भगवान गणेश के जन्म को चिह्नित करने के लिए प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी मनाई जाती है, भगवान गणेश को ज्ञान, लेखन, यात्रा, वाणिज्य और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। उन्हें गजानन, गणेश, गजदंत के रूप में भी संबोधित किया जाता है जो उनके 108 नामों में से हैं।
ऐसा कहा जाता है कि भगवान गणेश की मां, देवी पार्वती ने हल्दी पाउडर से एक लड़के की मूर्ति को उकेरा और उसमें प्राण फूंक दिए, वह जिनको उन्होंने गणेश नाम दिया , एक दिन माता नाहने जाती है और गणेश जी को बोलती है की कोई अंदर न आ पाए और माता वह से चली जाती है

माता के जाने के पश्चात शिव जी वह आते है और शिव जी अनजान होते है इस बात से की गणेश उनके पुत्र है और गणेश जी भी आंजन होते है इस बात से शिवजी गणेश जी से आश्रम के अंदर जाने को बोलते है परन्तु गणेश जी उनकी बात नहीं मानते और क्रोध में आकर शिव जी गणेश जी की उनका शीश उनके दहर से अलग करदेते है और यह सब माता पारवती देख बहुत क्रोधित होती है और शिवजी से उनके पुत्र को जीवित ककर उनका शीश जोड़ने को बोलती है

बहुत ढूढ़ने के बाद भी उनका शीश नहीं मिलता तो नंदी एक हाथी के बचे का शीश लेकर आता है फिर वही शीश गणेश जी के लाग्या जाता है