मंगलवार को पेश बजट में क्रिप्टोकरेंसी व दूसरे डिजिटल असेट्स से मुनाफे पर 30 प्रतिशत का टैक्स लगाने के प्रस्ताव को इस तरह की दूसरी डिजिटल व्यवस्थाओं को कानूनी रूप देने के तौर देखा जा रहा है। अब जो सूचनाएं वित्त मंत्रालय से आ रही हैं वे बताती हैं कि आयकर अधिनियम में बजट के जरिये संशोधन के जो प्रावधान किए गए हैं, वो आने वाले दिनों में कानून का आधार बनेंगे।
वित्त विधेयक, 2022-23 में न सिर्फ डिजिटल असेट्स की पूरी परिभाषा तय कर दी गई है, बल्कि किस व्यक्ति को किस सीमा तक इस तरह की लेनदेन की अनुमति होगी, इसका भी निर्धारण कर दिया गया है। यह पहला मौका है कि किसी भारतीय कानून में परोक्ष रूप से क्रिप्टोकरेंसी जैसी व्यवस्था को मान्यता देने के लिए वैधानिक आधार तैयार किया जा सकता है। हालांकि इसकी औपचारिक प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है और केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि है कि टैक्स दायरे में लाने का अर्थ उसे वैधानिक मान्यता देना नहीं है।
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विधेयक में कहा गया है कि क्रिप्टोग्राफिक माध्यम से उत्पन्न कोई भी सूचना, टोकन या नंबर जो एक मूल्य में निर्धारित हो, जिसका किसी वित्तीय लेनदेन या निवेश या किसी अन्य उद्देश्यों में उपयोग हो सकता हो और जो एक यूनिट या किसी वैल्यू में स्टोर किया जा सकता हो, जिसे इलेक्ट्रानिक माध्यम से ट्रांसफर, स्टोर या कारोबार किया जा सकता हो, उन्हें डिजिटल असेट्स माना जाएगा। इससे साफ है कि बिटक्वाइन, इधर, एक्सआरपी जैसी सभी क्रिप्टोकरेंसी अब टैक्स के दायरे में आ चुकी हैं। सरकार ने यह भी संकेत दिया है कि समय-समय पर केंद्र भी अधिसूचना जारी करके डिजिटल असेट्स घोषित कर सकती है।

वित्त विधएक के प्रस्ताव अगले वित्त वर्ष से लागू होंगे। इसका मतलब यह है कि वित्त वर्ष 2023-24 में करदाताओं को वित्त वर्ष 2022-23 में क्रिप्टोकरेंसी से हुई कमाई की जानकारी देनी होगी।
* किस व्यक्ति को किस सीमा तक इस तरह की लेनदेन की अनुमति होगी, इसका भी निर्धारण कर दिया गया।
वित्त विधेयक के प्रस्ताव सरकार की इस मंशा को भी दिखाते हैं कि वह क्रिप्टोकरेंसी जैसी दूसरी डिजिटल असेट्स के हर सौदे पर नजर बनाकर रखना चाहती है। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों का मानना है कि इससे युवा वर्ग को कर दायरे में लाया जा सकेगा और इससे करदाताओं की संख्या बढ़ेगी। बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने यह स्पष्ट कर ही दिया था कि डिजिटल असेट्स के लेनदेन में अगर कोई हानि होती है तो उसकी भरपाई किसी दूसरी आय से करने की कोई छूट नहीं होगी और इस पर लगे टैक्स पर किसी भी तरह की छूट नहीं दी जाएगी।
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यही वजह है कि विशेषज्ञों ने इसे सही कदम करार देते हुए कहा है कि सरकार अब स्वीकार कर चुकी है कि डिजिटल असेट्स के लिए भारतीय इकोनमी के दरवाजे बंद नहीं किए जा रहे हैं। सरकार के इस फैसले पर आरबीआइ का रुख अभी सामने नहीं आया है। आरबीआइ पूर्व में कई बार क्रिप्टोकरेंसी या दूसरे डिजिटल असेट्स के खतरे को लेकर सरकार को परोक्ष तौर पर आगाह कर चुका है। अभी तक केंद्र सरकार भी इसके नियमन को लेकर असमंजस में रही है। यही वजह है कि दो-दो बार इसके बारे में कानून बनाने की तैयारी के बावजूद आवश्यक विधेयक संसद में पेश नहीं किया जा सका है।
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