मुस्लिम लड़की से प्रेम करने पर महाराजा रणजीत के कपड़े उतारे: 100 कोड़ों की सजा, पूर्व गृहमंत्री को जूते साफ करना पड़ा; कहानी श्री अकाल तख्त की

साल 1994, जगह अमृतसर का श्री अकाल तख्त साहिब। राजीव गांधी सरकार में ताकतवर गृहमंत्री रहे बूटा सिंह गले में माफीनामे का तख्त लटकाए बर्तन धो रहे थे, जूते साफ कर रहे थे।

उन्हें ऐसा करने के लिए सिखों की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था श्री अकाल तख्त ने सजा सुनाई थी। वहीं श्री अकाल तख्त जिसने मुस्लिम लड़की से प्रेम करने पर महाराजा रणजीत सिंह को 100 कोड़ों की सजा सुनाई थी। जहां पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को हाजिर होना पड़ा।

इसकी स्थापना सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद साहिब ने की थी। यह सिखों का सबसे प्रमुख धार्मिक केंद्र है। सिखों से जुड़े बड़े फैसले यहीं से होते हैं।

पंथ सीरीज में उसी श्री अकाल तख्त की कहानी जानने मैं दिल्ली से करीब 450 किलोमीटर दूर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पहुंची।

पहले यह किस्सा पढ़िए……

बात उस वक्त की है, जब पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह का दिल 13 साल की एक नाचने वाली लड़की पर आ गया। उस लड़की का नाम था मोहरान । महाराजा उसे अपनी प्रेमिका बनाकर रखना चाहते थे, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। मोहरान ने महाराजा से कहा कि मैं मुसलमान हूं, प्रेमिका बनकर नहीं रह सकती। आप चाहें तो मुझसे शादी कर सकते हैं। रणजीत सिंह शादी के लिए तैयार हो गए। इसी बीच मोहरान के पिता ने एक शर्त रख दी। उन्होंने कहा हमारे यहां एक प्रथा है। जो भी होने वाला दामाद होता है, उसे अपने ससुर के घर चूल्हा जलाना होता है। मोहरान के पिता को लगा कि महाराजा इसके लिए तैयार नहीं होंगे, लेकिन रणजीत सिंह ने बिना पलक झपकाए अपने होने वाले ससुर की शर्त मान ली। सिखों की धार्मिक संस्था श्री अकाल तख्त ने महाराज के इस फैसले पर नाराजगी जताई। महाराजा को श्री अकाल तख्त के सामने पेश होने का आदेश दिया गया।

पहली बार रणजीत सिंह पेश नहीं हुए । इसके बाद उस वक्त के अकाल तख्त के जत्थेदार अकाली फूला सिंह ने आदेश दिया कि कोई सिख महाराजा को सलाम नहीं करेगा और ना ही स्वर्ण मंदिर में उनका प्रसाद स्वीकार किया जाएगा। लोगों ने महाराजा को सलाम करना बंद कर दिया। उनका चढ़ाया प्रसाद भी लिया जाना बंद हो गया। आखिरकार रणजीत सिंह श्री अकाल तख्त में पेश हुए। रणजीत सिंह ने कहा कि उनसे गलती हुई है। इसके लिए वे माफी चाहते हैं। उन्हें जो सजा दी जाएगी, वे उसे मानेंगे। रणजीत सिंह को सौ कोड़े मारने की सजा सुनाई गई। इसके लिए उनकी कमीज उतारी गई और एक इमली के पेड़ से बांध दिया गया।

सुबह 8 बजे का वक्त। स्वर्ण मंदिर की सफेद संगमरमर पर नंगे पांव चलना बर्फ पर चलने जैसा लग रहा था। मुख्य गेट से होते हुए कुछ सीढ़ियां चढ़कर अंदर पहुंची। गुरु ग्रंथ साहिब के पास श्रद्धालु बैठे थे। पाठी पाठ कर रहे थे। यहां माथा टेकने के बाद बाहर निकली।

इसी मंदिर परिसर में ठीक पीछे पांच मंजिला श्री अकाल तख्त साहिब है। सुबह चहल-पहल है। लोग दर्शन के लिए आ रहे हैं। दूसरे फ्लोर पर गुरु ग्रंथ साहिब की मौजूदगी है। पास में ही सुनहरी गुंबद की तरह एक चौकी है, जिसमें सिख जरनैलों के शस्त्र रखे हैं। इसके ठीक सामने एक बरामदा है। यहीं से श्री अकाल तख्त के जत्थेदार फैसला सुनाते हैं।

श्री अकाल तख्त साहिब के सामने मखमली कालीन बिछाई गई है, जहां कुछ अंग्रेज भी बैठे हैं। वे ढाढी संगीत शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं। सिखों के छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने सिखों में जोश भरने के लिए इसकी शुरुआत की थी। इसमें शहीद सिखों की वीरता की कहानियां सुनाई जाती हैं। 9 बजते ही नौजवान गुरसेवक अपनी टीम के साथ ढाढी संगीत की शुरुआत करते हैं। हाथों में सारंगी और डमरू । किस्सागोई अंदाज में मुगल शासकों के सिखों पर हमले की कहानियां सुनाई जा रही हैं। कैसे अहमद शाह अब्दाली ने स्वर्ण मंदिर पर कब्जा किया। कैसे सिक्खों का कत्ल किया। उसका कैसे सिखों ने मुकाबला किया, कैसे मुगलों को पटखनी दी… बीच-बीच में बोले सो निहाल सत श्री अकाल गूंज रहा है।

Swami Vivekananda’s teaching inspires youth to work for nation-building – Nikhil Yadav 

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माटीकला से जुड़े 3 शिल्पकार को किया गया सम्मानित

माटीकला से जुड़े शिल्पकारों के उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए शुक्रवार 24 मार्च को सम्मानित किया गया। इसमें पहला पुरस्कार जिले के हस्त शिल्पकार सतीश चंद्र को , दिया गया। दूसरा पुरस्कार सिद्धार्थनगर के अवधेश कुमार को जबकि तीसरा पुरस्कार संत कबीर नगर के राजेंद्र कुमार को दिया गया।

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