14. जूरी सिस्टम क्या है,क्या इसे भारत में लागू करना सही है?

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जूरी सिस्टम आखिर क्या होता है कैसे ये काम करता है और किसी को भी ज्यादा जल्दी और ज्यादा अच्छा न्याय दिला सकता है आइए जानते है इसके बारे में:

जूरी सिस्टम में जज के बदले 15 से 1500 नागरिक होते हैं, जिन्हें जूरी सदस्य कहा जाता है, वे फैसले करते हैं। ये 15 से 1500 नागरिक लाखों की मतदाता सूची में से लॉटरी से मतलब क्रम-रहित तरीके से चुने जाते हैं और हर मामले में नए जूरी सदस्य फैसला करते हैं। जूरी सिस्टम में जज सिस्टम की तुलना में, सेटिंग करना बहुत कठिन होता है, इसीलिए कोर्ट मामलों का फैसला जूरी सिस्टम में जल्दी और न्यायपूर्वक आता है। जूरी सिस्टम में फैसले कुछ हफ्तों में आते हैं – सालों साल नहीं लगते।

जज सिस्टम में कैसे एक बहुत बड़ा अपराधी बच जाता है:

इसका उदाहरण – मान लीजिए, एक पेशेवर अपराधी और उसकी गैंग पर साल में 100 कोर्ट के मामले दर्ज होते हैं। अब ये 100 मामले 5-6 जज के पास जायेंगे जिन्हें सभी लोग जानते हैं। अपराधी या उसका आदमी जज के रिश्तेदार वकील के पास जा सकता है और सलाह लेने के बहाने चेक द्वारा जज के लिए रिश्वत दे सकता है। बदले में जज, मामले को लटका देते हैं और अपराधी को गवाह खरीदने/तोड़ने के लिए समय मिल जाता है।

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जज सिस्टम में यदि जज पैसे ले लेता है और अपराधी के पक्ष में निर्णय नहीं करता, तो उस जज को आगे रिश्वत नहीं मिलेगी। यदि जज अपराधी का काम कर देता है लेकिन अपराधी उसको पैसे नहीं देता, तो जज अपने सभी मित्र जजों को बोल देगा कि इस अपराधी का कोई काम नहीं करना क्योंकि ये काम करने के बाद भी पैसे नहीं देता। इस प्रकार, जज सिस्टम में अपराधी और जज की सेटिंग आसानी से हो जाती है।

जूरी सिस्टम में क्यों किसी का भी बच पाना बहुत कठिन हैं:

अब यदि जूरी सिस्टम लागू है जज सिस्टम के बदले, तो 5-6 जज के बदले 1500 व्यक्ति उन 100 कोर्ट मामलों का फैसला करेंगे। ये जूरी सदस्य कम से कम 10 सालों तक दोहराए नहीं जाते। जूरी मंडल सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक एक ही मामले को सुनता है। अपराधी को अंतिम क्षण तक ये नहीं मालूम होगा कि कौनसे लोग निर्णय करने के लिए चुने जायेंगे।

किसी तरह उसे पता भी चल जाये, तो जूरी सदस्य और अपराधी के बीच में सेटिंग करना बहुत कठिन है क्यूंकि आरोपी जज तथा उन 15 या अधिक जूरी सदस्यों को ये निश्चित करना कठिन होगा कि उन्हें फैसले के पहले रिश्वत का लेन-देन करना चाहिए या बाद में। यदि आरोपी ये कहता है कि वो रिहाई के बाद रिश्वत देगा, तो जूरी-सदस्य उस आरोपी के ऊपर विश्वास नहीं कर पायेंगे और यदि जूरी सदस्य ये कहता है कि रिश्वत पहले और रिहाई बाद में तो वह आरोपी जूरी सदस्यों के ऊपर विश्वास नहीं कर सकेगा। इसलिए, जूरी सिस्टम में मामला लटकाया नहीं जाता और फैसला जल्दी ही, कुछ ही हफ़्तों में आ जाता है।

जूरी सिस्टम का एक अच्छा उदाहरण आपको बॉलीवुड की फ़िल्म Rustom में देखने को मिल जाएगा।

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जज सिस्टम और जूरी सिस्टम में अंतर:

  1. जज सिस्टम में दंड देने की शक्ति कुछ लोगो को स्थाई रूप से दे दी जाती है,और इनकी नियुक्ति और निष्कासन राज्य वर्ग के पास होता है और कोई भी अपराधी उस जज और वकील को पैसे दे देता है तथा बच जाता है। वही जूरी सिस्टम में दंड देने की शक्ति विभिन्न व्यक्तियों के हाथो में स्थांतरित होती रहती है,जिससे कोई भी अपराधी किसी को भी पैसे देकर हमेशा बच नहीं सकता। और अगर देता भी है तो उसे ये बात पता रहेगी की अगले दिन फिर से जज वकील सब के सब बदल जायेंगे , तो वो कितनी को पैसा देगा।

जूरी सिस्टम के बजाए जूरी कोर्ट बनाना क्यूं ज्यादा सही होगा:

जूरी सिस्टम अदालतों के संचालन का एक सिद्धांत है प्रक्रिया विहीन होने के कारण इसे लागू नहीं किया जा सकता। अगर सिर्फ ये सिस्टम लागू होने से किसी भी अपराधी बच पाना बहुत मुश्किल है तो आप खुद ही सोचिए की अगर इसी जूरी सिस्टम के बजाए पूरा का पूरा जूरी कोर्ट ही बना दिया जाए तब क्या होगा। तब उस कोर्ट में जूरी के ही लोग होंगे सब कुछ उनके हाथ में रहेगा कब,क्या,कैसे करना है ये सिर्फ जूरी कोर्ट के लोग ही तय करेंगे और कोई नही। तब किसी भी अपराधी का बच पाना मुश्किल है और उसे सजा देने में सालो साल नही लगेंगे बल्कि सब कुछ, कुछ दिनों में ही हो जायेगा।

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