ठहर जाता हूं कभी-कभी … कुछ यादों के सिरहाने..

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ठहर जाता हूं कभी-कभी …
कुछ यादों के सिरहाने..
यादों का हर एक कोना..
कोई ठिकाना सा लगता है..

किस के मन में क्या है आता नहीं नजर..
झूठ हो गया है इतना सच्चा की..
कभी-कभी सच भी यहां..
एक बहाना सा लगता है..
नई नई चीजों की हो रही है होड़..
अब तो इमारतों में भी लगने लगी है दौड़..
इस नई नवेली दुनिया में..
ये दिल अपना कुछ पुराना सा लगता है..

ठहर जाता हूं कभी-कभी …
कुछ यादों के सिरहाने..
यादों का हर एक कोना..
कोई ठिकाना सा लगता है

– Bindesh Yadav

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