श्रीलंका में आपातकाल ! भारत के लिए सबक ! 1 :-

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श्रीलंका में आर्थिक संकट के बाद भारत को भी इससे सबक लेना चाहिए कि ऐसी गलतियां इसके बाद भारत में ना हो सके। श्रीलंका में जो राजपक्षे परिवार सत्ता में है उसने पिछले कार्यकाल में देश को चीन का पिट्ठू बना दिया था। आज जब वह संकट में है तब चीन सिर्फ़ अफ़सोस ही जता रहा है।किसी देश में अगर पेट्रोल पंपों पर सेना तैनात करनी पड़े और कागज़ की किल्लत के चलते परीक्षाएं रद करनी पड़ें तो सहज ही समझा जा सकता है कि वहां के हालात कितने खराब हो चुके हैं।

श्रीलंका में आपातकाल ! भारत के लिए सबक !

श्रीलंका में इन दिनों ऐसी ही परिस्थितियां बनी हुई हैं। गहरे आर्थिक संकट ने श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न कर दी है। जनता भी सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल के सामूहिक इस्तीफे से भी उनका आक्रोश कम नहीं हुआ। ‌सत्ता प्रतिष्ठान भी जनभावनाओं से अवगत है।पूरे परिदृश्य की विकटता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि संकट के मूल में जो खस्ताहाल अर्थव्यवस्था है, उसकी सेहत सुधारने के लिए एक नए वित्त मंत्री की नियुक्ति की गई, पर नवनियुक्त वित्त मंत्री ने मात्र 24 घंटों में अपना पद छोड़ना सही समझा।

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आखिर श्रीलंका में आर्थिक संकट आया कैसे 1 ?

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इसीलिए उसने सरकार भंग करके राष्ट्रीय सरकार के गठन की पहल से विपक्ष को साधने का प्रयास किया, पंरतु विपक्ष सरकार के साथ सहयोग के लिए तत्पर नहीं, स्थिति नियंत्रण से निकलती देख आपातकाल लगा दिया गया था। लेकिन अब आपातकाल हटा दिया गया है।

श्रीलंका में कंगाल होने की नौबत क्यों आई? :-

श्रीलंका में कंगाल होने की नौबत श्रीलंका की वजह से ही आया है क्योंकि श्रीलंका की मंजूरी से ही चीन ने उसे कर्ज दिया था पर चीन ने भी उसके साथ अच्छा नहीं किया।श्रीलंका की मौजूदा स्थिति देखकर किसी को भी हैरानी हो सकती है। नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस द्वीपीय देश में अपेक्षाकृत राजनीतिक स्थायित्व रहा है। वह पहले ही लंबे समय तक गृहयुद्ध की चपेट में भी रहा। यहां पर इतनी बुरी हालत हो गई की महंगाई काफी ज्यादा बढ़ गई।

श्रीलंका में आपातकाल, भारत के लिए सबक –

आप इस वीडियो के माध्यम से भी अच्छे से समझ सकते हैं।

Watch video :- https://youtu.be/jpUh26ax1Ww

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जिससे उसकी अर्थव्यवस्था अपनी श्रेणी के तमाम देशों से अच्छा प्रदर्शन करती रही। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक में भी श्रीलंका का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा। आखिर ऐसा क्या हुआ कि वह कंगाली के कगार पर पहुंच गया? इसकी पड़ताल करें तो यही निकलेगा कि यह सब अचानक नहीं हुआ। और कोरोनावायरस के कारण भी ऐसे संकट श्रीलंका में आया। जिस पर श्रीलंका या किसी और देश का कोई नियंत्रण नहीं था। इसके अलावा अपनी दयनीय स्थिति के लिए श्रीलंका स्वयं भी जिम्मेदार है, जिसने ना समझे की नीतियां अपनाकर अपनी खुद की इतनी दयनीय दशा कर ली।

वास्तव में इन नीतियों के चलते आर्थिक संकट की बहुत पहले से ही श्रीलंका को पता थी। यह बात और है कि उसने अब जाकर अपना वास्तविक रूप प्रदर्शित किया।

श्रीलंका में आर्थिक संकट का जैविक खेती भी है एक प्रमुख कारण :-

श्रीलंका की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन पर आधारित है। इसका अंदाज़ा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि श्रीलंकाई जीडीपी(GDP) में पर्यटन की हिस्सेदारी करीब 12.5% है और कोरोनावायरस से पहले दौर में यही क्षेत्र श्रीलंका में सबसे तेजी से वृद्धि दर्ज कर रहा था, लेकिन कोविड संबंधी प्रतिबंधों और महामारी के खौफ ने पर्यटन गतिविधियों पर विराम लगा दिया। रही-सही कसर श्रीलंकाई सरकार की नीतियों ने पूरी कर दी।

लोकलुभावन राजनीति के लोभ में सरकार ने कर की दरों में भारी कटौती कर दी। इससे न केवल राजस्व की क्षति हुई, बल्कि सरकारी ख़जाने के गड़बड़ाते गणित को देखते हुए वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका की साख पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए।

इससे कोलंबो के लिए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय तंत्र से किफायती दर पर वित्तीय संसाधन जुटाना दूभर होता गया। श्रीलंका चीन जैसे देश पर और निर्भर होता गया, जिसका उस पर पहले से कड़ी शर्तो वाले क़र्ज़ का अंबार था। मुश्किलें केवल यहीं तक सीमित नहीं रहीं। खेती में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग पर प्रतिबंध का तुगलकी फरमान जारी हुआ, जबकि जैविक खेती की दिशा में रातोंरात कदम बढ़ाना संभव नहीं था।

इसका परिणाम यह हुआ कि पारंपरिक कृषि उत्पादन को भी आघात पहुंचा। हालांकि बाद में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग संबंधी फैसले को पलट दिया गया, लेकिन तब तक बहुत देर चुकी थी और एक विकराल खाद्य संकट दस्तक देने की तैयारी कर चुका था। इसका ही परिणाम है कि आज श्रीलंका वित्तीय एवं खाद्य संकट से इतना त्रस्त हो गया है कि उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है।

भारत कर रहा श्रीलंका की हर संभव मदद :-

इस समय श्रीलंका में जिस राजपक्षे परिवार की सत्ता है, उसने अपने पिछले कार्यकालों में एक प्रकार से श्रीलंका को चीन का पिट्ठू बना दिया था। भारत जैसे स्वाभाविक एवं पारंपरिक साङोदार को उसने अपनी प्राथमिकता से हटा दिया, लेकिन आज जब श्रीलंका एक अप्रत्याशित संकट से संघर्ष कर रहा है तब चीन केवल अफसोस जताकर रह गया।

मदद तो दूर की बात, चीन ने श्रीलंका को दिए अपने क़र्ज़ की शर्तो में भी ढील देने से इन्कार कर दिया। तब श्रीलंका ने भारत से ही मदद की गुहार लगाई और नई दिल्ली ने भी कोलंबो के प्रति पूरी उदारता दिखाई। भारत ने न केवल श्रीलंका को उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए क्रेडिट लाइन उपलब्ध कराई है, बल्कि खाद्य सामग्री के स्तर पर भी हरसंभव मदद कर रहा है‌। जनवरी और फरवरी में भारत श्रीलंका को करीब 6,500 करोड़ रुपये का क़र्ज़ दे चुका है।

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इसके अलावा पिछले महीने दोनों देशों में सहमति बनी है कि भारत श्रीलंका को करीब 7,500 करोड़ रुपये का क़र्ज़ और उपलब्ध कराएगा। बीते दिनों भारत ने 40,000 टन चावल भी श्रीलंका भेजा है। इसके साथ ही वहां ईंधन की भारी किल्लत को देखते हुए बड़ी मात्र में डीजल भी भिजवाया है।बेहतर होगा कि भारत बिम्सटेक या ऐसे ही किसी अन्य मंच के माध्यम से समान विचार वाले देशों को साथ लेकर श्रीलंका के लिए कोई व्यापक समाधान निकालने की दिशा में आगे बढ़े।

इससे जहां भारत के नेक इरादे और नेतृत्व क्षमता प्रदर्शित होगी।

सतर्क रहने भी की काफी ज़रूरत :-

श्रीलंका और भारत की सीमाएं बहुत दूर नहीं हैं और एक पड़ोसी के नाते यह भारत की जिम्मेदारी भी है कि वह मुश्किल में फंसे मित्र देश की मदद करे, लेकिन इसके साथ ही भारत को सतर्क भी रहना होगा कि वहां यदि हालात और बिगड़ते हैं तो हमारे लिए शरणार्थियों का एक नया संकट खड़ा हो सकता है। भारत को इसमें भी सावधानी बरतनी होगी कि वह श्रीलंका में सीधा हस्तक्षेप करता न दिखे, क्योंकि अतीत में इसे लेकर हमारे कटु अनुभव रहे हैं।

इस लिहाज से भारत सरकार ने उन अटकलों को समय से खारिज़ करके बिल्कुल सही किया कि श्रीलंका में अपनी सेना भेजने की उसकी कोई मंशा नहीं है। बेहतर होगा कि भारत बिम्सटेक या ऐसे ही किसी अन्य मंच के माध्यम से समान विचार वाले देशों को साथ लेकर श्रीलंका के लिए कोई व्यापक समाधान निकालने की दिशा में आगे बढ़े।

इससे जहां भारत के नेक इरादे और नेतृत्व क्षमता प्रदर्शित होगी, वहीं चीन के चंगुल में फंसते जा रहे देशों को भी एक आवश्यक सबक मिलेगा। साथ ही यह सीख भी मिलेगी कि लोकलुभावन नीतियों और मुफ्तखोरी वाली राजनीति दीर्घ अवधि में आत्मघाती ही सिद्ध होती है।

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श्रीलंका के पर्यटन स्थल :-

श्रीलंका के आर्थिक संकट का एक कारण यह भी है कि श्रीलंका की जीडीपी का कुछ हिस्सा पर्यटन से भी बढ़ती थी लेकिन कोरोनावायरस के कारण यह बहुत ज्यादा प्रभावित हो गई। जिससे यहां की सरकार ने आयात पर भी रोक लगाई।

श्रीलंका के कुछ विशेष पर्यटन स्थल

विदेशी मुद्रा के खत्म होने के कारण इसकी सरकार ने आयात थोड़ा धीरे धीरे कम कर रही थी उसे यह लग रहा था कि ऐसा करने से विदेशी मुद्रा खत्म नहीं होगी पर ऐसा कुछ नहीं हुआ धीरे-धीरे विदेशी मुद्रा भी खत्म हो गई और यहां की हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई और लोग आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। यहां की जनता सरकार की विरोध में सड़कों पर उतर आई है क्योंकि महंगाई यहां पर बहुत ज्यादा बढ़ गई थी।

श्रीलंका के पर्यटन स्थल

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