बैंकों के निजीकर की तैयारी में सरकार अपने राष्ट्र के प्रति ताकत को पहचाने।

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बैंकों के निजीकर की तैयारी में सरकार अपने राष्ट्र के प्रति ताकत को पहचाने।

सिर्फ बैंकों में कार्यरत 9 लाख कर्मचारियों की रोटी का सवाल नही है ,,,,,,
अगर बैंकों का निजीकरण हो गया तो निजी बैंक और उनके आसपास विकसित कॉर्पोरेशनस, कर्ज़ के मकड़जाल में फंसाकर धीरे-धीरे लोगों की नेसर्गिग संपत्ति , उत्पादन के साधनों और देश के प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार से देश के लोगों को वंचित कर देंगे । और खुद इन चीजों पर अपना अधिकार जमा लेंगे ।

अपने राष्ट्र के प्रति ताकत को पहचाने।

मुद्रास्फीति 8% है, और बचत पर बैंक की ब्याज दर 4.8%…

याने घर मे रखने पर पैसा 8% की दर से घटेगा।

बैंक में रखो तो 3.2 की दर से घटेगा।

अब आप मजबूर है, बचत का पैसा शेयर मार्केट में पैसा लगाने को। शेयर का पैसा कंपनी को जाएगा।

डूब गई, तो सारा पैसा गया।

उधर बैंक ने जो जमा आपसे ली है, वह भी लोन बनकर कम्पनी को जाएगा।

अब दिवालिया कानून जो सरकार ने बनाया है, वो कहता है कि कम्पनी के मालिकान, कम्पनी डूबने पर सिर्फ उतने पैसे की देनदारी को मजबूर होगा, जितना कि उसकी शेयर कैपिटल है।

याने मालिक की 100 करोड़ की शेयर कैपिटल है।

1000 करोड़ आपकी बचत का शेयर मार्किट से उठा लिया।

5000 करोड़ बैंक से आपके पैसे से लोन उठा लिया।

लेकिन कम्पनी उसकी देनदारी 100 करोड़ ही रहेगी।

देशवासियों को लूटकर खा जाने की आजादी नया राष्ट्रवाद है।

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बैंक डूबे लोन को राइट ऑफ कर देगा।

इस तरह एक दिन खत्म हो जाएगा, तो उसमे से 5 लाख तक के डिपॉजिट आपको इंश्योरेंस कम्पनी देगी, बाकी खत्म।

अगर सरकार इन बैंकों की मालिक रहे, तो जवाबदेही रहेगी।

बैंक ही प्राइवेट कर दो, तो वह समस्या भी खत्म।

Bank privatization

यह सरकार तो भ्रष्टाचारी नही है।

तो बड़ा आश्चर्य यह कि इतने विशालकाय “मनी हेस्ट” का रास्ता किसलिए साफ कर रही है??

कोई और पार्टी, या सरकार … बिजनेसमैन के लिए इतना कर देती तो 50 साल तक उसे चुनाव चंदे के लिए भटकना न पड़ता।

राशन दुकान, थाने से वसूली, व्यापारी से कमीशन, अफसरो की ट्रांसफर पोस्टिंग जैसी चिन्दी चोरी से फंड जुटाने की जरूरत नही होती।

ऐसी पार्टी को पैसे की कमी न होती।

हर जिले में करोड़ो का ऑफिस होता, दिल्ली में अट्टालिका होती।

गली गली में पेड कार्यकर्ता होते, मजबूत सन्गठन होता, रोज प्रशिक्षण होते।

झंडे, पोस्टर बैनर से देश अटा रहता, अरबो करोड़ो की रैलियां और आयोजन होते।

पर यह सरकार, ये पार्टी तो ईमानदार है। देशभक्त है, मितव्ययी है।

फिर ऐसा क्यो कर रही है??? सच्ची राष्ट्रवादी है शायद।

राष्ट्रवाद की गुलाबी जमीन के नीचे, तेजाबी अर्थशास्त्र होता है। हम गुलाब से तेजाब की ओर फिसल चुके। रुकने की कोई वजह, कोई मौका नही है।

मोदीसाब की करतूतों को जानने के लिए इसे पूरा पढ़े पूरा पोस्ट पढ़े बिना अपनी प्रतिक्रिया ना दे… मुझे पता है आप बहुतबड़े #ज्ञानी है 4 दिसंबर 1984 की वो भयानक रात !

खैर… सन्देश यह है कि खर्च कीजिए।

बचत करने की जरूरत नही।

वो 8% की दर से डूबेगा, या 3.2% की दर से डूबेगा, या झटके से डूबेगा।

बचत का डूबना तय है।

बाकी 5 किलो आटा मिलना भी तय है।

अजगर करे न चाकरी, पँछी करे न काम
योगी मोदी कह गए, सबके दाता राम

इसलिए राम का नाम जपिये, मस्त रहिये।

अगला मन्दिर आपके मोहल्ले में बनेगा।

यह सब नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत, भाजपा-संघ आदि द्वारा ही किया जायेगा।
समाधान

VoteVapssiPassbook #jurycourtdraftrrp

यदि ये अधिकार हमारे पास होंगे तो कोई नेता/प्रशासन अपनी मनमानी नहीं कर सकते। ये नेताओं के भाले से आपकी रक्षा करने की ढालें हैं
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● वोट (चुनने का अधिकार)
● वोट वापसी पासबुक (चुनने के बाद वापस बुलाने का अधिकार)
● जूरीकोर्ट (अदालत में न्याय करने का अधिकार)
● रेफरेंडम (जनमत संग्रह का अधिकार)
● गन-लाॅ (हर सज्जन नागरिकों को हथियार रखने की आजादी)
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बाबा साहेब की कृपा से पहली ढाल वोटिंग पाॅवर यानि वोट देने का अधिकार 1947 में नागरिकों के हाथ में दे दी गई थी जो आज भी काम कर रही है।
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ज़रा सोचिए अगर ये ढाल भी न होती तो क्या होता ?
नेता अभी तक हमारा सबकुछ बेच खा गए होते।
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बाकी ढालें भी मिली होतीं तो नेता व प्रशासनिक अधिकारी नागरिकों को डंडे नहीं दिखाते बल्कि आपके सामने हाथ जोड़े खड़े रहते।
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क्या इनमे से किसी भी प्रधानमंत्री ने इन ढालों को नागरिकों को देने की बात कही ?
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जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, वीपी सिंह,अटल बिहारी वाजपेई, मनमोहन सिंह व नरेंद्र मोदी ने इन ढालों को नागरिकों को देने की बात कही ?

नहीं न ??
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याद रखिए देश के सारे नेता, मंत्री, ज़िला प्रशासन और बाकी सारी सरकारी व्यवस्था एवं तंत्र तलवारें हाथों में लेकर नागरिकों की पीठ पर लगातार वार कर रहे हैं । कभी टैक्स लगाकर, कभी लोक डाउन लगाकर , कभी गलत कानून बनाकर, कभी कोई पाबंदी लगाकर और कभी कई और तरीकों से.. ….. इनसे बचने के लिए जो ढाल चाहिए वो नागरिकों के हाथ में नहीं दी गई वर्ना नागरिकों की आत्मा यूं रोज़ रोज़ छलनी ना होती |
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पानी, बिजली, सड़क आदि की समस्या अपने आप ख़त्म हो जाएगी जब नेताओं, ज़िला अधिकारियों और सारी नौकरशाही की नब्ज़ नागरिकों के हाथों में आ जाएगी।

अतः जिम्मेदार नागरिकों को इन नेताओं व पार्टियों की अंधभक्ति करने के बजाय अपने बचे हुए अधिकारों की मांग करे । इसी में जनहित व स्वयं का हित होगा ।

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