पाकिस्तान की सरकार पूरे देश में एक समान शिक्षा प्रणाली लागू करने की तैयारी नहीं कर रही है। इससे पूर्व विश्वविद्यालय में इस्लामिक को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाएगा। पहले चरण में प्राइमरी स्कूल में पांचवी तक के बच्चों को शामिल किया जाएगा। इस योजना के तहत पुराण का अनुवाद करना समाज और हदीस को सिखाना शामिल किया जाएगा।
पाकिस्तान सरकार की इस योजना के तहत यह सुनिश्चित किया जाना है। पता स्कूल और कॉलेज में इस्लाम पढ़ाई जाएगी? पाकिस्तानी लोगों का कहना है कि अगर यह पढ़ाया जाएगा तो लोगों में तनाव बढेगा
इस्लामाबाद से जुड़े अब्दुल हमीद नैय्यर ने बताया कि नए एजुकेशन सिस्टम के तहत उर्दू, अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान का भारी इस्लामीकरण किया गया है. उन्होंने बताया कि इस्लामिक अध्ययन के अलावा छात्रों को कुरान के 30 चेप्टर को पढ़ना होगा, और बाद में उन्हें यह पूरी किताब भी पढ़नी होगी.

अब्दुल हमीद नैय्यर ने बताया कि आलोचनात्मक सोच आधुनिक ज्ञान का मूल सिद्धांत है लेकिन सरकार पाठ्यक्रम के माध्यम से ऐसे विचारों को बढ़ावा दे रही है जो इसके विपरीत हैं.
इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी ने एक समान शिक्षा प्रणाली शुरू करने का वादा किया था. कई लोगों को उम्मीद थी कि नए पाठ्यक्रम में विज्ञान, कला, साहित्य और अन्य समकालीन विषयों पर जोर होगा इमरान खान सरकार पर भी इस्लामिक कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेकने के आरोप लगते रहे हैं

इमरान खान की सरकार 2019 में शिक्षा को लेकर अपनी योजना को लेकर सामने आई. कोरोना वायरस महामारी के कारण नए एजुकेशन सिस्टम के कार्यान्वयन में देरी हुई लेकिन अब इसे इस साल शुरू होने की उम्मीद है.
लाहौर की एक शिक्षाविद् रुबीना सैगोल कहती हैं कि पब्लिक स्कूलों के मदरसाकरण के गंभीर परिणाम होंगे. उन्होंने कहा, ‘पाठ्यक्रमों में इस्लामिक रूढ़िवादी विचार को थोपने की वजह से katorta फैलेगी. इससे महिलाओं का संकट बढ़ेगा. इस्लामिक महिलाओं को आजादी के लायक नहीं समझते हैं
इस्लामाबाद स्थित भौतिक विज्ञानी परवेज हुडभॉय कहते हैं कि नया पाठ्यक्रम पाकिस्तान की शिक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है जो पहले कभी नहीं हुआ. वह कहते हैं कि नए पाठ्यक्रम में ऐसे-ऐसे बदलाव किए गए हैं जो जिया-उल-हक के शासनकाल में हुए बदलावों से कहीं ज्यादा खतरनाक साबित होने वाले हैं.

नए एजुकेशन सिस्टम का विरोधः नए पाठ्यक्रम को कई लोगों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है लाहौर के मानवाधिकार ने बताया कि अनिवार्य विषयों में लगभग 30-40% सामग्री धार्मिक प्रकृति की है. उन्होंने कहा कि कई लोगों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है क्योंकि यह संविधान के खिलाफ है.जैकब ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्य यह नहीं मानते कि ऐसा पाठ अनिवार्य विषयों में होना चाहिए