मैं लोगों का डर खत्म करना चाहता हूं
ताकि वह अपने आप को पहचान सके
अपनी हिम्मत को पहचान सके,अपनी कीमत को पहचान सके
अपने आत्मविश्वास को जगा सके l
क्योंकि यह डर ही है जो लोगों को लालची और स्वार्थी बनाता है
डराकर शोषण किया जाता है और डर से ही शोषण होता है
एक सच्चा ईमानदार इंसान गलत न होने पर भी पुलिस से डरता है
डाक्टर के पास जाने में उसकी फीस उसके द्वारा कराई जाने वाली जांचों से डरता है, उसके द्वारा लिखी जाने वाली दवाइयों से डरता है
स्कूल में चले जाओ तो वहां के प्रबंधन और अध्यापकों का डर रहता है कि पता नहीं ये कितनी फीस लेंगे, किस-किस ट्यूशन का दबाव बनेगा
जमीन खरीद लो तो रजिस्ट्री कराने में आने वाली समस्याओं का डर, नक्शा बनवाओ तो उसे पास कराने का डर, मकान बनवाओ तो मजदूर और ठेकेदारों द्वारा गड़बड़ कर देने का डर, बिजली का भारी बिल आने का डर
बैंकों में खाता खुलवाने जाओ या किसी अन्य काम से जाओ तो किससे पूछें कि यह काम किस काउंटर पर होगा, इस बात का डर
शादी के बाद पत्नी और बच्चों को किस तरह से खुश रखें इस बात का तनाव और तनाव से उपजा हुआ डर
इस तरह के हजारों डर हैं जो रोज हमारी जिंदगी में आते हैं जाते हैं। हम उनका सामना करते हैं। कुछ लोग रिश्वत के सहारे पार लग जाते हैं तो कुछ लोग जीवन भर डर के कारण ठीक से सर उठाकर जी भी नहीं पाते।
मैं ऐसे ही लोगों को सर उठा कर जीना सिखाना चाहता हूं। डर की हर उस वजह को खत्म कर देना चाहता हूं जिससे लालच और स्वार्थ पनपता है।
मैं खत्म कर देना चाहता हूं इस समाज के कुरीतियों को
मैं आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूं लोगों को ताकि लोग अपनी गुलामी की मानसिकता से आजाद हो सके
मैं लोगों को सर उठा कर जीना सिखाना चाहता हूं ताकि वह अपनी आजादी का मकसद समझ सके
मैं तोड़ देना चाहता हूं उस हर एक दीवार को जो गुलामी की तरफ ले जाती हो
मैं खत्म कर देना चाहता हूं सारी बंदिशों को
मैं चलाना चाहता हूं लोगों को ताकि लोग जागे और दूसरों को भी जगाए
हो सकता है इस काम में मैं कभी सफल न हो पाऊं, इस दुनिया से यूं ही चला जाऊं।
लेकिन मरते दम तक हार तो नहीं मानूंगा।
और मेरे मरने के बाद भी गंगा में बहती मेरी हस्तियां यही चिल्ला चिल्ला के कहेंगे के डर से बाहर निकलो
गंगा के पानी से निकलती मेरे भारत को डर मुक्त बनाने कि मेरी आह लोगों को हृदय से खोज कर रख देगी l