सेना को कमजोर करने का षडयंत्र चल रहा है,विरोध उचित है,जैसा भी हो!

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सेना को कमजोर करने का षडयंत्र चल रहा है,

विरोध उचित है,जैसे हो सके वैसे विरोध करें ।

हर वर्ष 60 हजार सैनिक अवकाश लेते हैं,उन रिक्त पदों की पूर्ति नहीं की जा रही है । फलस्वरूप सेना का आकार घटता जा रहा है,जबकि खतरे बढ़ रहे हैं ।


दो वर्षों में 1.2 लाख सैनिक अवकाश लेकर सेना से निकले

किन्तु नयी भर्ती कोविड के बहाने जानबूझकर रोककर रखी गयी । कोविड के बहाने अन्य सेवाओं में भर्ती नहीं रुकी । केवल सेना ही बलि का बकरा है?अब उन स्थानों पर 46 हजार अग्निवीरों की बहाली होगी जिनको पूरा प्रशिक्षण लेने का अवसर ही नहीं मिलेगा । पूरे सैनिक नहीं बन सकेंगे ।

अग्निपथ के विरोध में भावी अग्निवीर देश को क्यो जला रहें है ?

सेना पर कुल खर्च राष्ट्रीय आय का केवल 2% रह गया है ।

अन्य कार्यों के लिए देश में धन की कमी नहीं है,केवल सेना के लिए धन नहीं है!

सेना को कमजोर करने के साथ यह अग्निपथ स्कीम जुड़ी है,

दबाव है अमेरिकी FDI का । सेना को कमजोर नहीं किया जाता और उसे अतिरिक्त बल देने के लिये यही अग्निपथ स्कीम लायी जाती तो स्वागत योग्य होती । जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ किसान बिल होते तो स्वागत योग्य होते ।

यह भी पढ़ें WTO की बैठक जेनेवा में हुई। इस सम्मेलन में अमेरिका और यूरोपीय देशों ने भारतीय किसानों को दी जाने वाली एग्रीकल्चरल सब्सिडी का विरोध किया।

किन्तु असली योजना किसानों को लूटने की थी जिस कारण बिल वापस लिया जाना गवारा था किन्तु न्यूनतम समर्थन मूल्य उस बिल में गवारा नहीं था । उसी तरह सेना को सबल बनाने के लिये यह अग्निपथ स्कीम नहीं है,बल्कि “नियमित भर्ती” रोककर सेना को कमजोर करने का उपाय है । हथियार के दलालों को प्रसन्न करना है,सेना पर खर्च घटाना है ताकि उस पैसे से हथियार के दलालों का माल बिकवाया जाय ।

मौनमोहन काल से ही सेना घटाने की लिखित सन्धि है । अमरीका का षडयन्त्र है कि सभी देशों की सेनायें घटे क्योंकि अमरीका केवल तकनीक के बल पर लड़ना चाहता है । जर्मनी ने रक्षा बजट दोगुना बढ़ाया है,जापान से लेकर समूचा द⋅पू⋅ एशिया चीन के खतरे से निबटने के लिए रक्षा बजट बढ़ा रहा है । पाकिस्तान,तालिबान और चीन का खतरा बढ़ा है ।

नीचे एक स्क्रीनशॉट संलग्न कर रहा हूं,जो बताता है कि रक्षा बजट लगातार घटाया जाता रहा है और मोदी काल में न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है ।

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