खाचरियावास को नहीं मिला किसी मंत्री का साथ: राजस्थान सरकार में बहुत से मंत्री भर रहे IAS अफसरों की एसीआर

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खाचरियावास को नहीं मिला किसी मंत्री का साथ: राजस्थान सरकार में बहुत से मंत्री भर रहे IAS अफसरों की एसीआर आईएएस अफसरों की एसीआर (एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट) भरने का अधिकार मंत्रियों को देने की मांग उठाने वाले खाद्य व रसद मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास अकेले पड़ते जा रहे हैं। असल में खाचरियावास को किसी और मंत्री का साथ नहीं मिला है। राज्य में आईएएस अफसरों की रिपोर्ट केवल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही भर रहे हैं, ऐसा भी नहीं है। बहुत से मंत्री भी आईएएस अफसरों की एसीआर भर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार में भी बहुत से मंत्री आईएएस अफसरों की एसीआर भर रहे थे। वर्तमान सरकार के शीर्ष दो मंत्रियों में से एक मंत्री जो पिछले 40 वर्षों में 17-18 विभागों के मंत्री रह चुके हैं। वे एक बार आईएएस काडर के पैतृक कार्मिक विभाग के भी मंत्री रहे हैं। वे चार मुख्यमंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं, ने भास्कर को नाम जाहिर न करने के आग्रह के साथ बताया कि वे अनावश्यक विवाद में नहीं पड़ना चाहते। उन्होंने मंत्री रहते हुए हर बार आईएएस अफसरों की एसीआर भरी है। इस कार्यकाल में भी भर रहे हैं। यह अधिकार मुख्यमंत्री ही मंत्रियों को देते हैं। मंत्री भी विधायकों के बीच से ही बनाए जाते हैं। यह भी मुख्यमंत्री ही तय करते हैं। मुख्यमंत्री किस मंत्री को क्या अधिकार दें और क्या नहीं, यह सिर्फ उन्हीं पर निर्भर करता है।

भैरोंसिंह शेखावत और वसुंधरा राजे के शासन काल में दो बार मंत्री रहे और वर्तमान में राज्य सभा सदस्य घनश्याम तिवाड़ी ने कहा- हर राज्य में बिजनेस रूल्स हुए हैं। उनके तहत ही एसीआर भरी जाती है। मुख्यमंत्री ही तय करते हैं किस की क्या भूमिका होगी। पिछली भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री रहे वासुदेव देवनानी ने भास्कर को बताया कि उन्होंने मंत्री रहते हुए तत्कालीन विभागीय प्रमुख शासन सचिव स्तरीय आईएएस अफसरों की एसीआर भरी थी। मंत्री पद की शक्तियां और अधिकार सब मुख्यमंत्री पर ही अंतत: तय करते हैं। भैरोसिंह शेखावत की सरकार में कार्मिक मंत्री और वसुंधरा सरकार में उद्योग मंत्री रहे राजपाल सिंह शेखावत ने भास्कर को बताया कि राजस्थान में आम तौर पर मंत्री ही भरते हैं आईएएस अफसरों की सीआर । मैंने भी कार्मिक, आयोजना, नगरीय विकास, उद्योग आदि विभागों के मंत्री रहने के दौरान एसीआर भरी है। यह नैचुरल है कि कोई अफसर है, तो मंत्री ही उसकी एसीआर भरते हैं। अंतिम अधिकार हमेशा ही मुख्यमंत्री के पास रहता है। कांग्रेस सरकार में यह एक नया अनावश्यक विवाद खड़ा हो गया है।

सभी राज्यों में अंतिम अधिकार मुख्यमंत्री के पास

राज्यों में आईएएस अफसरों की एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट) भरने का अंतिम अधिकार मुख्यमंत्री के पास ही रहता है। यह मुख्यमंत्री की इच्छा और विवेक पर निर्भर करता है कि वे किसी मंत्री को यह अधिकार देते हैं या नहीं। सभी राज्यों में इस संबंध में अलग-अलग नियम भी बनाए हुए हैं, लेकिन किसी भी राज्य में स्पष्ट रूप से और पूरी तरह से आईएएस अफसरों की एसीआर भरने का अधिकार मंत्रियों के हवाले नहीं किया हुआ है। जिन राज्यों में मंत्री एसीआर भरते भी हैं, तो उसे भी पूरी तरह से बदलने का अधिकार अंतत: मुख्यमंत्री के पास होता है।

मुख्य सचिव की रहती है खास भूमिका

आईएएस अफसरों में जूनियर कैडर की रिपोर्ट उनके सीनियर अफसर भरते हैं। जैसे कोई आईएएस अफसर संयुक्त शासन सचिव के पद पर या शासन सचिव के पद पर कार्यरत हैं तो उनकी रिपोर्ट शासन सचिव और प्रमुख शासन सचिव भरते हैं। फिर यह रिपोर्ट मुख्य सचिव के पास जाती है। मुख्य सचिव के बाद यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री के पास जाती है। प्रमुख शासन सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव की रिपोर्ट मुख्य सचिव, विभागीय मंत्री (अगर सीएम ने अधिकार दे रखे हों) और मुख्यमंत्री भरते हैं। सभी आईएएस अफसरों की एसीआर एक बार मुख्य सचिव के समक्ष जरूर जाती है। ऐसे में इस पूरे सिस्टम में मुख्य सचिव की भूमिका अहम रहती है।

केन्द्र सरकार के मंत्रालयों में मंत्री ही भरते हैं

एसीआर केन्द्र सरकार के मंत्रालयों में कार्यरत आईएएस अफसरों की एसीआर संबंधित विभाग के मंत्री ही भरते हैं। केन्द्र सरकार में यह एक स्टैंडिंग ऑर्डर है, हालांकि वहां भी अंतत: रिपोर्ट कार्मिक मामलात मंत्री और प्रधानमंत्री तक जरूर जाती है। केन्द्र में आम तौर पर प्रधानमंत्री एसीआर के मामलों में मंत्रियों की टिप्पणी को खारिज नहीं करते हैं।

केवल एसीआर भरने से ही मंत्री ताकतवर नहीं बनेंगे

पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव राकेश वर्मा (सेवानिवृत्त आईएएस) ने बताया कि आईएएस अफसरों की एसीआर भरने मात्र से ही मंत्री ताकतवर नहीं होते हैं। लोकतंत्र में राजनीतिक नेतृत्व ही सर्वोच्च होता है। मुख्यमंत्री चाहे तो मंत्री को यह अधिकार देते हैं और ना चाहे तो नहीं देते हैं। सामान्यत: देश के सभी राज्यों में यही व्यवस्था लागू है। मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री का दखल रहता ही है। मंत्रियों को अधिकार नहीं भी हो, तब भी उनकी राय बहुत अहम रहती ही है। आईएएस अफसर भी व्यवस्था के हिस्सा हैं। ऐसे में उनकी जिम्मेदारी नियमानुसार काम करने की होती है। कई बार नियमों का पालन करने के दौरान भी मंत्रियों से विवाद हो जाते हैं।

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