जज फैसले देने में कितनी ईमानदारी बरतता है, यह खुला रहस्य है।

डकैत एवं जज सिस्टम में अंतर
डाकुओ में डकैती डालने के कोई नियम नहीं होते किन्तु जिस व्यवस्था में वह काम करते है, उसके अनुसार अमूमन डाकूओ के निशाने पर हमेशा अमीर इंसान रहता है, और कई वजहों से वे गरीब को निशाना नहीं बनाते। यदि वे गरीब आदमियों को लूटेंगे तो आवश्यक धन इकट्ठा करने के लिए ज्यादा आदमियों को निशाना बनाना पड़ेगा, अत: उनकी लागत बढ़ जाएगी।
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गरीब आदमीयों को लूटने से समुदाय उनके खिलाफ हो जायेगा। इससे मुखबिरों की संख्या बढ़ जायेगी और वो पकड़े जायेंगे।एक हथियार विहीन अमीर आदमी के पास ऐसा कोई मैकेनिज्म नहीं होता कि वह को दबा सके। अत: डाकू के लिए अमीर को लूटने में कम जोखिम रहता है। लेकिन जज सिस्टम का डिजाइन ही कुछ ऐसा होता है कि जज बहुधा कमजोर आदमी को ही निशाना बनाते है।

यदि जज आदमी पैसा खींचने जाएगा तो उसका जोखिम बढ़ जाएगा। कैसे ? मान लीजिये, किसी साधारण आदमी का विवाद किसी मंत्री से हो जाता है, और जज को पता है कि गलती मंत्री की है। लेकिन मंत्री के खिलाफ फैसला देने से पहले जज सोचेगा कि, मंत्री किसी न किसी तरह से मुझे नुकसान पहुँचा सकता है। अत: जज ताकतवर आदमी यानी (मंत्री) के खिलाफ जाने का जोखिम नहीं उठाएगा। वह जानता है कि यदि मैं साधारण आदमी मेरा कुछ भी उखाड़ नहीं सकता।
अत: एक साधारण आदमी के खिलाफ फैसला देने में जज के लिए न्यूनतम जोखिम है।इसी तरह से मान लीजिये कि A एक 5,000 करोड़ की पार्टी है और उसका एक मामला अदालत में है। मान लीजिये कि इस मामले में हजारो जनसाधारण लोग वादी के रूप में है। तब भी जज A से पैसा ले लेगा और क़ानून की कोई न कोई नजीर निकालकर उसके पक्ष में डिग्री दे देगा। क्योंकि जज जानता है कि, जन साधारण के पक्ष में फैसला देने में उसे कोई लाभ नहीं है। लेकिन A के खिलाफ फैसला देने से वह घूस की राशि से भी वंचित होगा एवं A के ऊँचे संपर्को के कारण भविष्य में जज के लिए जोखिम बढ़ जाएगा।
दुसरे शब्दों में, जज सिस्टम में अमीर आदमी के पास अपनी पहुँच एवं पैसे का इस्तेमाल करने का अवसर होता है। अत: जज बड़े आदमी पर कभी हाथ नहीं डालते। वे जानते है कि इससे हमारे लेने के देने पड़ सकते है। अत: जब किसी बड़े एवं छोटे आदमी की लड़ाई होगी तो जज स्वभाविक रूप से ताकतवर आदमी को छोड़ देगा और कमजोर की गर्दन मरोड़ देगा। चाहे कमजोर आदमियों की संख्या कितनी भी ज्यादा ही क्यों न हो।
लेकिन यदि किसी डाकू के सामने अमीर एवं गरीब आदमी का झगडा आएगा तो वह अमीर को लूट लेगा और गरीब आदमी को जाने देगा। वजह यह है कि एक तो डाकू अमीर आदमी से ज्यादा पैसा वसूल सकता है, और तिस पर भी अमीर आदमी के पास डाकू को दबाने का कोई मैकेनिज्म नहीं है। तो जब भी किसी क्षेत्र में डाकू पनप जाते थे तो पुलिस को उन्हें पकड़ने में काफी दिक्कत आती थी। क्योंकि वे आम नागरिको / गरीब आदमी को अमूमन कोई परेशानी नहीं देते थे और इस वजह से नागरिको का समर्थन उन्हें प्राप्त रहता था।
डाकुओ एवं जजों में दूसरा बड़ा फर्क यह है कि, डाकू यदि जन साधारण को ज्यादा लूटना शुरू करेगा तो नागरिक हथियार जुटा कर उसका प्रतिकार करना शुरू करेंगे। जबकि जज सिस्टम में यह लूट (जिसे घूसखोरी एवं भाई भतीजावाद के नाम से जाना जाता है) पूरी तरह से कानूनी होती है, और आदमी को गम खाकर बैठ जाना पड़ता है। यदि व्यक्ति जज पर घूसखोरी का आरोप लगाएगा तो जज अवमानना का आरोप बनाकर उसे जेल में डाल देंगे।
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(3) जूरी सिस्टम :-
जूरी सिस्टम में दंड देने की शक्ति लगातार विभिन्न लोगो में हस्तांतरित होती रहती है। जूरी सिस्टम में प्रत्येक मुकदमे के लिए 12 से 15 मतदाताओ का लॉटरी द्वारा चयन करके जूरी मंडल का गठन किया जाता है। जब जज मुकदमा सुनता है तो मुकदमे के बगल में बैठकर यह जूरी भी मुकदमा सुनती है। सभी पक्षों को सुनने एवं पेश किये गए सबूतों को देखने के बाद प्रत्येक जूरी सदस्य बंद लिफाफे में अपना फैसला दे देता है, और जूरी भंग हो जाती है।

बहुमत द्वारा दिए फैसले को जूरी का फैसला माना जाता है।जज सिस्टम एवं जूरी सिस्टम में विस्तृत अंतर इस जवाब में देखा जा सकता है –
पवन कुमार शर्मा का जवाब – न्याय की "जज व्यवस्था"
और “जूरी व्यवस्था” में क्या प्रमुख अंतर है ?.[ वैसे जूरी सिस्टम एक कंसेप्ट है, और जूरी सिस्टम कितने बेहतर तरीके से काम करेगा यह इसके ड्राफ्ट पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए जूरी कोर्ट के प्रस्तावित ड्राफ्ट में अंतिम फैसला देने का अधिकार जज के पास ही है, और जूरी द्वारा दिए गए निर्णय की हैसियत परामर्शकारी है।
[ इसके अलावा जूरी कोर्ट में जूरी मंडल को सिर्फ सरल मुकदमें सुनने का अधिकार दिया गया है, जटिल मुकदमो का नहीं। ]
(5) डाकू सिस्टम, जज सिस्टम और जूरी सिस्टम में से कौनसा बेहतर है ?
वैसे डाकू सिस्टम अपने आप में कोई सिस्टम नहीं है, अत: यह लम्बे समय तक टिक नहीं सकता। वे सिर्फ बंदूक के बल पर अपनी सत्ता बनाते है। यदि डाकूओ की संख्या बढ़ने लगी
और उन्होंने बड़े पैमाने पर लूट पाट शुरू की तो जन साधारण अपनी सुरक्षा के लिए खुद का सशस्त्रीकरण करना शुरू कर देगा। और जैसे ही नागरिको के पास हथियार आते है डाकू जमा हो जाते है। तब डाकू राहजनी और मौका देखकर लूट खसोट तो कर सकते है, किन्तु एलानिया डकैती नहीं कर सकते।
चूंकि जज अपेक्षाकृत छोटे एवं कमजोर लोगो को लूटते है, अत: जज सिस्टम में ताकतवर लोग जजों से गठजोड़ बनाकर गलत वजहों से कारोबारी बढ़त एवं एकाधिकार बनाए रखने में सफल हो जाते है। यह एक बड़ी वजह है कि, ताकतवर लोग हमेशा जज सिस्टम की पैरोकारी करते है, ताकि जरूरत होने पर वे पैसा फेंक कर जजों को खरीद सके।जूरी सिस्टम में, दंड देने की शक्ति लगातार विभिन्न लोगो में हस्तांतरित होती रहती है, अत: ताकतवर लोगो द्वारा इस तरह का गठजोड़ बनाया नहीं जा सकता।

अत: मेरे विचार में जूरी सिस्टम जज सिस्टम की तुलना में बेहतर तरीके से काम करता है।.न्याय प्रणाली को लेकर पेड मीडिया के प्रायोजको का एजेंडा है कि – भारत में जज सिस्टम चालू रहना चाहिए, अत: आप भारत की सभी पेड मीडिया पार्टियों एवं पेड मीडिया द्वारा खड़े किये गए ब्रांडेड नेताओं को जज सिस्टम के समर्थन में पायेंगे। जूरी सिस्टम से उन्हें इतनी घृणा है कि वे इस पर बात करना तक पंसद नहीं करते।
(6) शोले मूवी में ठाकुर गाँव वालो से कहता है – शंकर , गंगा कसम जब भी वक्त आया है तो हमने दरातियाँ पिघलाकर तलवारे बनायी है।.असल में, गब्बर गाँव वालो को इसीलिए लूट रहा था क्योंकि वे हथियार विहीन थे। ठाकुर उन्हें लड़ने के लिए जब तलवारे बनाने की चाबी देता है तो काशीराम पलट कर जवाब देता है कि – ठाकुर, बंदूक और तलवार की लड़ाई में तब भी जीतेगी तो बंदूक ही चूंकि पेड मीडिया के प्रायोजक नागरिको को हथियारबंद करने के खिलाफ है, अत: पेड सलीम जावेद ने पटकथा में इस तथ्य को दर्ज नहीं किया था कि –
नागरिको को बंदूके रखने की अनुमति नहीं दे रही है, लेकिन गब्बर को बंदूक रखने से रोक नहीं रही है, और इस वजह से के वासी 2 बार टेक्स चुका रहे है। सरकार को भी और गब्बर को भी ।
(2) गब्बर जिस तरह से चौपाल पर आकर धान इकट्ठा करता था, उस समय के डाकू जन साधारण से इस तरह हफ्ता वसूली नही करते थे। ठाकुर की तिजौरी में काफी पैसे थे, और उसके परिवार की हत्या करने के बाद वह असहाय एवं अकेला था। लेकिन गब्बर उसे कभी लूटने नहीं गया।
फ़िल्में आखिर फ़िल्में है, और इनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता। लेकिन चूंकि फ़िल्में भी पेड मीडिया का हिस्सा है, अत: इनमें बहुत सफाई के सूचनाओं को समायोजित कर दिया जाता है, जो पेड मीडिया के प्रायोजको के
हो।
बहरहाल, हमारे लिए बुरी खबर यह है कि अमेरिका, ब्रिटेन एवं फ़्रांस के बाद अब चाइना भी धीरे धीरे जज सिस्टम को कमजोर करके जूरी सिस्टम की तरफ जा रहा है। इसी साल उन्होंने एसेसर* सिस्टम का दायरा विस्तृत कर दिया है। मतलब, छोटी इकाइयों को सरंक्षण मिलने से चाइना अब और भी और ज्यादा बेहतर एवं ज्यादा सस्ती तकनीकी वस्तुओ का उत्पादन करने लगेगा। और इससे भारत एवं चीन के बीच शक्ति अनुपात और भी बिगड़ेगा
(*) एसेसर सिस्टम जूरी सिस्टम का ही एक चिल्लर वर्जन है। मतलब यह कमजोर जूरी प्रथा की एक किस्म है। लेकिन तब भी यह जज सिस्टम जैसे बदतर सिस्टम से कई गुना बेहतर है।
How a people’s jury system is opening up China’s courts- https://www.scmp.com/comment/insight-opinion/united-states/article/2174295/how,,-peoples-jury-system-helping-chinese-courts.
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जूरी सिस्टम(jury system) का तकनिकी उत्पादन एवं हथियार निर्माण से सम्बन्ध।