जमीन के कई टुकड़ों का इन दिनों कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है। मंत्रालय अपनी उन हजारों एकड़ भूमिको बेचने की तैयारी कर रहा है। तीनों सशस्त्र बलों, डीआरडीओ, तटरक्षक बल, आयुध निर्माणी बोर्ड सहित अन्य विभागों को एक चिट्ठी भेजी गई है। ताकि यह पता लगाया जा सके कि पिछले दो दशकों में उनके लिए कितनी जमीन की जरूरत हुई है। साथ ही वहां कौन सी परियोजनाएं क्या चल रही हैं।
बीते छह मई को भेजे गए रक्षा मंत्रालय के एक पत्र में कहा गया है कि शेष जमीन को तीन महीने के भीतर संकलित किया जा सकता है और महानिदेशक रक्षा संपदा (DGDI) के साथ अटैच किया जा सकता है।
भारतीय रक्षा मंत्रालय सेना की खाली जमीन की दो श्रेणियों की पहचान करने पर विचार कर रहा है। पहली श्रेणि A-2 तथा दूसरी B-4 जमीन हैं। छावनी भूमि प्रशासन नियम 1937 ने सभी जमीनों के उपयोग, स्थान और भविष्य के विस्तार के अनुसार बेंच-मार्क किया है। क्लास ए-2 भूमि वास्तव में सैन्य अधिकारियों द्वारा उपयोग या कब्जा नहीं किया जाता है बल्कि अस्थायी रूप से उपयोग किया जाता है। क्लास बी-4 भूमि वह है जो किसी अन्य वर्ग की भूमि में शामिल नहीं है।
भारत सरकार के पूर्व राजस्व सचिव ने दिसंबर 2017 में 131 सिफारिशों के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। बोस समिति की सिफारिश, रक्षा मंत्रालय द्वारा एक अध्ययन के बाद, तीन श्रेणियों के तहत वर्गीकृत की गई है।
6 मई को भेजे गए रक्षा मंत्रालय के पत्र में कहा गया है कि खाली भूमि और रक्षा भूमि के उपयोग के संबंध में बोस समिति की सिफारिशों के एक खंड को लागू करने का निर्णय लिया गया है।