मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संविधान संशोधन के द्वारा संपत्ति का अधिकार को मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 31 एवं 19 क) को मौलिक अधिकार की सूची से हटा कर इसे संविधान के अनुच्छेद 300(a) के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है।
मौलिक अधिकार भारत के संविधान के भाग 3 (अनुच्छेद 12 से 35) वर्णित भारतीय नागरिकों को प्रदान किए गए वे अधिकार हैं जो सामान्य स्थिति में सरकार द्वारा सीमित नहीं किए जा सकते हैं और जिनकी सुरक्षा का प्रहरी सर्वोच्च न्यायालय है। इसे डिटेल में जाने के लिए कांटेक्ट को पूरा पढ़िए।
मौलिक अधिकार से जुड़ी जानकारियां :-
(1) इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है।
(2) इसका वर्णन संविधान के भाग 3 में (अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35) तक है। संविधान के भाग 3 को भारत का अधिकार पत्र (Magnacarta) कहा जाता है। इस मूल अधिकारों का जन्मदाता भी कहा जाता है।
(3) मौलिक अधिकार में संशोधन हो सकता है एवं राष्ट्रीय आपात के दौरान (अनुच्छेद 352) जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है।
(4) मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44 वें संविधान संशोधन (1978 ईस्वी) के द्वारा संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 13 एवं 19क) मौलिक अधिकार की सूची से हटा कर इसे संविधान के अनुच्छेद 300(a) अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है।
Note :
1931 ईस्वी में कराची अधिवेशन (अध्यक्ष सरदार वल्लभभाई पटेल) में कांग्रेसी घोषणा पत्र में मूल अधिकारों की मांग की मूल अधिकारों का प्रारूप जवाहरलाल नेहरू ने बनाया था।

मौलिक अधिकार
1. | समता या समानता का अधिकार | अनुच्छेद 14 से 18 |
2. | स्वतंत्रता का अधिकार | अनुच्छेद 19 से 22 |
3. | शोषण के विरुद्ध अधिकार | अनुच्छेद 23 से 24 |
4. | धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार | अनुच्छेद 25 से 28 |
5. | संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार | अनुच्छेद 29 से 30 |
6. | संवैधानिक उपचारों का अधिकार | अनुच्छेद 32 |

(1) प्रथम अधिकार : समता या समानता का अधिकार :-
अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता) :
इसका अर्थ यह है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन पर एक समान लागू करेगा।
अनुच्छेद 15 (धर्म,नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध) :
राज्य के द्वारा धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रतिनिधि जीवन के किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की क्षमता) :
राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी।
अपवाद – अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग।
अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत) :
अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।
अनुच्छेद 18 (उपाधियों का अंत) :
सेना या विधि संबंधित सम्मान के सिवाय अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी। भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश के बिना राष्ट्रपति की आज्ञा की कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता।
Note –
भारत सरकार द्वारा भारत रत्न, पद्म विभूषण, पदम भूषण, पद्मश्री एवं सेना द्वारा परम वीर चक्र, महावीर चक्र, वीर चक्र आदि पुरस्कार अनुच्छेद 18 के तहत ही दिए जाते हैं।
(2) स्वतंत्रता का अधिकार :-
अनुच्छेद 19 :
मूल संविधान में 7 तरह की स्वतंत्रता का उल्लेख था, अब सिर्फ 6 अनुच्छेद 19(f) संपत्ति का अधिकार 44वां संविधान संशोधन 1978 के द्वारा हटा दिया गया।
6 तरह की स्वतंत्रता का अधिकार
1. | अनुच्छेद 19 (a) | बोलने की स्वतंत्रता |
2. | अनुच्छेद 19 (b) | शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता |
3. | अनुच्छेद 19 (c) | संघ बनाने की स्वतंत्रता |
4. | अनुच्छेद 19 (d) | देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता |
5. | अनुच्छेद 19 (e) | देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता |
6. | अनुच्छेद 19 (g) | कोई भी व्यापार एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता |
अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण :
इसके तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है-
1. किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार सजा मिलेगी।
2. अपराध करने के समय जो कानून है उसी के तहत सजा मिलेगी ना कि पहले और बाद में बनने वाले कानून के तहत।
3. किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण) :
किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और व्यक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
नोट :
अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक सरकार का दायित्व बनता है कि वह अपने नागरिकों को स्वस्थ एवं स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराएं इसके लिए भारत सरकार ने संसद से राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 पारित कराया। अक्टूबर 2010 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की स्थापना की गई राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की मुख्य पीठ नई दिल्ली में है जबकि चार अन्य पीठे भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण देश में पर्यावरण से संबंधित मामलों के लिए उत्तरदाई हैं।
अनुच्छेद 21 (क) :
राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के समस्त बच्चों को ऐसे ढंग से जैसा कि राज्य, विधि द्वारा अवधारित करें, निशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करेगा। (86वां संशोधन 2002)।
अनुच्छेद 22 (कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध में संरक्षण) :
अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया गया हो तो उसे तीन प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है,
1. हिरासत में लेने का कारण बताना होगा,
2. 24 घंटे के अंदर (आने-जाने के समय को छोड़कर) उसे दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया जाएगा,
3. उसे अपनी पसंद की वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा।
निवारक निरोध :
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड 3 4 5 तथा 6 में तत्संबंधी प्रावधानों का उल्लेख है। निवारक निरोध कानून के अंतर्गत किसी व्यक्ति को अपराध करने के पूर्व गिरफ्तार किया जाता है। निवारक निरोध का उद्देश्य व्यक्ति को अपराध के लिए दंड देना नहीं वरन् उसे अपराध करने से रोकना है।
वस्तुतः यह निवारक निरोध राज्य की सुरक्षा लोक व्यवस्था बनाए रखने या भारत की सुरक्षा संबंधी कारणों से हो सकता है। जब किसी व्यक्ति को निवारक निरोध की किसी विधि के अधीन गिरफ्तार किया जाता है, तब –
1. सरकार ऐसे व्यक्ति को केवल 3 महीने तक अभिरक्षा में भी निरूद्ध कर सकती हैं। यदि गिरफ्तार व्यक्ति को 3 माह से अधिक समय के लिए निर्णय करना होता है, तो इसके लिए सलाहकार बोर्ड का प्रतिवेदन प्राप्त करना पड़ता है।
2. इस प्रकार निरोध व्यक्ति को यथाशीघ्र निरोध के आधार पर सूचित किए जाएंगे, किंतु जिन तथ्यों को निरस्त करना लोकहित के विरुद्ध समझा जाएगा उन्हें प्रकट करना आवश्यक नहीं है।
3. निरोध्द व्यक्ति को निरोध आदेश के विरुद्ध अभी आवेदन करने के लिए शीघ्रातिशीघ्र अवश्य दिया जाना चाहिए।
निवारक निरोध से संबंधित अब तक बनाई गई विधियां
1. निवारक निरोग अधिनियम, 1950 :
भारत की संसद ने 26 फरवरी 1985 को पहला निवारक निरोध अधिनियम पारित किया था। इसका उद्देश्य राष्ट्र विरोधी तत्वों को भारत की प्रतिरक्षा के प्रतिकूल कार्य से रोकना था। इसे 1 अप्रैल 1951 ईस्वी को समाप्त हो जाना था, किंतु समय-समय पर इसका जीवनकाल बढ़ाया जाता रहा, अंततः यह 31 दिसंबर 1971 को समाप्त हुआ था।
2. आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम, 1971 (MISA) :
44 में संवैधानिक संशोधन (1979) इसके प्रतिकूल था और इस कारण अप्रैल 1979 इसी में यह समाप्त हो गया।
3. विदेशी मुद्रा संरक्षण व तस्करी निरोधक अधिनियम,1974 :
पहले इसमें तस्करों के लिए नजरबंदी की अवधि 1 वर्ष थी, जिसे 13 जुलाई 1984 को एक अध्यादेश के द्वारा बढ़ाकर 2 वर्ष कर दिया गया है।
4. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, 1980 :
जम्मू कश्मीर के अतिरिक्त अन्य सभी राज्य में लागू किया गया।
5. आतंकवादी एवं विध्वंसकारी गतिविधियां निरोधक कानून (टाडा) :
निवारक निरोध व्यवस्था के अंतर्गत अब तक जो कानून बने उनमें यह सबसे अधिक प्रभावी और सर्वाधिक कठोर कानून था। 23 मई, 1995 ईसवी को इसे समाप्त कर दिया गया।
6. पोटो (Prevention of Terrorism Ordinance 2001) :
इसे 25 अक्टूबर, 2001 को लागू किया गया। पोटो टाडा का ही एक रूप है। इसके अंतर्गत कुल 23 आतंकवादी गुटों को प्रतिबंधित किया गया है। आतंकवादी और आतंकवादियों से संबंधित सूचना को छिपाने वालों को भी दंडित करने का प्रावधान किया गया है। पुलिस शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है, किंतु बिना आरोप पत्र के 3 माह से अधिक हिरासत में नहीं रख सकती।
पोटा के अंतर्गत गिरफ्तार व्यक्ति हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट मैं अपील कर सकता है, लेकिन यह फिर भी गिरफ्तारी के 3 माह बाद ही हो सकती है। फोटो 28 मार्च 2002 को अधिनियम बनाने के बाद पोटा (Prevention of Terrorism Act) हो गया। 21 सितंबर 2004 को इस को अध्यादेश के द्वारा समाप्त कर दिया गया।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार :-
अनुच्छेद 23 (मानव के दुर्ग व्यापार और बलात श्रम का प्रतिषेध) :
इसके द्वारा किसी व्यक्ति की खरीद बिक्री, बेगारी तथा इसी प्रकार का आने जबरजस्ती लिया हुआ श्रम निषेध ठहराया गया है जिस का उल्लंघन विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है।
नोट : जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है।
अनुच्छेद 24 (बालकों के नियोजन का प्रतिषेध) :
14 वर्ष से कम आयु वाले किसी बच्चे को कारखानों खानों या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार :-
अनुच्छेद 25 (अंतः करण की और धर्म के अवैध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता) :
कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार प्रसार कर सकता है।
अनुच्छेद 26 (धार्मिक कार्यों के प्रतिबंध की स्वतंत्रता) :
व्यक्ति को अपने धर्म के लिए संस्थाओं की स्थापना में पोषण करने, विधि सम्मत संपत्ति के अर्जन, स्वामित्व व प्रशासन का अधिकार है।
अनुच्छेद 27 :
राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है, जिसकी आज किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक संप्रदाय की उन्नति या पोषण में वह करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है।
अनुच्छेद 28 :
राज्य विधि से पूर्णता पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी। ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्म पर देश को बलात सुनने हैं हेतु बाध्य नहीं कर सकते।
5. संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार :-
अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण) :
कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है और केवल भाषा, जाति, धर्म और संस्कृति के आधार पर उसे किसी भी सरकारी सैनिक संस्था में प्रवेश से नहीं रोका जाएगा।
नोट :
वर्तमान में 6 समुदायों मुस्लिम, पारसी, ईसाई, सिख, बौद्ध एवं जैन को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा प्रदान किया गया है अल्पसंख्यक समुदाय के विकास को समुचित आधार प्रदान करने के लिए 2005 में तत्कालीन केंद्र सरकार के द्वारा प्रधानमंत्री का 15 सूत्रीय कार्यक्रम प्रारंभ किया गया।
अनुच्छेद 30 (शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार) :
कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्था चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह की भेदभाव नहीं करेगी।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार :-
‘संवैधानिक उपचारों के अधिकार’ को डॉ भीमराव अंबेडकर ने संविधान की आत्मा कहा है।
अनुच्छेद 32 :
इसके अंतर्गत मौलिक अधिकारों को परिवर्तित करने के लिए समुचित कार्रवाइयों द्वारा उच्चतम न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को 5 तरह के समादेश (writ) निकालने की शक्ति प्रदान की गई है –
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus),
2. परमादेश (Mandomus),
3. प्रतिषेध लेख (Prohibition),
4. उत्प्रेषण
5.अधिकार पृच्छा-लेख (Quo-warranto)।
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण :
परमादेश का लेख उस समय जारी किया जाता है, जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है। इस प्रकार के आज्ञा पत्र के आधार पर पदाधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता हैं
2. परमादेश :
यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है, जोया समझता है कि उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है, इसके द्वारा न्यायालय बंदी करण करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाए गए व्यक्ति को निश्चित स्थान और निश्चित समय के अंदर उपस्थित करें, जिसे न्यायालय बंदी बनाए जाने के कारणों पर विचार कर सकें।
3. प्रतिषेध लेख :
या ज्ञापत्र सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय द्वारा निम्न न्यायालय व अर्ध न्यायिक न्यायिक अधिकारियों को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामले में अपने यहां कार्यवाही न करें, क्योंकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
4. उत्प्रेषण :
इसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास लंबित मुकदमों के न्याय निर्णयन के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजें।
5. अधिकार पृच्छा-लेख :
जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है, जिस के रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं है, तो न्यायालय अधिकार पृच्छा के आदेश के द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह व्यक्ति किस अधिकार से कार्य कर रहा है और जब तक वह इस बात का संतोषजनक उत्तर नहीं देता, वह कार्य नहीं कर सकता है।
मौलिक अधिकार में संशोधन :-
1. गोकुलनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967 ईसवी) कैनेडा से पूर्व दिए गए निर्णय ओ मैया निर्धारित किया गया था कि संविधान के किसी भी भाग में संशोधन किया जा सकता है, जिसमें अनुच्छेद 368 एवं मूल अधिकार को शामिल किया गया था।
2. सर्वोच्च न्यायालय ने गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्यवाद (1967 ई.) कनाडा में अनुच्छेद 368 में निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से मूल अधिकारों में संशोधन पर रोक लगा दी। अर्थात संसद मूल अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती है।
3. 24वें संविधान संशोधन (1971ई.) द्वारा अनुच्छेद 13 और 368 में संशोधन किया गया तथा या निर्धारित किया गया कि अनुच्छेद 368 में दी गई प्रक्रिया द्वारा मूल अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है।
4. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्यवाद के निर्णय में इस प्रकार के संशोधन को विधि मंत्र प्रदान की गई अर्थात गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के निर्णय को निरस्त कर दिया गया।
5. 42 वें संविधान संशोधन (1976 ईस्वी) द्वारा अनुच्छेद 368 में खंड 4 और 5 जोड़े गए तथा यह व्यवस्था की गई किस प्रकार किए गए संशोधन को किसी न्यायालय में प्रश्न गत नहीं किया जा सकता है।
6. मिनर्वा मेल्स बनाम भारत संघ (1980 ई.) कनाडा के द्वारा या निर्धारित किया गया कि संविधान के आधारभूत लक्षणों की रक्षा करने का अधिकार न्यायालय को है और न्यायालय इस आधार पर किसी भी संशोधन का पुनरावलोकन कर सकता है इसके द्वारा 42 वें संविधान संशोधन द्वारा की गई व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया।
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निष्कर्ष :
इस लेख में मूल संविधान में कितने मौलिक अधिकार हैं तथा वर्तमान में कितने हैं इन सभी के बारे में विस्तार रूप से बताया गया है जैसे-समता या समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार इन छह मौलिक अधिकारों को विस्तार से सारी जानकारियां लिखी गई है।
तथा मौलिक अधिकारों के संशोधन के बारे में भी बताया गया है। इस लेख को पढ़कर आप मौलिक अधिकारों के बारे में अच्छे से याद कर सकते हैं।
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