श्री लंका कैसे हो गया दीवालिया भारत को इससे क्या सीख लेनी चाहिए।

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… क्योंकि शेर अकेला चरता है।

श्रीलंका एक खुशहाल देश हुआ करता था। लंका, समुद्र से उभरा हुआ पहाड़ है, तो इस पर धान्य फसलें कम होती है। चाय, मसाले, रबर, और तमाम हार्टीकल्चर की फसल ही उसकी इकानमी हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रतिव्यक्ति आय, प्रतिव्यक्ति जीडीपी मे लंका के आंकड़े वैष्विक स्तर के हैं। कुल मिलाकर दक्षिण एशिया का सबसे समृद्ध देश श्रीलंका था।

अब दीवालिया है।
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प्रभाकरण को हराकर राजपक्से और उनका परिवार हृदय सम्राट बन गया। बहुमत पे बहुमत मिला, ताकतवर सरकार बनी।

ताकतवर सरकार याने बाजार, व्यापार, बैंक, अर्थव्यवस्था, कानून, कोर्ट और मीडिया पर पूरा कन्ट्रोल। आज श्रीलंका, राजपक्से परीवार की डिक्टेरशिप है।

एण्ड डिक्टेटर नोज एवरीथिंग… !!

डिक्टेटर को साइंस, टेक्नालजी, हिस्ट्री, सिविक्स, एग्रीकल्चर, बैंकिंग, बिजनेस, स्पोर्ट्स, स्पेस, रेडार याने दुनिया की हर चीज के बारे मे विशद जानकारी होती है। डिक्टेटर भला आदमी होता है, उसकी नीयत मे खोट नही होता।

तो राष्ट्रपति गोटाबाया राज्पक्ष्सा से निर्णय किया – देश विश्वगुरू बनेगा।
आर्गेनिक विश्वगुरू।

श्री लंका हुआ दिवालिया
तो एक दिन राष्ट्रपति महोदय ने घोषणा कर दी। आज से देश मे फर्टिलाइजर बैन, कीटनाशक बैन.., किसी तरह का केमिकल हमारे देश मे उपयोग नही होगा। जो करेगा, उसे सजा मिलेगी। देश रातोरात आर्गेनिक हो गया। 

राष्ट्रपति महोदय का विश्व मे डंका बजने लगा। यूएन ने तारीफ की, लेकिन वैज्ञानिकों ने नही ... कहा -  इससे श्रीलंका की कृषि तबाह हो जाएगी। 

श्रीलंका के डिक्टेटर ने अनसुना कर दिया। मजबूत इरादे और साफ नीयत से किया गया काम तो हमेशा सफल होता है, मितरों... 

श्रीलंका की फसलें तबाह हो गई। उत्पादन आधा हो गया, और गुणवत्ता घटने से निर्यात के आर्डर कैंसल हो गए। इधर कोविड ने टूरिज्म खत्म किया तो इकानमी को मिलने वाली विदेशी मुद्रा भी गायब हो गईं।

विदेशी मुद्रा नही तो खाने पीने की वस्तुओं का आयात संभव न हुआ। भुखमरी छाने लगी, तो राष्ट्रपति महोदय ने सेना के एक जनरल को ड्यूटी पर लगाया। वो घूम घूम कर व्यापारियों के गोदाम मे छापे मारने लगे।

इससे हालात नही सुधरे। कुछ लोगों ने आलोचना लिखी तो जेल मे भर दिये गए। जो लोग कीड़े लगी सब्जियों और मसालों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे, उनपर मुकदमे लाद दिये गए।

कृषि मंत्री ने खेती के आंकड़े जारी करना बंद कर दिया। और सबको जल्द ही बायोपेस्टिसाइड और बायोफर्टिलाइजर उपलब्ध कराने का वादा करने लगे।

फिलहाल श्रीलंका की इकानमी कौलेप्स होने की स्थिति मे है। श्रीलंकन मुद्रा को कोई हाथ नही लगा रहा। आयात के लिए पैसे नही है। जरूरी चीजो का अभाव है, राशनिंग और कोटा निर्धारित किये जा रहे है। अच्छे खासे देश की वाट लग चुकी है।

हाल मे कर्ज न पटा पाने के कारण , अपना हम्बनटोटा बंदरगाह 99 साल की लीज पर चीन के हवाले कर देना पड़ा था। अब और कर्ज लिया जा रहा है।
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राजपक्षे एक ही रट लगाए है – मै देश नहीं “बिकने” दूंगा।

पर देश को “लीज पर देने” के बारे मे उनके विचार सकारात्मक प्रतीत होते हैं।
ईमानदार लोकप्रिय सर्वज्ञानी डिक्टेटर सारी इकानमी चर चुका है।

.. क्योंकि शेर अकेला चरता है।

कॉपी मनीष सिंह

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