भारत सरकार इन दिनों 17वीं शताब्दी के मुग़ल शहज़ादे दारा शिकोह की क़ब्र तलाश रही है। मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के समय के इतिहासकारों के लेखन और कुछ दस्तावेज़ों से पता चलता है कि दारा शिकोह को दिल्ली में हुमायूं के मक़बरे में कहीं दफ़न किया गया था।
दारा शिकोह कोह की क़ब्र को पहचानने के लिए भारत सरकार ने दारा शिकोह पुरातत्वविदों की एक कमेटी बनाई है जो साहित्य, कला और वास्तुकला के आधार पर उनकी कमरे को पहचान करने के लिए कोशिश की जा रही है। हमें पता होना चाहिए कि मुगलों के समय में भी दारा शिकोह जैसे बुद्धिजीवी भी थे।
दारा शिकोह कौन थे?

दर्शी को सम्राट शाहजहां तथा मुमताज महल के बड़े बेटे तथा औरंगजेब का बड़े भाई थे। इनका जन्म 20 मार्च 1615 में अजमेर में हुआ था। इनकी बेगम का नाम नादिरा बानो बेगम थे। इनकी हत्या औरंगजेब ने 30 अगस्त 1659 ई. करवा दी थी।
दारा शिकोह सूफी वादी में विश्वास रखते थे और वे हिंदू धर्म में भी गहरी रूचि रखते थे। वह किसी भी धर्म की तुलना नहीं करते थे कि यह धर्म बहुत अच्छा है या धर्म अच्छा नहीं है। वो अपने समय के प्रमुख हिन्दुओं, बौद्धों, जैनियों, ईसाईयों और मुस्लिम सूफ़ियों के साथ उनके धार्मिक विचारों पर चर्चा करते थे। इस्लाम के साथ, उनकी हिन्दू धर्म में भी गहरी रुचि थी और वो सभी धर्मों को समानता की नज़र से देखते थे। औरंगजेब को यह सब पसंद नहीं था वह कट्टर सम्राट था। इन्हीं सब कारणों से औरंगजेब ने अपने बड़े भाई को मरवा दिया था।
शाहजहाँ के पुत्रों में से बड़े बेटे दारा शिकोह थे। मुग़लों के समय की परंपरा के अनुसार, बड़ा बेटा उत्तराधिकारी होता था। चित्रकार शाहजहां के बड़े पुत्र दारा सिकोह भी अपने पिता के बाद वे सिंहासन के उत्तराधिकारी थे। एक बार शाहजहां बीमार पड़ गए तो उसके दूसरे पुत्र औरंगजेब में अपने पिता को सिंहासन से हटाकर आगरा की कैद खाने में कैद करके रख दिया था।
उसके बाद औरंगजेब ने खुद को ही बादशाह घोषित कर दिया और सिंहासन की लड़ाई में अपने बड़े भाई दारा सिको को हरा कर जेल भेज दिया। शाहजहां के शाही इतिहासकार मोहम्मद साले कंबोड़ी ने अपनी एक पुस्तक ‘शाहजहाँ नामा’में लिखा है कि जब शहजादे इंदौर आशिकों को गिरफ्तार करके दिल्ली ले जाया गया तो उनके शरीर पर मैंने कुछ ऐसे कपड़े थे यहां से उनको बहुत ही बुरी हालत में बागी की तरह हाथी पर सवार करके खिजराबाद पहुंचाया गया था तथा कुछ समय के लिए उन्हें एक अंधेरे कमरे में रखा गया था।
इसके कुछ ही दिनों के भीतर ही उनकी मौत का आदेश भी दे दिया गया।उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि उनका कत्ल करने के लिए कुछ जल्लाद जेल में आ गए और क्षण भर में उनके गले पर खंजर चला कर उनकी हत्या भी कर दी।
और उसके बाद खून से लथपथ कपड़ों में उनके शरीर को हुक्म आयु के मकबरे में दफन कर दिया गया।उसी दौर के कनित हंसकर मोहम्मद का जीवनी मोहम्मद अमीन मुंशी ने अपनी पुस्तक आलमगीर नामा में दारा शिकोह की कब्र की बारे में लिखा है कि दर्शकों को हिमायू के मकबरे में उस गुंबद के नीचे दफनाया गया था जहां बादशाह अकबर के बेटे दानियाल और मुराद दफन है तथा जहां बाद में अन्य तैमूरी वंश के शहजादे और शहजादे को भी दफन किया गया था।
पाकिस्तान के एक स्कॉलर, अहमद नबी ख़ान ने 1969 में लाहौर में ‘दीवान-ए-दारा दारा शिकोह’ के नाम से एक शोध-पत्र में दारा सिकोह की क़ब्र की एक तस्वीर प्रकाशित की थी। तथा उनके अनुसार, उत्तर-पश्चिम कक्ष में स्थित तीन क़ब्रें पुरुषों की हैं और उनमें से जो क़ब्र दरवाज़े की तरफ़ है वो दारा शिकोह की है।
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दारा शिकोह की क़ब्र पहचानने में क्या आप रही है मुश्किलें ? :-
हुमायूं के विशाल मक़बरे में सिर्फ हुमायूं की ही नहीं उसके अलावा भी कई कब्र को दफनाया गया है। उस मकबरे में सिर्फ हुमायूं की कब्र को पहचाना गया है बाकी और किसी की भी कब्र अभी तक पहचानी नहीं गई है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में इतिहासकार प्रोफ़ेसर शिरीन मौसवी कहती हैं, “चूंकि हुमायूं के मक़बरे में किसी भी क़ब्र पर कोई शिलालेख भी लगा हुआ नहीं है, इसलिए कौन सी कब्र में कौन दफन है यह पता नहीं चल पा रहा है।सरकार ने दारा सिकोह की क़ब्र को पहचान करने के लिए पुरातत्वविदों की जो टीम बनाई है, उसमें पुरातत्व विभाग के पूर्व प्रमुख डॉक्टर सैय्यद जमाल हसन भी शामिल हैं।

वो कहते हैं, “यहाँ लगभग 150 क़ब्रें दफनाई गई हैं जिनकी अभी तक पहचान नहीं हो पाई है यह पहचान करने का पहला प्रयास है।वो कहते हैं कि “हुमायूं के मक़बरे के मुख्य गुंबद के नीचे जो कक्ष बने हुए हैं, हम वहाँ बनी क़ब्रों का निरीक्षण कर रहे हैं उन क़ब्रों के डिज़ाइन को देखेंगे. अगर कहीं कुछ लिखा हो तो उसकी तलाश भी करेंगें।
कला और वास्तुकला के दृष्टिकोण से हम लोग यह कोशिश करेंगे कि दारा की क़ब्र को जल्द से जल्द पहचानी जा सकेउनका मानना है कि यह काम बहुत मुश्किल है। लेकिन हम पूरा प्रयास करेंगे की कब्र को पहचाना जा सके।
आखिर भारत सरकार को दारा शिकोह की कब्र की क्यों है तलाश? :-

सबसे पहले आपको बता दें दारा शिकोह सूफी वादी में विश्वास रखते थे और वे हिंदू धर्म में भी गहरी रूचि रखते थे। औरंगजेब के बारे में आपने जाना होगा लेकिन दारा शिकोह के बारे में बहुत कम ही लोगों को पता होगा। वह किसी भी धर्म की तुलना नहीं करते थे कि यह धर्म बहुत अच्छा है या धर्म अच्छा नहीं है। वो अपने समय के प्रमुख हिन्दुओं, बौद्धों, जैनियों, ईसाईयों और मुस्लिम सूफ़ियों के साथ उनके धार्मिक विचारों पर चर्चा करते थे।
इस्लाम के साथ, उनकी हिन्दू धर्म में भी गहरी रुचि थी और वो सभी धर्मों को समानता की नज़र से देखते थे। दारा शिकोह शाहजहाँ के उत्तराधिकारी थे। इसीलिए वो भारत का एक ऐसा बादशाह बनने का सपना देख रहे थे जो बादशाहत के साथ-साथ दर्शन, सूफ़िज़्म और आध्यात्मिकता पर भी महारत रखता हो।
उनके बारे में उपलब्ध जानकारियों के अनुसार, उन्होंने बनारस से पण्डितों को बुलाया और उनकी मदद से हिन्दू धर्म के ‘उपनिषदों’ का फ़ारसी भाषा में अनुवाद कराया था। उपनिषदों का यह फ़ारसी अनुवाद यूरोप तक पहुँचा और वहाँ उनका अनुवाद लैटिन भाषा में हुआ जिसने उपनिषदों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध बनाया।भारत में दारा शिकोह को एक उदार चरित्र के रूप में माना जाता है।
भारत में हिन्दू-झुकाव वाले इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर औरंगज़ेब की जगह दारा शिकोह मुग़लिया सल्तनत के तख़्त पर बैठते तो देश की स्थिति बिल्कुल अलग ही होती।
ये इतिहासकार औरंगज़ेब को एक ‘सख़्त, कट्टरपंथी और भेदभाव करने वाला’ मुसलमान मानते हैं। उनके अनुसार, वो हिन्दुओं से नफ़रत करते थे और उन्होंने कई मंदिरों को ध्वस्त कराया था। यह धारणा वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में और भी ज़्यादा मज़बूत हो गई है.बीबीसी ने जिन इतिहासकारों से बात की है, उनका मानना है कि औरंगज़ेब के विपरीत, दारा शिकोह हिन्दू धर्म से प्रभावित थे और वो हिन्दुओं की धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते थे।
हिन्दू वैचारिक संगठन RSS, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सत्तारुढ़ पार्टी भाजपा ने भारत में मुस्लिम शासकों के लगभग 700 के शासन को ‘हिन्दुओं की ग़ुलामी’ का दौर कहा है।आधुनिक समय में मुस्लिम शासकों के दौर को, विशेष रूप से मुग़ल शासकों और घटनाओं को अक्सर भारत के मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। अब यह नैरेटिव बनाने की कोशिश हो रही है कि वर्तमान मुसलमानों की तुलना में दारा शिकोह भारत की मिट्टी में ज़्यादा घुल मिल गए थे।
भारत सरकार दारा सिकोह की क़ब्र का क्या करेगी? :-
भारत सरकार दारा शिकोह को एक आदर्श, उदार मुस्लिम चरित्र मानती है और इसीलिए वो दारा को मुसलमानों के लिए आदर्श बनाना चाहती है। उनके विचारों को और उजागर करने के लिए, यह संभव है कि मुग़ल शहज़ादे की क़ब्र की पहचान होने के बाद धार्मिक सद्भाव का कोई वार्षिक उत्सव या कोई कार्यक्रम शुरू किया जाये।
सत्तारुढ़ पार्टी भाजपा के नेता सैयद ज़फर इस्लाम का कहना है कि “दारा शिकोह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन किया और एक शांति अभियान भी चलाया। इसी वजह से दारा शिकोह को भी इस बात का घमंड रहता था कि वह सभी धर्मों का अध्ययन किया तथा वे सब धर्मों के बारे में जानते हैं। वे सभी धर्मों को एक साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे।
इसका उन्हें परिणाम भी भुगतना पड़ा। आज के मुस्लिम समाज में भी दारा जैसी सोच और समझ वाले लोगों की बहुत आवश्यकता है।दारा शिकोह को मुसलमानों के लिए एक आदर्श के रूप में पेश करने का विचार इस धारणा पर आधारित है कि मुसलमान भारत के धर्मों और यहाँ के रीति-रिवाज़ों में पूरी तरह से नहीं घुल मिल सके हैं और ना ही इसे अपना सके हैं।
हालांकि, कुछ आलोचक यह सवाल भी पूछते हैं कि दारा शिकोह को उनकी उदारता और धार्मिक एकता के विचारों के लिए केवल मुसलमानों का ही क्यों, पूरे देश का रोल मॉडल बनाया जाना चाहिए?