व्यावसायिक रूप से फेसबुक एक #घाटेकीकम्पनी है और यह सालाना अरबों का घाटा बनाती है !! किन्तु यह घाटा नजर इसीलिए नहीं आएगा, क्योंकि फेसबुक अपना विस्तार करने और एकाधिकार बनाने के लिए जो पैसा खर्च करती है , वह इसके लेखों में नहीं दिखाया जाता। फेसबुक के राजनैतिक प्रायोजक यह घाटा पूरा करते है , और बदले में फेसबुक अपने एल्गोरिदम को इस तरह से बनाकर रखता है कि उसके राजनैतिक प्रायोजको को मुनाफा हो।
राजनैतिक प्रायोजको को होने वाले मुनाफे को भी आँका नहीं जा सकता, क्योंकि इस मुनाफे है को मुद्रा या मूल्य के आंकड़ो में मापना संभव नहीं है। तो फेसबुक एक ऐसी कम्पनी है जिसका व्यावसायिक मॉडल घाटे का है , किन्तु राजनैतिक लाभ होने के कारण समग्र रूप से यह एक बेहद फायदे की कम्पनी बन जाती है।
इस तरह अपने राजनैतिक प्रायोजको पर निर्भर होने के कारण फेसबुक एक बहुत ही प्रभावशाली राजनैतिक मशीन है। अपने आप को सामान्य कम्पनी के तौर पर दिखाने के लिए इस तरह की ख़बरों को बाहर आने दिया जाता है कि फेसबुक डेटा बेचकर पैसा बना रहा है !! डेटा बेचने की ख़बरें बाहर आने से दो तरह के फायदे होते है :
(A) यदि लोगो तक यह सूचना नहीं पहुंचेगी कि फेसबुक डेटा बेचकर पैसा बना रहा है , तो उनके दिमाग में यह बात चमकेगी कि फेसबुक पैसा कैसे बनाता है ? और जब वे इस दिशा में सोचना शुरू करेंगे तो जान जायेंगे कि इसे घाटे में क्यों चलाया जा रहा है। तो उनके सोचने की दिशा को पहले से तय करने के लिए मीडिया द्वारा उन तक यह सूचना पहुंचाई जाती है कि फेसबुक डेटा बेचकर पैसा बनाता है !!
(B) यदि यह बात बाहर नहीं लायी जायेगी कि फेसबुक डेटा “बेचता” है, और डेटा का इस्तेमाल व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए कर रहा है तो लोगो को इस दिशा में सोचने का अवसर मिल जायेगा कि फेसबुक जासूसी के लिए डेटा जुटाता है , न कि बेचने के लिए। लेकिन फेसबुक डेटा इसीलिए बेचता भी है, ताकि जासूसी के उद्देश्य को कवर या डायल्युट किया जा सके। इस नीति एवं उद्देश्यों की पूर्ती के लिए गूगल हर लिहाज से फेसबुक के पिताश्री है।
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(1) फेसबुक ने कैसे ऑरकुट को बाहर कर दिया ?
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असल में इस तरह का एकाधिकार वाला सेटअप बिना घाटे के खड़ा ही नहीं किया जा सकता। और इस एकाधिकार को बनाने एवं बनाए रखने के लिए 100 गुणा पैसा खर्च करना होता है। इतना घाटा वे ही पूरा कर सकते है जो हवा में से पैसा बनाते है। यदि एकाधिकार ख़त्म हो जाएगा तो ऐसी कम्पनियां अपना उद्देश्य खो देगी और घाटा खाकर बंद हो जायेगी। एक समय पर फेसबुक और ऑरकुट प्रतिद्वंदी थे।
अमेरिकी सरकार ( सी आई ए ) ने अन ऑफिसियली राजकीय कर्मचारियों को फेसबुक पर आने के आदेश जारी किये। मतलब वे यदि सोशल मीडिया पर आना चाहते थे तो उन्हें सिर्फ फेसबुक पर आने के लिए प्रोत्साहित किया। राजकीय लोगो के फेसबुक पर आने से कनेक्टिविटी बनाए रखने के लिए अन्य नागरिक भी तेजी से फेसबुक पर आने लगे। इस तरह ऑरकुट बाजार से बाहर हो गया।
इसे यूँ समझे कि अम्बानी ( यहाँ अम्बानी से आशय सभी देशी धनिको है ) एक ट्विटर टाइप की कम्पनी X लांच करते है , और पीएम समेत सभी मंत्री सिर्फ उसी पर अपना खाता बनाते है। या यूँ मान लीजिये कि वे X पर भी खाता बनाते है और ट्विटर पर भी खाता बनाते है। लेकिन वे दिन में 5 ट्विट X पर करते है और सिर्फ 1 ट्विट ट्विटर पर करते है। तो क्या नतीजा आएगा ? 2 करोड़ राजकीय कर्मचारी अगले 3 महीने में अपने आप X पर आ जायेंगे !! बाद में इनसे कनेक्ट होने के लिए सभी पत्रकार , सम्पादक , उद्योगपति , उनका स्टाफ, राजनैतिक पार्टी के समर्थक, कार्यकर्ता, फिर उनके पारिवारिक सदस्य, रिश्तेदार एवं परिचित मतलब पूरा एक चेन रिएक्शन !! और अगले 6 महीने में भारत से ट्विटर उड़ जाएगा !! फेसबुक भी इसी तरह से उड़ सकता है। आज भी बिना कोई क़ानून पास किये और बिना कोई पक्षपात किये पीएम सिर्फ 6 महीने में फेसबुक को जमा कर सकते है। और फिर जुकेरबर्ग 1000 गुणा पैसा भी फूंक दे तो वे भारत में फेसबुक को बचा नहीं पाएंगे।
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(2) क्या भारत में कोई कम्पनी फेसबुक के सामने खड़ी की जा सकती है ?
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की भी जा सकती है, और नहीं भी। फ़िलहाल अम्बानी ट्विटर या फेसबुक जैसी कम्पनी इसीलिए नहीं खोल सकते क्योंकि फेसबुक के राजनैतिक प्रायोजक यह सुनिश्चित करते है कि भारत सरकार अम्बानी की ऐसी कम्पनी का घाटा पूरा करने के लिए भुगतान न करे, जो फेसबुक को चुनौती देती हो। तो इसीलिए अम्बानी को कम महत्त्वपूर्ण उत्पादों के धंधे में ही निवेश करना होता है। सोशल मीडिया प्रिंट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया की ही एक शाखा है और आने वाले समय में यह इतना ताकतवर हो जाएगा कि आप इसका अंदाजा नहीं लगा सकते। यह देश में 100 करोड़ नागरिको के कम्युनिकेशन को कंट्रोल करता है। दुसरे शब्दों में 5 वर्ष बाद फेसबुक यदि किसी राजनैतिक पार्टी के खिलाफ है तो उसके जीतने की संभावनाए बेहद कमजोर हो जायेगी, और 10 साल बाद यह सम्भावना शून्य होगी !!
फेसबुक का समर्थन लेने के लिए सभी राजनैतिक पार्टिया लाइन में रहेगी, और इससे फेसबुक की बार्गेनिंग पॉवर देश के समस्त 100 करोड़ नागरिको से भी ज्यादा होगी। फेसबुक सबसे बड़ा वोट बैंक होगा, और यह इतनी ख़ूबसूरती और ख़ामोशी के काम करेगा कि मतदाताओं को यह अहसास ही नहीं होगा कि नेता को वे नहीं चुन रहे है, बल्कि फेसबुक चुनवा रहा है !!
सोशल मीडिया ऐसा कारोबार है, जो ताकत और नियंत्रण में इजाफा करता है। राजनैतिक नियंत्रण आने से नीति नियंताओ यानी शासको पर आपकी पकड मजबूत हो जाती है , और ये नियंत्रण आने के बाद पैसे की बारिश हो जाती है। तो ऐसी स्थिति में चाह कर भी अम्बानी इस धंधे में नहीं कूद सकते। क्योंकि राजनैतिक नियंत्रण बढाने वाले कारोबार में प्रवेश करने पर जिन शक्ति पुंजो के साथ उनका मुकाबला होगा उनका सामना करने के लिए उन्हें भारत सरकार की जरूरत है। और भारत सरकार के नीति नियंता यदि फेसबुक के पाले में है तो यह हारी हुई लड़ाई है। और आप देख सकते है कि वे किस पाले में खड़े है !!
फेसबुक के राजनैतिक प्रायोजको भी वही है जो भारत के शेष पेड मीडिया के प्रायोजक है। यानी तेल, बैंक, दवाइयाँ, चिकित्सीय उपकरण आदि का कारोबार करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियां। और इनमे से भी सबसे ताकतवर समूह है, हथियार बनाने वाली कम्पनियां।
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(3) हथियार बनाने वाली कम्पनियों के पास इतनी ताकत कहाँ से आती है ?
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कृपया किसी हथियार निर्माता कम्पनी जैसे लॉकहीड मार्टिन , बोईंग आदि पर गूगल करें और यह देखें कि वे क्या और किस तरह के हथियार बनाते है, और क्या भारत का युद्ध यदि लॉकहीड मार्टिन एवं बोईंग जैसी कम्पनी से हो जाए तो क्या भारत देश अपनी पूरी शक्ति लगाकर युद्ध जीत सकता है ? ये कम्पनी अमेरिका के लिए सबसे उन्नत किस्म के फाइटर प्लेन, मिसाइले, और युद्ध पोत बनाती है। यदि लॉकहीड मार्टिन बांग्लादेश की सेना को ये हथियार बड़े पैमाने पर मुफ्त में देना शुरू करे तो भारत की सेना बांग्लादेश की सेना से भी हार जायेगी। पाकिस्तान तो बहुत दूर की बात है !!
इन कम्पनीयों के पास ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर है कि वे असीमित मात्रा में लड़ाकू जहाजो का उत्पादन करके बांग्लादेश को सप्लाई कर सकते है। और यदि 1000 फाइटर प्लेन के साथ बांग्लादेश की सेना भारत पर हमला करती है तो आप अंदाजा लगाइए कि 100 करोड़ नागरिको के इस देश के पास उन्हें गिराने का क्या उपाय है, और 1000 फाइटर प्लेन अगले 7 दिनों में भारत के कितने शहरो को आदिम युग में पहुंचा देंगे ? और इस बात पर भी ध्यान दें कि यदि लॉकहीड मार्टिन, बोईंग, जेट जैसी ताकतवर कम्पनीयां हम पर हमला बोलती है तो कौन देश इन कम्पनीयों से दुश्मनी लेकर हमे बचाने आएगा ?
हम भले ही 100 करोड़ का देश है किन्तु हमें अभी मोबाईल बनाने नहीं आते है , फाइटर प्लेन के इंजन तो बहुत दूर की कौड़ी है। और बांग्लादेश यदि भारत पर हमला करने से इनकार करेगा तो लॉकहीड मार्टिन ये लड़ाकू जहाज म्यामार को देकर उन्हें बांग्लादेश पर हमला करने को कहेगा !! पेड रक्षा विशेषग्य इस सम्भावना को यह खारिज करके उड़ा देते है कि ये कंपनियां ऐसा नहीं कर सकती !! और करेगी तो हम संयुक्त राष्ट्र संघ जायेंगे !! और मैं कहता हूँ कि संयुक्त राष्ट्र संघ जाने से आपकी समस्या का समाधान नहीं होगा। आपके पास 2 ही विकल्प होते है – या तो आप गेजेट में ऐसे क़ानून छापिये जिससे भारत के निजी क्षेत्र में भी लॉकहीड मार्टिन, बोईंग , जेट जैसी ताकतवर कम्पनियां खड़ी हो सके या फिर फेसबुक को भारत में एकाधिकार दे दीजिये। अन्य कोई उपाय नहीं है।
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(3) तो फेसबुक 3 लक्ष्य लेकर काम करता है :
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(3.1) जासूसी
(3.2) कार्यकर्ताओ का समय बर्बाद करना
(3.3) राजनैतिक नियंत्रण हासिल करना
(3.1) जासूसी : फेसबुक को हमारे जैसे आम लोगो की जासूसी करने की जरूरत नहीं है , और न ही उन्हें हमारा डेटा चाहिए। उन्हें देश के लगभग 20 हजार लोगो की एक्टिविटी पर नजर रखनी होती है। इनमे शामिल है – मेजर, लेफ्टिनेंट, कर्नल, ब्रिगेडियर, जनरल, रक्षा सचिव, सचिवालय के उच्च अधिकारी, सभी सांसद, सभी विधायक, मंत्री, पीएम, राष्ट्रपति भवन के उच्चाधिकारी, राज्यपाल, सुप्रीम एवं हाई कोर्ट के जज, सीबीआई, कैग, चुनाव आयोग, DRDO के अधिकारी, इसरो, रक्षा अनुसन्धान के वैज्ञानिक, एवं देश के टॉप 500 देशी उद्योगपति !!! इन्हें सर्विलांस पर रखने के लिए यह जरुरी है कि ये 20 हजार लोग जीमेल, फेसबुक , व्हाट्स एप , एंड्राइड आदि का इस्तेमाल करें।
और इन 20 हजार लोगो को इस सेट अप में लाने के लिए देश के सभी 100 करोड़ नागरिको को इस सेटअप लाना होगा। जब सभी 100 करोड़ लोग इस सेटअप में आयेंगे तो ये 20 हजार अपने आप आ जायेंगे। चीन में इसीलिए फेसबुक , जीमेल , व्हाट्स एप्प आदि बेन है। जब घाटा बनाने वाली ये कम्पनियां चीन में नहीं पहुँच पायी तो वहां के स्थानीय उद्योगपति इन क्षेत्रो में अपनी कम्पनियां खड़ी कर पाए। यदि आप पंक्तियों के बीच लिखी इबारत पढ़ सकते है तो जान जायेंगे कि क्यों अमेरिका एवं चीन के युद्ध की सम्भावना बढती जा रही है, और क्यों यह युद्ध भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
जासूसी में सबसे महत्त्वपूर्ण जासूसी सामरिक क्षेत्र में होती है। जब भारत ने पोकरण-2 किया तो सबसे बड़ा प्रश्न अमेरिका के ख़ुफ़िया तंत्र पर खड़ा हो गया था। परीक्षण करना तो भारत की उपलब्धि थी ही, किन्तु सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि भारतीय प्रशासन अमेरिका को बुत्ता देने में सफल हो गया था। तो अमेरिका नहीं चाहता कि भविष्य में भी उसे इतनी महत्त्वपूर्ण सूचनाओं से वंचित रहना पड़े। और अब तो हमारे मेजर अपने अधिनस्थो को आदेश देने के लिए भी व्हाट्स एप का इस्तेमाल कर रहे है !!
दूसरा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र कारोबार है। लेकिन इस क्षेत्र में जासूसी का सबसे बड़ा नेटवर्क GSTN के पास है। GST का नेटवर्क ओपरेट करने वाली कम्पनी की होल्डिंग विदेशियों के पास है, और अब उनके पास देश की सभी कम्पनियों के सभी डेटा एक क्लिक पर उपलब्ध है। यह विषय थोडा अलग हो जाएगा इसीलिए इस बारे में विस्तृत विवरण मैं किसी अन्य लेख में लिखूंगा।
3.2) कार्यकर्ताओ का समय बर्बाद करना : राजनीति में सबसे चालाक और बारीक चाल कार्यकर्ताओ का समय बर्बाद करना है। पेड मीडिया की तरह ही फेसबुक का दूसरा मुख्य उद्देश्य राजनैतिक कार्यकर्ताओ का टाइम पास करना है, ताकि उनकी ऊर्जा एवं समय चूसा जा सके।
जिस तरह पेड मीडिया चिल्लर मुद्दे उठाकर कार्यकर्ताओ का समय बर्बाद करता है, फेसबुक की एल्गोरिदम भी उसी तरह से यह काम करती है। फेसबुक का स्वचालित सोफ्टवेयर यह कैसे करता है , इसे समझने के लिए आपको पहले यह समझना होगा कि मूल्यपरक एवं प्रभावी सूचनाओ के निकाय मनोरंजक सामग्री से किस प्रकार भिन्न होते है।
(A) महत्त्वपूर्ण सूचनाएं बहुधा सतही एवं संक्षिप्त नही होती, बल्कि बहुधा यह सूचनाओं का पूरा एक निकाय = Body of Information होता है।
घारणाओ को तोड़ने के लिए विस्तृत ब्यौरे, तुलनात्मक विवेचन, विश्लेष्ण आदि शामिल के होने के कारण सूचना के इस निकाय में काफी विवरण होते है, एवं इनमे ज्यादातर विवरण लिखित = Plain Text होते है। चित्रों या वीडियो वगेरह का इस्तेमाल बहुत ही कम किया जाता है। चूंकि तुलनात्मक विवरण को प्रभावी ढंग से निरुपित करने के लिए तालिकाओं का प्रयोग किया जाता है अत: इनमे तालिकाएँ हो सकती है। कई बार विवरण में विभिन्न स्त्रोतों का प्रयोग किया जाता है, और इस वजह से लेख में बाहरी स्त्रोत जोड़ने होते है। इन्हें समय समय पर अद्यतन भी करना होता है , ताकि ये प्रासंगिक बने रहे।
सूचनाओ के एक सामान्य निकाय का फोर्मेट लगभग इस तरह का होगा :
पृष्ठ : लगभग 6 से 12 ( A4 साइज )
साइज : 200 से 500 kb
शब्द : 4,000 से 10,000
(B) लुगदी लेखन सामग्री एवं मनोरंजन : लुगदी लेखन में टाइप एन्ड थ्रो किस्म का पाठ्य शामिल है। घटनाओ पर की गयी त्वरित एवं चलताऊ संक्षिप्त प्रतिक्रियाएं, जो कि 2-4 घंटे में काल कलवित हो जाती है। अगले दिन न तो लिखने वाले को याद रहती है और न ही पढ़ने वाले पर इसका प्रभाव रहता है।मनोरंजक सामग्री मे फोटोग्राफ, आकृतियो एवं वीडियो वगेरह का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। यदि लिखित विवरण होते भी है तो बेहद संक्षिप्त होते है, और इनमे नारे, दावे, घोषणाएं, आदि ज्यादातर होते है।
फेसबुक का एल्गोरिदम यूजर की वाल पर मनोरंजक सामग्री की बारिश कर देता है और मूल्यपरक सूचनाओं वाले लेख की पाठक संख्या बेहद घट जाती है। फेसबुक इसके लिए फिल्टरिंग एवं बूस्टिंग फीचर का इस्तेमाल करता है।
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(3.2.1) फिल्टरिंग और बूस्टिंग क्या है ?
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मान लीजिये कि आपकी फ्रेंड लिस्ट में 1000 यूजर है। यदि आप कोई पोस्ट करते है तो फेसबुक का एल्गोरिदम औसतन 150 लोगो को इसकी न्यूज फीड भेजेगा। लेकिन यदि इस पोस्ट पर फिल्टर लगा दिया जाता है तो न्यूज फीड सिर्फ 50 लोगो को ही जायेगी। और यदि डबल फिल्टर लगाया जाता है तो सिर्फ 10 लोगो की वाल पर ही यह दिखायी देगा। लेकिन यदि इस पोस्ट को बूस्ट किया जाता है तो यह पोस्ट 150 की जगह 300 यूजर्स की न्यूज फीड में जाएगी। और डबल बूस्ट होने पर यह पोस्ट 600 लोगो को अपनी वाल पर दिखायी देगी।
फेसबुक लुगदी लेखन सामग्री एवं मनोरंजन को बूस्ट करता है, जबकि गंभीर एवं सार्थक लेखन पर फिल्टर लगा देता है।
ज्यादातर यूजर्स अपना अधिकाँश मनोरंजन मूलक गतिविधियों पर खर्च करते है , तथा साथ ही वे राजनैतिक या व्यवस्थागत सुधार की सामग्री का भी प्रसार करते है। लेकिन ये ज्यादातर यूजर अपनी तरफ से सार्थक विषय से सम्बंधित पोस्ट खोजते नहीं है। यदि इनके सामने कोई सार्थक पोस्ट आयेगी तो ये इसे पढ़ लेते है, एवं सहमत होने पर उसे आगे बढ़ा देते है। यहाँ यह बात समझना जरुरी है कि — यदि उनकी न्यूज फीड में कोई सार्थक पोस्ट आएगी तो वे इसे पढ़ लेंगे और उनकी न्यूज फीड में नहीं आने पर वे नहीं पढेंगे। मान लीजिये कि, ऐसे 100 यूजर्स के सामने यदि कोई सार्थक पोस्ट जाती है तो सम्भावनाएं है कि इनमे से 25 लोग इसे सरसरी निगाह से पढ़ लेंगे एवं कोई 5 यूजर इसे आगे शेयर कर देंगे।
फेसबुक के सोफ्टवेयर के पास ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे वह किसी पोस्ट की विषय वस्तु के बारे में स्वत: ही यह अंदाजा लगा सके, कि विषय वस्तु सार्थक है या मनोरंजक है। अत: यह निर्धारित करने के लिए फेसबुक किसी पोस्ट को दिए गए वर्गों में विभाजित करता है :
अ) विस्तृत पाठ्य ,
ब) छोटे पाठ्य
स) फोटो
द) वीडियो
यदि किसी पोस्ट में प्लेन टेक्स्ट है एवं यह विस्तृत भी है, तो फेसबुक का सोफ्टवेयर इस पर फ़िल्टर लगा देता है , किन्तु फोटो, वीडियो एवं छोटे पाठ्य होने पर इसे बूस्ट करता है। फेसबुक का सोफ्टवेयर यूजर्स को (अ) श्रेणी के स्तम्भ पढने से रोकने के लिए जाया तौर पर उनका डेटा एवं समय श्रेणी (ब) , (स) एवं (द) श्रेणी के पोस्ट्स पर खर्च करने की नीति पर काम करता है।
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(4) फेसबुक के फीचर जो लुगदी लेखन को बढ़ावा देकर गंभीर यूजर को हतोत्साहित करते है :
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4.1. फेसबुक आधे पेज से ज्यादा लम्बे आर्टिकल्स पर फ़िल्टर लगाता है , एवं पोस्ट की लम्बाई बढ़ने के साथ साथ फिल्टरिंग बढ़ती जाती है। यदि आपने 1 पेज से अधिक लम्बा पाठ्य पोस्ट किया है तो फेसबुक इसे कम लोगो की न्यूज फीड में भेजेगा। और यदि यह पोस्ट 4 पेज से अधिक का है तो इसकी न्यूज फीड और भी कम यूजर की वाल पर जायेगी। फेसबुक का सोफ्टवेयर यह चिन्हित करता है कि अमुक पोस्ट में सिर्फ टेक्स्ट है, कोई इमेज वगेरह नहीं है।
किन्तु यदि आपने इस टेक्स्ट के साथ कोई फोटो जोड़ दी है तो फेसबुक का सोफ्टवेयर इसे मनोरंजक पोस्ट की तरह चिन्हित करेगा एवं फिल्टर नहीं लगाएगा।
4.2. फेसबुक सभी प्रकार की फोटो , वीडियो आदि को बूस्ट करता है , जिससे ये फोटो / वीडियो ज्यादा यूजर्स की न्यूज फीड पर जाते है। ये फोटो , वीडियो यूजर्स का डेटा एवं समय जाया तौर पर खा लेते है।
4.3. यदि आपने प्रोफाइल पिक्चर अपडेट की है तो अधिकतम यूजर्स को न्यूज फीड जाती है।
मान लीजिये कोई यूजर कुल 30 मिनिट से 1 घंटा प्रतिदिन फेसबुक पर बिताता है। तो जब भी वह फेसबुक पर आएगा उसे फोटो , वीडियो वगेरह ज्यादातर दिखाई देंगे। वह इमेज एवं वीडियो देखेगा एवं निकल जाएगा। पाठ्य सामग्री की न्यूज फीड अपेक्षाकृत कम होने से उसे इन्हें पढने का अवसर नहीं मिलेगा।
4.4. यूजर्स का अतिरिक्त समय खाने के लिए फेसबुक ने टेग करने का ऑप्शन दिया हुआ है। और ऐसा फीचर जान बुझकर नहीं जोड़ा गया है जिससे व्यक्ति खुद को टेग होने से बचा सके। ज्यादातर यूजर टेग रिमूव करना जानते भी नहीं है, एवं टैग रिमूव में काफी समय खर्च हो जाता है। फेसबुक ने टैग वाली पोस्ट पर नोटिफिकेशन ऑफ़ करने का फीचर भी नहीं जोड़ा हुआ है। फेसबुक टेग किये गए सभी पोस्ट्स के सभी कमेंट्स की नोटिफिकेशन भेजते रहता है। असीमित नोटिफिकेशन होने कारण यूजर नोटिफिकेशन देखना बंद कर देता है , और काम के कमेन्ट की नोटिफिकेशन अपठित रह जाती है। इस तरह फोटो , वीडियो से बचा हुआ समय फेसबुक टेग के माध्यम से जाया तौर पर चूस लेता है।
4.5. सर्चिंग ऑप्शन जानबूझकर इतना पूअर किया हुआ है कि यूजर खुद के ही पुराने पोस्ट नहीं ढूंढ पाता। टाइप एंड थ्रो सामग्री को वापिस ढूँढने की आवश्यकता नहीं होती, किन्तु सार्थक विषय पर किये गए विस्तृत पोस्ट की फिर से जरूरत आ जाती है। इसके लिए एक्टिविटी लॉग में निरंतर स्क्रोल करते रहना होता है, जो कि एक अवधि के बाद व्यवहारिक नही है। पोस्ट करो और भूल जाओ। कोरा में यह फीचर है कि यह आपके द्वारा दिए गए सभी जवाबो एवं सवालों आदि की सूची दिखाता है।
4.6. जान बुझकर ऐसी व्यवस्था नहीं दी गयी है जिससे यूजर अपनी प्रोफाइल पर विभिन्न विषयों से सम्बंधित पोस्ट्स के लिए अलग से सेक्शन बना सके। सभी पोस्ट एक के ऊपर एक डालने होते है। इस तरह आपकी वाल एक गोदाम बन जाती है।
4.7. यदि आप किसी लेख में कोई न्यूज लिंक रखते है तो फेसबुक पोस्ट पर डबल फ़िल्टर लगा देता है। जैसे जैसे लिंक बढ़ेंगे वैसे वैसे फ़िल्टर बढेगा।
4.8. प्रोफाइल का होम इंटरफेस बहुत पूअर है। इसे इस तरह बनाया गया है कि यूजर आपके वाल पर नवीनतम पोस्ट ही देख सके। उसे और कुछ नहीं दिखता।
4.9. नोट्स सेक्शन में यूजर अपने चयनित पोस्ट रख सकता है , एवं इन तक तुरंत पहुँच सकता है। किन्तु फेसबुक ने नोट्स सेक्शन की पहुंच काफी मुश्किल बनायी है। मोबाइल पर तो यह खैर काफी मुश्किल है ही लेकिन कंप्यूटर पर भी इसे ऐसी जगह रखा गया है कि अमूमन यूजर को नोट्स सेक्शन तब तक नहीं मिलता जब तक उन्हें रूट न बताया जाए। फेसबुक के 90% यूजर इससे परिचित ही नहीं है।
4.10. फेसबुक का सोफ्टवेयर लिंक्स से युक्त इंडेक्स पोस्ट को सपोर्ट नहीं करता। यदि आप पोस्ट्स के लिंक्स की सूची बनाते है तो आपको इन्हें लगातार एडिट करते रहना होता है। बार बार एडिट करने से फेसबुक अमुक पोस्ट को डिलीट कर देता है। फेसबुक कई लिंक्स होने के कारण भी बहुधा पोस्ट को डिलीट कर देता है।
4.11. अभी फेसबुक में लाइव, माय स्टोरी, माय वाच पार्टी जैसे मनोरंजक फीचर बढ़ते जा रहे है।
4.12. फेक प्रोफाइल पर शून्य नियंत्रण होने के कारण राजनैतिक आई टी सेल द्वारा बनायी गयी लाखों फेक आई डी एवं ग्रुप्स। और इसी वजह से हिंसक एवं अश्लील कमेंट्स एवं इसी तरह के आरोप प्रत्यारोप के पोस्ट्स की बारिश। जब तक कोई रिपोर्ट न करे तब तक हिंसक एवं अश्लील सामग्री पर कोई पर्यवेक्षण नहीं।
नतीजा : करोड़ो यूजर्स का एक मच्छी मार्केट !! और यह मच्छी मार्केट जानबूझ कर डिजाइन किया गया है। ताकि प्लेटफोर्म पर अश्लिता , नग्नता , हिंसा , गाली गलौज , वैमनस्य , आदि को बढाया जा सके। दरअसल फेसबुक जिस जनरेशन का उत्पादन कर रहा है वह भयंकर रूप से अनुत्पादक एवं अतार्किक होगी।
राजनैतिक प्रभाव एवं नियंत्रण : फेसबुक मॉस के लिए है और इस वजह से ये स्ट्रक्चर राजनैतिक नियंत्रण बढाता है। कुछ ही वर्षो में फेसबुक इतना ताकतवर हो जाएगा कि साम्प्रदायिक , जातिगत या अलगाव के मुद्दे पर 24 घंटे में एक देशव्यापी दंगा ट्रिगर कर सके। देश को किसी इच्छित दिशा में धकेलने एवं हिला देने की यह क्षमता शासको पर अटूट पकड देती है। फेसबुक अभी शैशव अवस्था में है। जैसे जैसे समय गुजरेगा इसकी ताकत बढ़ती जायेगी। राजनीति को नियंत्रित करने की क्षमता होने के कारण ही फेसबुक व्यावसायिक रूप से घाटा बनाने के बावजूद इसमें इसके प्रायोजक इसमें निवेश करते है !!
चुनावों में फेसबुक किसी पार्टी विशेष के एजेंडे को या किसी घटना विशेष को लाखों आई डी एवं ग्रुप्स द्वारा वायरल करके कोई भी एजेंडा सेट कर सकता है। इसीलिए अब सभी राजनैतिक पार्टियों की निर्भरता इस पर बढ़ती जा रही है। फेसबुक राजनैतिक विषयों पर लिखने वाले प्रोफाइल की छटनी करता है, और चुनावों में उन पर फ़िल्टर या बूस्टर लगा देता है। इस तरह फेसबुक चुनावी नतीजो को बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है।
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समाधान ?
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फेसबुक को सुझाव भेजकर इसे सुधारने में मेरी कोई रुचि नहीं है। मेरा मानना है कि संचार यानी मीडिया देश का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है और इसमें विदेशी निवेश की अनुमति दी ही नहीं जानी चाहिए। बहरहाल, इसका राजनैतिक समाधान यह है कि यदि भारत के नागरिको को ऐसी प्रक्रिया मिल जाए जिससे वे प्रधानमन्त्री को सीधे चुन सके, तो भारत में फेसबुक को टक्कर देने वाली कम्पनी सिर्फ साल भर में खड़ी की जा सकती है। और साल भर में जब भारतीय कम्पनी आधा ट्रेफिक खींच लेगी और तमीज से काम करेगी तो फेसबुक अपने आप यूजर खोने लगेगी। तब या तो फेसबुक सुधर जायेगा या बाजार से बाहर हो जाएगा !! यूजर फेसबुक से इसीलिए चिपके हुए है क्योंकि उनके पास अन्य कोई विकल्प नही है। कोरा की प्रकृति मॉस के लिए नहीं होने के कारण कोरा कभी भी फेसबुक का विकल्प नहीं हो सकता।
प्रधानमंत्री कैसे भारत में फेसबुक को टक्कर देने वाली कम्पनी खड़ी करवा सकते है, इसका विवरण मैंने लेख में दिया है। लेकिन जब तक भारत के प्रधानमंत्री सीधे जनता के नियंत्रण में नहीं आते तब तक उनसे ऐसा करने की उम्मीद करना ज्यादती होगी। यदि पीएम की नौकरी चालू रखने का अधिकार जनता को मिल जाए सिर्फ तब ही पीएम को वह शक्ति मिलेगी कि वे फेसबुक एवं उनके प्रयोजको से टकराव ले।
निचे मैंने उस प्रक्रिया का सारांश दिया है, जिसे गेजेट में प्रकाशित करने से भारत के नागरिक पीएम को सीधे चुन सकेंगे एवं सिर्फ भारत के नागरिको के पास ही उन्हें पद से हटाने का अधिकार होगा। सांसद उन्हें नौकरी से नहीं निकाल पायेंगे। मेरा मानना है कि यह ड्राफ्ट गेजेट में छपवाकर हम पीएम को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के नियंत्रण से मुक्त का सकते है। कृपया ध्यान दें , यह ड्राफ्ट का सारांश है , पूर्ण ड्राफ्ट नहीं है।
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राईट टू रिकॉल – प्रधानमंत्री ( Rtr-PM ) के प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट का सारांश :
(1) उम्मीदवारी – 30 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति जो सांसद का चुनाव लड़ने की योग्यता रखता है वह किसी भी दिन कलेक्ट्री में PM बनने के लिए अपना आवेदन जमा कर सकता है। जिस दिन आवेदन जमा होगा उसी दिन से अमुक व्यक्ति उम्मीदवार मान लिया जाएगा।
(2) उम्मीदवार को स्वीकृत करना – भारत का कोई भी मतदाता अपनी पसंद के अधिकतम 5 उम्मीदवारो को PM के लिए स्वीकृत कर सकता है।
(3) स्वीकृति दर्ज करना – मतदाता किसी भी दिन किसी भी उम्मीदवार को स्वीकृत कर सकते है या किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में दी गयी स्वीकृति रद्द कर सकते है।
(4) स्वीकृति दर्ज करने के तरीके – मतदाता पटवारी कार्यालय में उपस्थित होकर किसी उम्मीदवार के पक्ष में हाँ / नहीं दर्ज कर सकते है , या मोबाईल एप द्वारा या अपने रजिस्टर्ड मोबाईल नंबर से SMS करके या ATM से भी अपनी स्वीकृति दर्ज करवा सकते है।
(5) स्वीकृतियों का प्रदर्शन – प्रत्येक मतदाता द्वारा दर्ज हाँ / नहीं को मतदाता की मतदाता संख्या, नाम और उसके द्वारा स्वीकृत किये उम्मीदवारों के नाम के साथ PM की वेबसाइट पर रखा जाएगा।
(6) PM की नियुक्ति – यदि किसी उम्मीदवार की स्वीकृतियों की संख्या कार्यरत PM से 1 करोड़ अधिक हो जाती है तो PM त्याग पत्र दे सकते है , या सांसद अमुक उम्मीदवार को नया PM नियुक्त कर सकते है, या उन्हें ऐसा करने की आवयश्कता नही है। इस सम्बन्ध में सांसदों का निर्णय अंतिम होगा।
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