अंग्रेजों को भारतीय क्षेत्र पर विजय तथा अधिकार करने के दौरान कठोर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। सन् 1857 ईसवी के विद्रोह ने तो ब्रिटिश हुकूमत को हिला कर रख दिया था। इस विद्रोह में पहली बार भारतीय शासकों ने मिलकर, विदेशी शक्तियों को देश से खदेड़ने का प्रयास किया।

विस्तार तथा सहभागिता की प्रकृति की दृष्टि से इस विद्रोह को स्वतंत्रता का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम या प्रथम संघर्ष माना जाता है। तत्कालीन ब्रिटिश प्रशासकों ने इस विद्रोह को ‘ सिपाही विद्रोह ‘ की संज्ञा दी। निःसंदेह या विद्रोह एक संगठित आंदोलन था। सैद्धांतिक रूप से यह विद्रोह विदेशियों के विरुद्ध किया गया था तथा स्वतंत्रता के लिए इच्छा का प्रतिनिधित्व करता था।
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Table of Contents
सन 1857 के विद्रोह के प्रमुख कारण (Causes of Revolt 1867 AD) :-
सन 1857 ईस्वी के विद्रोह के निम्नलिखित कारण थे-
1. राजनीतिक कारण :-
ब्रिटिश शासकों की विजय तथा अधिकार करने की नीतियों ने भारतीय शासक वर्ग को ही नहीं अपितु सामान्य भारतीय लोगों की भावनाओं को भी प्रभावित किया। राजनीति नियंत्रण के पश्चात अपनाई गई नीतियों ने निवेश सरकार के हितों का ही संरक्षण किया।
इससे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, पेशवा के दत्तक पुत्र नाना साहब, अवध के नवाब, मुगल सम्राट बहादुरशाह दितीय, राजपूत नेता कुंवर सिंह आदि भारतीय शासक क्रोधित हो उठे।
2. सैन्य कारण :-
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य भारतीय सैनिकों की वफादारी पर आधारित था। किंतु भारतीय सैनिकों का ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा दमन किया जा रहा था। उन्हें वेतन के रूप में बहुत कम धनराशि मिलती थी। उन्हें युद्ध में योग्यता पूर्ण प्रदर्शन के लिए भी कभी भी पुरस्कार नहीं मिलता था।
प्रत्येक स्थिति में उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई जाती थी। ऊंची जाति वाले रंगरूटों को समुद्र पार जाकर नौकरी करने की शर्त ने विच्छेद कर दिया था, क्योंकि समुद्री यात्रा को एक सामाजिक निषेध माना जाता था।
3. आर्थिक कारण :-
बड़ी संख्या में जागीरदारों के अधिकार समाप्त हो गए। लगभग 20,000 जमीदारों की भूमि केवल दक्कन में ही गवर्नर जनरल डलहौजी के शासनकाल में छीन गई। लॉर्ड विलियम बैटिंग के काल में भी बहुत से जमीदारों के भूमि के अधिकार छिन गए थे। अवध में भी अनेक धनाढ्य ताल्लुकेदारों के तारों की भूमि के स्वामित्व छिन गए थे।
राजस्व बंदोबस्त की नई व्यवस्थाओं के अंतर्गत साधारण किसानों को भी भारी नुकसान हुई। किसान ग्रामीण ऋणग्रस्तता तथा के दुष्चक्र में गिरते ही गए। कारीगरों तथा देसी व्यापारियों की आर्थिक दशाएं चिंताजनक थी। ब्रिटिश वर्ड एग्जिट नीतियों के कारण भारतीय हस्तशिल्प उद्योग भी पूर्णतः बर्बाद हो गए।
4. सामाजिक कारण :-
पाश्चात्य संस्कृति तथा ब्रिटिश सामाजिक नीतियों का प्रभाव संपूर्ण भारतीय समाज के लिए घातक सिद्ध हुआ। सती प्रथा की समाप्ति, विधवा पुनर्विवाह आदि सामाजिक सुधारों के उपाय, पाश्चात्य शिक्षा को प्रोत्साहन, रेलवे तथा टेलीग्राफ प्रारंभ करना, ईसाई मिशनरियों द्वारा हिंदू धर्म का तिरस्कार आदि पारंपरिक भारतीय समाज के ताने-बाने को क्षति पहुंचाने वाले कारक माने गए।
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5. तात्कालिक कारण :-
सेना में नई एनफील्ड राइफलें लाई गई थी, जिनके कारतूसों पर पशुओं (गाय और सुअर) की चर्बी लगाई गई थी। कारतूस व को खोलने के लिए दातों का प्रयोग करना पड़ता था। इसका हिंदू तथा इस्लाम दोनों ही धर्मों में निषेध था। ब्रिटिश अधिकारियों ने भारतीय सैनिकों को ऐसा करने के लिए विवश किया। विद्रोह का तात्कालिक तथा सबसे महत्वपूर्ण कारण था।
सन 1857 विद्रोह की प्रमुख घटनाएं (Course of the revolt) :-
विद्रोह की प्रथम चिंगारी मार्च सन 1857 ईसवी के बंगाल के बैरकपुर नमक सामी की में एक भारतीय सैनिक मंगल पांडे द्वारा रेजीमेंट के ब्रिटिश अधिकारी को गोली मारने से भड़की। विद्रोह भड़काने की सूचना तमाम देश में आग की बात फैल गई। 10 मई 1857 ईसवी में वास्तविक विद्रोह मेरठ में फैला। भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या कर दी, उनके घर चल गए तथा बंधुओं को मुक्त करा दिया।

सैनिकों ने मेरठ से दिल्ली की ओर कूच किया, जहां भारतीय दुर्ग रक्षक सेना भी उनके साथ हो ली। शीघ्र ही नगर पर उनका नियंत्रण हो गया तथा रात्रि होने के पूर्व ही मुग़ल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय को भारत का सम्राट घोषित कर दिया गया। दिल्ली, बरेली, लखनऊ, कानपुर, आगरा, बनारस, झांसी तथा राजस्थान एवं बिहार में क्रांति के अनेक केंद्र बन गए।
कुंवर सिंह ने बिहार, नाना साहब ने कानपुर, अवध के नवाब के साथ ही अब्दुल्ला ने लखनऊ तथा मुगल सम्राट के साथी फिरोज शाह ने दिल्ली में विद्रोह का नेतृत्व किया। नाना की समर्थक तात्या टोपे ने ग्वालियर तथा रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी में विद्रोह का झंडा लहराया।
सन 1857 विद्रोह का दमन (Suppression of the revolt) :-
प्रारंभ से ही ब्रिटिश नीति विद्रोह को सीमित करने की थी। पंजाब के सिख रेजीमेंट विद्रोह से अलग रही। राजस्थान के अनेक भाग, दक्षिण भारत तथा कश्मीर ब्रिटिश नियंत्रण में बनी रहे। हैदराबाद के निजाम, भोपाल की बेगम, नेपाल के राजा तथा मराठा नेता सिंधिया ब्रिटिश सरकार की सहायता के लिए आगे आए। जनरल निकल सन के नेतृत्व में दिल्ली पर पूरा अधिकार कर लिया।
वृद्धि बहादुर शाह द्वितीय को बंदी बनाकर रंगून भेज दिया गया, जहां सन 1862 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई। उनके दोनों पुत्रों तथा पात्रों को मार दिया गया। लखनऊ ब्रिटिश सेनापति कॉलिंग कैंपबेल के हाथों पराजित हुआ। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई वीरता पूर्वक लड़ते हुए ग्वालियर में शहीद हो गई।
तात्या टोपे को फांसी दे दी गई। कुंवर सिंह भी युद्ध में मारे गए। नाना साहब पराजित होकर नेपाल भाग गए। इस प्रकार स्वतंत्रता के प्रथम संघर्ष 1857 ईसवी को बर्बरता से कुचल दिया गया।विद्रोह के
सन 1857 के असफलता के कारण (Causes of failure of the revolt) :-
यद्यपि क्रांतिकारी बहादुरी पूर्वक लड़े परंतु उनमें संगठित नियंत्रण नहीं था तथा वे संयुक्त मोर्चा भी नहीं बना सके। भारतीय सिपाही बिना किसी कुशल संगठन और आधुनिक हथियारों के ब्रिटिश सेना का मुकाबला नहीं कर सके। मित्रों की कोई पूरे योजना भी नहीं थी। इसलिए ब्रिटिश खोजो तथा कुशल सेनापतियों ने क्रांतिकारियों को बहुत आसानी से पराजित कर दिया।
सन 1857 विद्रोह के परिणाम (Results of the revolt) :-
इस विद्रोह के शीघ्र और दूरगामी परिणाम निकले। भारत पर शासन करने वाले ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन सन 1858 ईस्वी में ब्रिटिश ताज पर स्थानांतरित हो गया। 1 नवंबर सन 1858 ईस्वी को महारानी की घोषणा के साथ देश में नया शासन शुरू हो गया।
इस घोषणा में कहा गया कि ब्रिटिश शासक साम्राज्य विस्तार की इच्छुक नहीं है तथा ब्रिटिश सरकार भारतीय लोगों की सहायता से करना चाहती हैं। लेकिन यह आश्वासन मात्र वादे बनाकर ही रह गए। विद्रोह के द्वारा जो खाई भारतीयों और विदेशी सरकार के मध्य बन गई थी वह कभी भी ना पार्टी जा सकी। इस प्रकार राष्ट्रीय जागरण का आरंभ हुआ।
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अन्य चर्चित आंदोलन (Other popular moment) :-
सन 1857 ईसवी का विद्रोह ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीयों का प्रथम सशस्त्र विद्रोह नहीं था ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध किसानों तथा आदिवासियों के विरुद्ध लोगों का एक लंबा सिलसिला 19वीं शताब्दी के दौरान जारी रहा। कुछ अन्य राजनीतिक सांस्कृतिक आंदोलन भी चलें।
प्रमुख विद्रोह निम्नलिखित हैं।
• सन 1763 ईस्वी में बंगाल में सन्यासियों तथा फकीरों के विद्रोह।
• सन 1830-70 ईस्वी में सैयद अहमद ब्रेवली के नेतृत्व में वहाबियों के विद्रोह।
• सन 1837-48 ईस्वी बंगाल में जादू मियां के नेतृत्व में फौजियों के विद्रोह।
• जमीदारी तथा स्थानीय शासकों के विद्रोह।• दक्षिण भारत के जमीदारों (पोलीगरों) के विद्रोह, त्रावणकोर में विलुथम्बी पर द्वारा (सन 1808 ईस्वी), किटूर की रानी चेन्नम्मा के विद्रोह (1824-30 ईस्वी), बुंदेलों के विद्रोह आदि।
• भील, मुंडा, खांसी, संथाल आदि आदिवासियों के विद्रोह।
कुलीन तथा कृषकों की सहभागिता (Elite and peasants participation) :-
सन 1857 ईसवी के विद्रोह के दौरान अवधि तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संघर्ष में सहायता की। उन्होंने बहादुरी से सर ने कार्यवाही की तथा सफलता भी प्राप्त की, किंतु अपनी देशभक्ति के लिए उन्हें कठोर दंड मिला। विद्रोह के दमन के पश्चात उनसे उनकी भूमि छीनकर जमीदारों को सौंप दी गई।
अब जमीदारों की दया पर निर्भर काश्तकार मात्र बनकर रह गए। कुलीन भारतीयों ने विद्रोह में भाग नहीं लिया। उनका विश्वास था कि ब्रिटिश लोग देश में नई प्रगति लाने के लिए सामंतवादी शक्तियों को नष्ट कर रहे हैं।
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सन 1857 ईस्वी का विद्रोह : एक प्रतीकात्मक अध्ययन (The Revolt of 1857 AD : An Assessment) :-
विद्रोह के दौरान मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर द्वितीय को हिंदुस्तान का सम्राट घोषित किया गया था, यद्यपि एक क्षणिक की था। उस समय तक भारत में राष्ट्रीयता की अवधारणा विकसित नहीं हुई थी, अतः इसे सच्चे अर्थों से राष्ट्रीय संघर्ष नहीं कहा जा सकता; किंतु यह ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष अवश्य था।
विद्रोह के दमन के पश्चात ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग ने सभी विद्रोहियों को क्षमादान दे दिया, केवल उन विद्रोहियों को दंड दिया गया जिन्होंने ब्रिटिश लोगों की हत्या की थी।
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सन 1857 विद्रोह की असफलता के कारण (Causes of failure of the revolt) :-
सन 1857 ईसवी का विद्रोह नितांत असफल रहा, जिसके लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदाई थे।
• विद्रोह स्थानीय रूप से सीमित था। यह संपूर्ण देश में व्याप्त नहीं हो सका, जिससे इसे अखिल भारतीय संघर्ष कहा गया।
• केंद्रीय नेतृत्व के अभाव में विद्रोही असफल रहे। झांसी की रानी बहादुर तथा योग्य होते हुए भी एक अनुभवी सेनापति नहीं थी। उनका सेनापति बख्त खां अदम्य साहसी था, हिंदू संपूर्ण अभियान का प्रभारी नहीं था। विद्रोही बहादुर तथा स्वार्थ रही थे, किंतु अनुशासित नहीं थे।
• विद्रोहियों के पास आधुनिक युद्ध कला के अस्त्र-शस्त्र नहीं थे जबकि ब्रिटिश लोगों के पास युद्ध के श्रेष्ठ साधन एवं हथियार थे।
• विद्रोहियों के पास कोई सुनिश्चित कार्यक्रम तथा सामान्य कार योजना नहीं थी। बहादुर शाह द्वितीय वृद्धि होने के कारण नेतृत्व प्रदान करने के लिए सर्वथा अयोग्य था।
• विद्रोह के नेता बहादुर तथा देशभक्त तो थे, किंतु योग्य सेनापति नहीं थे। उन्हें सैन्य प्रशिक्षण का अभाव था।
• विद्रोहियों के पास धन तथा अन्य संसाधनों की कमी थी, जबकि ब्रिटिश लोगों के पास भरपूर धन, अस्त्र शास्त्र तथा संचार के साधन थे।
• शिक्षित भारतीयों ने भी विद्रोहियों की सहायता नहीं की। उनका यह विश्वास था कि ब्रिटिश लोग देश में प्रगति का नया युग ला रहे हैं।• विद्रोहियों ने किसानों की उपेक्षा की। अतः उन्हें संवेदना नहीं मिल सकी।
• ब्रिटिश लोगों का समुद्र पर नियंत्रण था। उनके निर्देश पर विदेशों से सेना ने उन्हें उपलब्ध थी।
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सन 1857 विद्रोह के प्रभाव (Effects of the Revolt) :-
• सन 1857 ईस्वी के विद्रोह में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत कर दिया। भारत का शासन ब्रिटिश राज के हाथों में स्थानांतरित हो गया।
• ब्रिटिश कैबिनेट में एक मंत्री को, भारत के लिए ‘ सेक्रेटरी ऑफ स्टेट ‘ बनाया गया, जो भारत के प्रशासन के लिए उत्तरदाई था।
• भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा। लॉर्ड कैनिंग को भारत का प्रथम वायसराय नियुक्त किया गया।
• नवंबर 1858 ईस्वी में महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा के द्वारा भारतीयों से बेहतर व्यवहार का आश्वासन दिया।
• राज्य हड़प नीति को समाप्त कर दिया गया तथा देसी शासकों को आश्वासन दिया गया कि उनके अधिकारों तथा सम्मान की रक्षा की जाएगी।
• ताज ने वादा किया कि भारतीयों की सामाजिक- धार्मिक परंपराओं तथा प्रथाओं में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।• प्रशासन तथा विधान परिषदों में भारतीयों को भी सम्मिलित करने का आश्वासन दिया गया।
• सेना का पुनर्गठन किया गया। बंगाल सेना समाप्त कर दी गई। सेना में ब्राह्मणों को घटाकर गोरखों, सिख, जाट, राजपूत, पंजाबी तथा बाद में पठानों को सम्मिलित किया गया। पुरानी आर्टिलरी में केवल यूरोपीय लोगों का स्थान दिया गया।
• सन 1857 ईस्वी के विद्रोह ने भारतीय तथा अंग्रेजों के मध्य में बेहद कटुता उत्पन्न कर दी।
• विद्रोह के पश्चात भारत पर लंदन के नियंत्रण को कड़ा कर दिया गया। ब्रिटिश लोगों ने ‘ बांटो तथा राज करो ‘ की नीति अपनाई जिससे भारतीयों में एकता स्थापित ना हो सके।
सन 1857 ईस्वी के विद्रोह ने राष्ट्रीय आंदोलन का पथ प्रशस्त किया तथा भावी स्वतंत्रता के संघर्ष हेतु प्रेरणा प्रदान की।
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