
हर साल इसकी क़ीमत गिरी👇🏿
👉🏾2013 में 4600 रुपया/क्विंटल
👉🏾2014 में 3900 रुपया/क्विंटल
👉🏾2015 में 3800 रुपया/क्विंटल
👉🏾2016 में 3600 रुपया/क्विंटल
👉🏾2017 में 3400 रुपया/क्विंटल
👉🏾2018 में 3100 रुपया/क्विंटल
👉🏾2019 में 2400 रुपया/क्विंटल
👉🏾2020 में 1800 रुपया/क्विंटल
जानते हो क्यू इनकी क़ीमत गिरी👇🏿
सरकार कभी भी बासमती धान की #क़ीमत तय नही करती, इसकी क़ीमत बाज़ार में माँग और #आपूर्ति तय करती है, अगर #माँग बढ़ेगी तो भाव बढ़ेगा लेकिन इसके विपरीत माँग घटेगी तो #भाव गिरेगा!!
साथियों👇🏿
हालहि में लाए #कृषि_क़ानून की मदद से सरकार किसानो को बाज़ार के हवाले करना चाहती है और बाज़ार में किसी भी उत्पाद की क़ीमत माँग और आपूर्ति तय करता है ना कि #किसान की खेती में लगने वाली लागत….
इन क़ानूनों के बाद हो सकता है क़ि आपका गेहूँ जो 1970 तय है वो 1000 बिके या उससे भी कम क्योंकि #विदेशी समझौते हो रखे और वो तैयार बैठे है, भारत के बाज़ार में अपना माल #डम्प करने के लिए….
एक तरफ़ तो आपका माल भारत के बाज़ार में आएगा दूसरी तरफ़ विदेशी सस्ता माल फिर माँग और आपूर्ति आपके उत्पाद की क़ीमत तय करेगी और इसको कैसे कंट्रोल करना है, वो आवश्यक #वस्तु_अधिनियम में संशोधन से हो चुका है…..
जैसे ही आपकी फसल आएगी, #पूँजीपति अपना #गोदाम खोलेगा, बाज़ार में माल होगा लेकिन ख़रीददार नही, फिर वो माँग ना होने का बहाना मारेगा और किसान से सारा माल सस्ते में ख़रीद लेगा और फिर उसको उपभोक्ता को महंगा बेचेगा:-सोनू शर्मा
“क़ानून में कही भी नही लिखा कि किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य मिलेगा, उसके साफ़ लिखा है कि किसान को बाज़ार के हवाले करना है”