महिला खतना के खिलाफ आज जीरो टॉलरेंस डे: 92 देशों में दर्दनाक प्रथा से गुजरती हैं बच्चियां, खराब हो जाती है सेक्शुअल लाइफ

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महिला खतना के खिलाफ आज जीरो टॉलरेंस डे: 92 देशों में दर्दनाक प्रथा से गुजरती हैं बच्चियां, खराब हो जाती है सेक्शुअल लाइफ 8 साल की आफरीन को गुड़िया दिलाने की बात कहकर उसकी मां उसे किसी अनजान जगह पर ले जाती है। जहां पहले से ही कुछ लोग मौजूद होते हैं । आफरीन कुछ समझ पाती, इससे पहले ही ये लोग उसके हाथ-पैर को कसकर पकड़ लेते हैं। एक महिला आफरीन के प्राइवेट पार्ट पर ब्लेड चलाकर उसका खतना कर देती है।

आफरीन दर्द से चीखने लगती है। दवा और ड्रेसिंग के बावजूद उसका खून बहना बंद नहीं होता है। उसकी मां को लगने लगा कि वे अपनी बेटी को खो देंगी। अगले दिन वे बच्ची को लेकर दूसरे अस्पताल गईं। वहां सर्जन ने बच्ची के प्राइवेट पार्ट पर टांके लगाए, तब जाकर खून बहना बंद हुआ। 8 साल की आफरीन की कहानी तो सिर्फ बानगी है। इस दर्दनाक प्रथा से दुनिया के 92 देशों की 20 करोड़ से भी ज्यादा महिलाओं को गुजरना पड़ा है और ये नंबर लगातार बढ़ रहा है। यूनाइटेड नेशंस इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन मानता है, इसलिए हर साल 6 फरवरी को महिला खतना के खिलाफ ‘इंटरनेशनल जीरो टॉलरेंस डे’ मनाया जाता है।

महिला खतना, कैसे होता है, इसके कितने प्रकार हैं और दुनिया में क्यों मनाया जाता है जीरो टॉलरेंस डे ?

खतना प्रथा में महिलाओं के वजाइना के एक हिस्से को धारदार ब्लेड या चाकू से काट कर अलग कर दिया जाता है। खतना ज्यादातर 1 साल से 15 साल की उम्र में होता है। इस प्रोसेस में बच्चियों को बहुत ज्यादा दर्द होता है। भारत में बोहरा मुस्लिम समुदाय में ये प्रथा आम है।

बोहरा समुदाय में खतना की प्रथा को खत्म करवाने के लिए ‘वी स्पीक आउट’ संस्था चलाने वाली मासूमा रानालवी बताती हैं कि महिलाओं की सेक्शुअल डिजायर को कंट्रोल करने और उन्हें पवित्र बनाए रखने के लिए खतना किया जाता है। दरअसल, बोहरा मुसलमान यमन से भारत आए थे। वहां महिलाओं का खतना करने की प्रथा थी । बोहरा मुसलमानों के साथ यह प्रथा भी भारत आ गई। आज दुनिया के 80% बोहरा मुसलमान भारत में ही रहते हैं और खतना की प्रथा को फॉलो करते हैं। 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में दाऊदी बोहरा कम्युनिटी की 7 साल साल या उससे ज्यादा उम्र की करीब 75% बच्चियों का खतना हो चुका है।

धारदार ब्लेड से एक ही कट में किया जाता है खतना

गुजरात के लारा अस्पताल की गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. शुजात वली कहते हैं कि आमतौर पर घर की दादी या मां बच्ची को घुमाने के नाम पर घर से बाहर ले जाती हैं। वहां एक कमरे में पहले से दो लोग मौजूद होते हैं। वे लोग बच्ची के दोनों पैर पकड़ लेते हैं। फिर खास तरह की धारदार चाकू, रेजर ब्लेड या कैंची से एक ही कट में क्लिटोरिस हुड को अलग कर दिया जाता है। पुराने जमाने में ब्लीडिंग रोकने के लिए ठंडी राख लगा दी जाती थी। आजकल एंटीबायोटिक पाउडर या लोशन और कॉटन का इस्तेमाल किया जाता है। ब्लीडिंग रुकने के करीब 40 मिनट बाद बच्ची को घर भेजा जाता है। तीन-चार दिन उसे खेलने-कूदने से मना किया जाता है। कई बार तो हफ्ते भर तक लड़की के दोनों पैरों को बांधकर रखा जाता है।

चार तरह से किया जाता है खतना

महिलाओं के खतना को अंग्रेजी में फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन यानी FGM कहते हैं। इसमें उन सभी प्रोसेस को शामिल किया जाता है, जिनमें बिना किसी मेडिकल जरूरत के महिलाओं के जननांग के बाहरी हिस्से को थोड़ा या पूरा अलग कर दिया जाता है। WHO के मुताबिक, ये 4 तरह का होता है। भारत के बोहरा समुदाय में टाइप-1 का खतना किया जाता है।

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