ये जो लोग देशभक्ति का दिखावा कर सत्ता का मजा लूट रहे हैं। ये जो लोग देशभक्ति का ढकोसला कर सत्ता को हथियाना चाहते हैं। ये जो लोग तिरंगा हाथ में लेकर भारत माता की जयकार कर अपने को देशभक्त समझ लेते हैं। मैं उन लोगों को बता दूं कि स्वार्थी नेताओं और स्वार्थी जनता ने असली देशभक्तों को बस पीड़ा, कष्ट और गुरबत ही दी है। कहाँ है भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद बोस का परिवार ? इन क्रांत्तिकारियों ने देश के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया। औऱ जिन लोगों ने देश से गद्दारी की, उनके परिवार देख लीजिए।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के परिवार ने न केवल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को कुचलवाया था बल्कि झांसी की रानी की हत्या करवाकर अंग्रेजों के साथ जश्न भी मनाया था। इस परिवार को न् केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा ने भी बढ़ावा दिया पटौदी परिवार ने भी देश से गद्दारी की। ये तो मात्र उदाहरण मात्र हैं। आजादी के बाद का देश का यही स्वरूप है।
दरअसल जो लोग अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे थे। अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी सम्पति कब्जाकर अपने चाटूकारों को दे दी थी। मतलब आजादी के बाद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले कंगाल और अंग्रेजों के चाटुकार मालामाल हो गए थे। हम लोग तो ठहरे पूंजीवाद के गुलाम। हम लोग देशभक्तों को नकार कर निजी स्वार्थ के चलते पूंजीवाद को बढ़ावा देते रहे।
मतलब देशभक्ति से ज्यादा तवज्जो पैसे को देते रहे। नतीजा सामने है। विधानसभाओं के साथ ही संसद में भी पूंजीवाद के बल पर आगे बढ़े लोग बैठे हैं। देश और समाज के प्रति समर्पित लोग तो बेचारे समाज से ही दरकिनार कर दिए गए हैं।
मैंने यह देशभक्ति की भूमिका इसलिए बनाई क्योंकि मौजूदा सरकार में बैठे लोग मुस्लिमों की हुकूमत का हवाला देते हुए हिंदुओं की बहुत पैरवी करते हैं। हालांकि मैं हिन्दू राजाओं और मुस्लिम शासकों की तुलना करने से बचता हूं पर प्रकरण ही ऐसा है कि इसके बिना न् शुरुआत हो सकती है और न् ही अंत।
दरअसल आज जब दोपहर को मैं एक ठेले पर छोले भटूरे लेने गया तो मैंने वहां एक लड़की को भटूरे पर ही छोले रखकर खाते हुए देखा लड़की न् केवल स्वस्थ और सुंदर थी बल्कि संस्कारिक भी थी। उसके साथ दो लड़कियां और थी। उसके संस्कार मैंने तब महसूस किए जब जब मैंने छोले भटूरे लिए तो छोले के साथ नीबू भी रखने को कहा। उस लड़की ने शुक्रवार को संतोषी मां की दिन बताते हुए नीबू न् खाने की नसीहत मुझे दी। इतनी बारीक बात कोई शहरी संस्कृति में पला बड़ा बच्चा तो बोल नहीं दे सकता।
तो मैंने उस लड़की से उसका क्षेत्र पूछा उसने मूल रूप से अपने को राजस्थान का बताया । मुझे उसका हल हुलिया देखकर समझते देर न् लगी। यह लड़की बागड़िया परिवार से थी। जिस तरह से वह लड़की भटूरे पर ही छोले रखने के लिए ठेले वाले विनती कर रही थी मुझे लगा कि वह अभी भी भूखी है। मैंने उस ठेले वाले से इन उस लड़की को भटूरे खिलाने के लिए कहा तो उस लड़की ने बड़े स्वाभिमान से मुझसे बस एक भटूरे के दस रुपये मांगे। दस रुपये लेकर उसने मेरा आभार व्यक्त किया। इस प्रकरण से महसूस किया कि महाराणा के साथ अपने घरों से निकले लोगों के बच्चे किस हालात में हैं और महाराणा प्रताप के नाम से राजनीति कर रहे लोगों के बच्चे कितनी ऐशोआराम की जिंदगी बिता रहे हैं। दरअसल देश में बागड़िया समूह उस घुमंतू जाति के लोगों का है जो महाराणा प्रताप की सेना के हथियार बनाते थे। ये लोग घर परिवार छोड़कर महाराणा के साथ हो लिए थे।
और आज भी बिना अपने घर के सड़क किनारे बसकर किसी तरह से गुजर बसर कर रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि जैसे महाराणा ने अपनी भूमि को आजाद कराने के लिए घर बाहर छोड़ दिया था। ऐसे ही उन्होंने भी अपना घर परिवार छोड़ रखा है। आज की तारीख में इन लोगों के आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप लगातार लगते हैं।
यह लेख लिखने का मेरा मकसद यह है कि जब मोदी सरकार हिंदुओं की इतनी पैरोकार बन रही है। जब ये लोग महाराणा प्रताप को मानने का इतना दिखावा करते हैं तो कम से कम बागड़िया जाति के लोगों का पुनर्वास ही करा दें।