जब निजीकरण ने सड़कें खून से लाल कर दीं ,,,,,
मात्र 20 वर्ष पहले बोलिविया देश ने निजीकरण की रफ्तार पकड़ी।
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सब कुछ निजीक्षेत्र को दिया जाने लगा।
आखिरकार सरकार ने पानी का भी निजीकरण कर दिया ।
1999 में एक मल्टीनेशनल कंपनी को पानी के सर्वाधिकार बेच दिए गए।
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पानी के रेट इतने बढ़ गए कि हाहाकार मच गया।
औसतन प्रति मास आधा वेतन पानी के लिए खर्च होने लगा।
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लोग नहरों से पीने का पानी भर कर लाने लगे तो नहरों नदियों पर फ़ौज व पुलिस की तैनाती करवा दी गई।
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दुखी जनता बारिश का इंतजार कर रही थी तो नया आदेश आ गया कि कोई भी आदमी बारिश का पानी इकठ्ठा न करे ये इस कम्पनी का है।
पानी इकठ्ठा करने पर चोरी का केस दर्ज होगा।
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खैर लोगो के आंखों की पट्टी खुली तो जमकर विरोध हुआ। अनेको लोगो को गोलियों से भून दिया गया।
क्योंकि पुलिस और फ़ौज तो होती ही सरकार के लिए,
और सरकार होती है पूंजीपतियों की जेब मे।
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बोलिविया जल युद्ध का पूरा विवरण है NCERT 10TH CLASS में।
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परन्तु हम सीखने या सबक लेने के लिए नही परीक्षा में नम्बर लेने के लिए याद करते हैं !
जब तक विषय को पढ़ाना उसमें नंबर लाने के लिए किया जाएगा तब तक देश आगे नहीं जाएगा उससे सबक क्या लेना चाहिए यह सीखना चाहिए और वह गलतियां भविष्य में ना हो यह सीखना चाहिए यह सीखना चाहिए कि आने वाले भविष्य कैसा हो सकता है ताकि हम में दूरदर्शिता का पता हो कि आने वाले समय में क्या हो सकता है
निजी क्षेत्र का एक ही मकसद होता है ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना वहां पर किसी के हित का कुछ नहीं होता है पर पब्लिक प्रॉपर्टी या संस्कारी संस्थाओं का मकसद होता है कि लोगों में सुविधाएं पहुंचाना
ताकि भारत के या किसी भी देश के आम नागरिक तक भी सारी सुविधाएं पहुंचे ना की किसी एक बड़े वर्ग तक ही सीमित रहें।।
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ध्यान रखे निजीकरण अर्थिक विकास शायद करा दे पर नागरिकों की समृद्धि के लिए सरकारी संस्थाओं की उपादेयता सदा बनी रहेगी ….