देश में कानून-व्यवस्था बनाये रखना, बाहरी आक्रमणों से देश की रक्षा करना, लोगों को आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करना जैसे कार्य करना सरकार के कर्तव्य है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में शासन करना एक कठिन कार्य है, जिसके लिए उचित प्रबंध की आवश्यकता है।यह कार्य विधायिका द्वारा केंद्र तथा राज्य स्तर पर किया जाता है।
भारत में सरकार दो प्रकार की है- संसदीय सरकार एवं अध्यक्षम सरकार संसदीय सरकार को उत्पत्ति एवं विकास इंग्लैंड में हुआ तथा यह विश्व के अनेक देशों में प्रचलित है। अध्यक्षात्मक 7/6 सरकार की उत्पत्ति अमेरिका में हुई।

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भारत में संसदीय प्रणाली की सरकार अपनाने के कारण (Reasons to adopt the Form of Presidential Government in India) :-
भारत में संसदीय प्रकार की सरकार को अपनाया गया, जिसे ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय लोगों की माँग पर टुकड़ों में स्थापित किया गया था। स्वतंत्रता के बाद उसी प्रणाली को अपनाया गया। भारत में संसदीय प्रणाली की सरकार अधिक उपयुक्त है। इसके निम्नलिखित कारण है
(1) संसदीय सरकार विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है तथा विधायिका के माध्यम से लोगों के प्रति उत्तरदायी होती है। यह लोगों के कल्याण के लिए कार्य करती है।
(2) संसदीय सरकार लचीली होती है तथा समय के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।
(3) इस प्रणाली में कार्यपालिका तथा विधायिका के मध्य घनिष्ठ संबंध होता है। कानून बनाने के लिए अधिकांश बिल (प्रस्ताव) संसद में ही मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं, जिससे अच्छे कानूनों का निर्माण संभव होता है।
(4) संसदीय प्रणाली की सरकार में कार्यपालिका तथा विधायिका के मध्य समरसतापूर्ण सहयोग रहता है, जिससे कार्यकुशलता सुनिश्चित होती है।
(5) संसदीय प्रणाली की सरकार जनमत के प्रति सदैव उत्तरदायी होती है। यदि कैबिनेट जनमत के विरुद्ध कार्य करती है तो उसका आवश्यंभावी है। अतएव सरकार जनमत के अनुरूप ही अपनी नीतियों तथा कानूनों का निर्माण करती है।
(6) संसदीय प्रणाली की सरकार विपक्ष को भी मान्यता देती है, जो सरकार द्वारा गलत रास्ते पर चलने पर उसकी आलोचना करने हेतु सदैव तत्पर रहता है।
सरकार के अंग (Organs of Indian Government):-भारतीय सरकार के तीन अंग हैं-
(I) विधायिका (ii) कार्यपालिका (ii) न्यायपालिका
(I) विधायिका- कानून बनाती है। भारत में यह कार्य केंद्र में संसद के द्वारा तथा राज्यों में राज्य विधानसभाओं के द्वारा किया जाता है।
(ii)कार्यपालिका – विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करती है। कार्यपालिका में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा मंत्रिपरिषद होते हैं, में कार्यपालिका का निर्माण करते हैं। राज्यपाल, मुख्यमंत्री तथा मन्त्रिपरिषद (राज्य) राज्य में कार्यपालिका की रचना करते हैं।
(iii) न्यायपालिका –इन कानूनों के आधार पर विवादों का निर्णय लेती है तथा नया की स्थापना करती है। सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय तथा अन्य अधीनस्थ न्यायालय न्यायपालिका का गठन करते हैं।
संसद (Parliament) :-
संघीय विधायिका को संसद कहा जाता है इसमें दो सदन होते हैं लोकसभा सदन (निचला सदन) तथा राज्यसभा (ऊपरी सदन)। दोनों सदनों के सदस्यों को सांसद कहा जाता है।संसद देश के उच्चतम कानून निर्मात्री संस्था है यह सूची तथा समवर्ती सूची में उल्लेखित विषय पर कानून बनाती है। संघीय सूची में 97 मिश्रा तथा समवर्ती सूची में 47 में से सम्मिलित हैं।

यह कानून पूरे देश में लागू होते हैं।लोकसभा (The Lok sabha) :-संगठन -लोकसभा संसद का निचला सदन में यह जनता द्वारा चयनित प्रतिनिधियों से बनी है इसमें 550 सदस्य हो सकते हैं जो 530 सदस्य राज्यों से तथा 20 सदस्य केंद्र शासित प्रदेशों से प्रत्यक्ष चुने जाते हैं राष्ट्रपति एंग्लो इंडियन समुदाय के दो सदस्यों को नामांकित कर सकता है।अवधि -लोकसभा की अवधि 5 वर्ष की होती है,किंतु राष्ट्रपति द्वारा इस समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है।
आपातकाल में इसकी अवधि एक बार में 6 महीने के लिए बढ़ाई जा सकती है, ज्योति तुम 3 वर्षों के लिए बढ़ सकती है।लोकसभा की सीटें राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेशों की जनसंख्या के आधार पर निश्चित होती है। उत्तर प्रदेश तथा बिहार जैसे जंक्शन कुल राज्य में अधिक सीटें हैं, जबकि गोवा जैसे छोटे राज्य में कम सीटें हैं।
लोकसभा सदस्य के लिए योग्यता। (Qualifications of the candidates for being the member of lok sabha) :-
लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार मीनिंग लिखित योग्यता होनी चाहिए।
1. वह भारत का नागरिक हो।
2. उसकी आयु कम से कम 25 वर्षों हो।
3. घोषित अपराधी, दिवाली है मानसिक रूप से रोगी ना हो।
4. किसी सरकारी पद पर नियुक्त ना हो।
5. उसका नाम देश के किसी भाग की मतदाता सूची में सम्मिलित हो।
एक व्यक्ति एक समय में एक से अधिक स्थानों से लोकसभा का चुनाव लड़ सकता है, किंतु वह एक ही समय में राज्यसभा तत्व लोकसभा का सदस्य नहीं हो सकता। नहीं वह एक ही समय में लोकसभा तथा विधानसभा का सदस्य हो सकता है।
चुनाव :-
लोकसभा के लिए आम चुनाव कम से कम 5 वर्ष में एक बार होती हैं।जो चुनाव आयोग द्वारा संचालित किए जाते हैं ‘चुनाव आयोग’ सुनिश्चित करता है कि चुनाव स्वतंत्र तथा स्वच्छता तरीके से हो चुनाव के लिए देश को चुनावी इकाइयों में विभाजित किया जाता है जिससे निर्वाचन क्षेत्र का जाता है प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में 5 लाख से 7.5 लाख जनसंख्या होती है। मतदान गुप्त विधि से होता है।
मतदाता इलेक्ट्रिक वोटिंग मशीन पर अंकित विभिन्न उम्मीदवारों के नाम तथा चुनाव चिन्ह के सामने वाला बटन दबाकर मतदान करता है चुनाव चिन्ह का प्रावधान अनपढ़ लोगों को प्रत्याशियों की पहचान करने में सुविधा हेतु किया गया है। गुप्त मतदान प्रणाली एक ऐसा साधन है जिससे मतदाता निर्भय होकर अपना मत दे सकता है जिस क्षेत्र के प्रत्याशी सबसे अधिक मत मिलते हैं वह विजयी होता है।
संसद के चुनाव के बाद प्रत्येक सदस्य को संविधान के प्रति विश्वास तथा वफादारी की शपथ लेनी पड़ती है।राष्ट्रपति दोनों सदनों के सदस्यों को वर्ष में एक बार संशोधित करता है। सामान्यत 1 वर्ष में संसद के तीन अधिवेशन होते हैं।संविधान में प्रावधान है कि संसद के दो अधिवेशन के मध्य 6 महीने से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए।
संसद की कार्यवाही के लिए कुल सदस्यों में से कम से कम 10 फ़ीसदी सदस्य संसद में मौजूद होने चाहिए। प्रत्येक दिन की बैठक में प्रथम घंटा ‘प्रश्नकाल’ के लिए निश्चित होता है तब संसद के सदस्य अत्यावश्यक विषयों पर सदन का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं तत्पश्चात अपने विषयों पर विचार होता है।
अध्यक्ष (Speaker) :-
चुनाव के बाद लोगों के सदस्य अपना नेता (अध्यक्ष) चुनते हैं।अध्यक्ष समानता शासन करता दल का होता है, किंतु चुनाव के बाद व निष्पक्ष रुप से कार्य करता है उसकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष सदन की कार्यवाही को जलाता है उपाध्यक्ष समानता विपक्षी दल का होता है।अध्यक्ष के कार्य :-लोकसभा अध्यक्ष के निम्नलिखित कार्य होते हैं।• हेलो सभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है तथा सदन में अनुशासन बनाए रखता है।
- * पर सदस्यों को सदन में बोलने के लिए समय निश्चित करता है।
- * लोक सभा की बैठकों की समाप्ति की घोषणा कर सकता है।
- * प्रस्ताव या बिल केवल उसकी अनुमति से ही सदन में रखे जाते हैं।* राजस्थानी मामलों में मतदान करता है।
- * वह दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता करता है।
- और यह सुनिश्चित करता है कि कोई प्रस्ताव धन (वित्त) विधेयक है अथवा नहीं।
- * किसी सदन को दुर्व्यवहार के लिए निलंबित कर सकता है।
- * वह विभिन्न संसदीय समितियों की नियुक्ति करता है तथा उनके कार्य में निर्देशन देता है।
- * सदन के सदस्यों के विशेष अधिकार की रक्षा करता है।
- * सभी सदस्यों की आवश्यकता संख्या पूरी नहीं है तो वह संसद की कार्यवाही रोकने की घोषणा कर सकता है। इसका अर्थ यह है की सदस्यों की आवश्यक संख्या में होने पर संसद की कार्यवाही नहीं चल सकती।
- * प्रश्नकाल के दौरान किसी सदस्य को प्रश्न रखने की अनुमति भी दे सकता है तथा अस्वीकार भी कर सकता है।
- * संसद की कार्यवाही रोकने अथवा अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करता है।
- * किसी मुद्दे पर गतिरोध होने की स्थिति में उसे अपना मत देने का अधिकार है।