क्या कारण है कि साधारण व्यक्ति द्वारा कही गई अच्छी बात भी उतनी असरकारक नहीं होती जितनी प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा कही गई साधारण सी बात ❓️

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(a1) मानव स्वभाव है कि वह हमेशा ख़ास बात सुनना चाहता है !!
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(a2) किन्तु साथ ही व्यक्ति अनजाने में यह शर्त लगाता है कि, वह अमुक ख़ास बात सिर्फ ख़ास व्यक्ति के मुंह से ही सुनेगा, आम व्यक्ति के मुंह से नहीं !!
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व्यक्ति खास व्यक्ति के मुंह से ही ख़ास बात सुनने की शर्त क्यों लगाता है ?
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क्योंकि जब कोई बात कही जाती है तो बात को सुनने से ठीक पहले या सुनने के दौरान व्यक्ति को नहीं पता होता कि अमुक बात ख़ास है या नहीं। तो व्यक्ति को कोई बात सुनने से पहले ही यह तय करना होता है कि अमुक बात ख़ास है या नहीं।
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चूंकि सभी व्यक्ति चाहते है कि उनकी बात को महत्त्वपूर्ण मानकर सुना जाए इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी बात को ख़ास बात कहकर ही प्रचारित करेगा, और संभावित श्रोता के पास ऐसा कोई तरीका नहीं है कि वह अमुक बात को सुनने से पहले यह पता लगा सके कि, अमुक बात ख़ास है या नहीं।
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अत: वह किसी कथ्य को फिल्टर आउट करने के लिए स्वभाविक रूप से एक बेहद सीधे एवं सरल तरीके का इस्तेमाल करता है – वह तय करता है कि, मैं खास आदमी के मुंह से कोई बात सुनूंगा। व्यक्ति यह मानकर चलता है कि, यदि ख़ास आदमी कोई बात कह रहा है तो उसकी बात भी ख़ास ही होगी।
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(b1) व्यक्ति का स्वभाव है कि वह हमेशा ख़ास बात सुनना चाहता है !!
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(b2) व्यक्ति मानता है कि एक ख़ास आदमी जो भी बात कहेगा वह बात खास ही होगी।
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(b3) चूंकि व्यक्ति ख़ास बात सुनना चाहता है अत: व्यक्ति हमेशा किसी ख़ास आदमी को सुनने के लिए आतुर रहता है। और उसे ख़ास बात की तरह ही ग्रहण करता है !!
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और क्योंकि व्यक्ति यह मानकर चलता है कि ख़ास आदमी ख़ास आदमी ख़ास बात ही कहेगा (b2), अत: व्यक्ति पर ख़ास व्यक्ति द्वारा कही गयी बात का तात्कालिक रूप से ज्यादा असर होता है
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तो जब कोई बात किसी ख़ास व्यक्ति द्वारा कही जाएगी तो उसे श्रोता भी ज्यादा मिलेंगे और प्रथम चरण में ज्यादातर दर्शको पर अमुक बात का तात्कालिक असर भी ज्यादा होगा। हालांकि, यदि कही गयी बात में कोई खासियत नहीं है तो वक्त गुजरने के साथ ही श्रोता यह समझ जाता है कि, कही गयी अमुक बात में कोई तत्व नहीं था। किन्तु कभी कभी समझ जाने की यह प्रक्रिया सालों और दशको ले लेती है।
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(1c) व्यक्ति का स्वभाव है कि वह हमेशा ख़ास बात सुनना चाहता है !! और वह ख़ास बात सिर्फ ख़ास आदमी के मुंह से ही सुनेगा।
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(2c) व्यक्ति यह मानकर चलता है कि मीडिया में जो भी आदमी आता है, वह हमेशा ख़ास होता है।
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(3c) पेड मीडिया किसी व्यक्ति को टीवी / अख़बार में लाता है और इस तरह वह एक आम व्यक्ति को ख़ास व्यक्ति बना देता है।
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(4c) यदि व्यक्ति खास है तब भी, और आम है तब भी – पेड मीडिया उसके मुंह / कलम से एक अतार्किक एवं बकवास बात कहलवाता है।
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चूंकि व्यक्ति मीडिया में आने वाले आम व्यक्ति को ख़ास मानकर चल रहा है, या व्यक्ति जानता है कि अमुक व्यक्ति ने किसी क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि हासिल की है, अत: उसके द्वारा कही गयी बात को वह ख़ास मानकर चलता है, और उस पर अमुक बात का ज्यादा असर होता है !!
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इस तरह पेड मीडिया मानव मनोविज्ञान का इस्तेमाल करके परले दर्जे की बकवास बातें और तर्क “खास” व्यक्तियों के माध्यम से जनता के सामने परोसता है, और असूचित नागरिको पर इस बकवास का ख़ास बात की तरह असर होता है।
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दुसरे शब्दों में, यदि आप कोई बकवास बात किसी के गले उतरना चाहते हो तो आपको किसी ख़ास व्यक्ति की जरूरत है। और यदि आप किसी साधारण व्यक्ति को ख़ास बनाना चाहते हो तो आपको पेड मीडिया की आवश्यकता पड़ेगी।
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पेड मीडिया से आप जितना भी ग्रहण करते हो उसमें दो चीजे शामिल होती है :
घटनाएं
तर्क एवं विश्लेषण
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पेड मीडिया में बताई गयी घटनाएं ज्यादातर मामलों में सच्ची होती है। और घटनाओं को छोड़कर शेष सभी बकवास होता है। पर आपको इसमें तत्व सिर्फ इसीलिए नजर आ रहा है, क्योंकि पेड मीडिया में आने के कारण आप इसे ख़ास मानते है।

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7 COMMENTS

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