समान नागरिक संहिता क्या होता है?

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समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का ही क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों या जाति के लिए एक ही कानून लागू होगा। समान नागरिक संहिता का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है।

समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर मजहब या धर्म के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा। यानी मुस्लिमों को भी तीन शादियां करने और पत्नी को महज तीन बार तलाक बोले देने से रिश्ता खत्म कर देने वाली परंपरा सुप्रीम कोर्ट ने अब लगभग खत्म कर दी है। वर्तमान में देश हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के अधीन करते हैं।

फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिन्दू सिविल लॉ के तहत हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं। संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के अधीन करते हैं। फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिन्दू सिविल लॉ के तहत हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं।

संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्‍छेद 44 के तहत राज्‍य की जिम्‍मेदारी बताया गया है, लेकिन ये आज तक देश में लागू नहीं हो पाया। इसे लेकर एक बड़ी बहस चलती रही है।

क्या है हिन्दू पर्सनल लॉ :

भारत में हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के अंतर्गत आता है। जिससे हिंदुओं के लोग एक दूसरे से इस एक्ट के द्वारा शादी कर सकते हैं। यहां हिन्दुओं के लिए हिन्दू कोड बिल लाया गया। देश में इसके विरोध के बाद इस बिल को चार हिस्सों में बांट दिया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे Hindu marriage Act,Hindu succession act, Hindu adoption and maintenance act और Hindu minority and ud guardianship act में बांट दिया था। इस कानून ने महिलाओं को सीधे तौर पर सशक्त बनाया।

इनके तहत महिलाओं को पैतृक और पति की संपत्ति में अधिकार मिलता है। इसके अलावा अलग-अलग जातियों और धर्मों के लोगों को एक-दूसरे से शादी करने का अधिकार है लेकिन कोई व्यक्ति एक शादी के रहते दूसरी शादी नहीं कर सकता है।

समान नागरिक संहिता

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क्या है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड?

भारत में मुस्लिमों के लिए एक्ट 1939 बना हुआ है जिसके द्वारा वह इस एक्ट के माध्यम से शादियां एक दूसरे से कर सकते हैं। जिसमें इन्हें मुस्लिम मैरिज एक्ट का पालन करना होता है।देश के मुस्लिमों के लिए अलग मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड है। इसके लॉ के अंतर्गत शादीशुदा मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को महज तीन बार तलाक कहकर तलाक दे सकता है। हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में तलाक के और भी तरीके दिए गए हैं, लेकिन उनमें से तीन बार तलाक भी एक प्रकार का तलाक माना गया है, जिसे कुछ मुस्लिम विद्वान शरीयत कानून के खिलाफ भी बताते हैं। पर अब सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को खत्म कर दिया है।

देश में इस कानून की क्या आवश्यकता है?

अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होने लगेंगे। गोद लेना, शादी, तलाक और जायदाद के बंटवारे में इन सभी मामलों में एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो।

वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते आ रहे है। सभी के लिए कानून में एक समानता से देश में एकता और अखंडता बढ़ेगी और जिस देश में नागरिकों में एकता होती है, किसी भी प्रकार का वैमनस्य नहीं होता है वह देश तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर भी असर पड़ेगा और राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे और वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होगा।

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क्या महिलाओं की स्थिति में होगा सुधार ?

समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में भी सुधार आएगा। कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं। इतना ही नहीं, महिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे इन सभी मामलों में एक समान नियम लागू होंगे।

समान नागरिक संहिता का क्यों हो रहा है विरोध?

यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करने वालों का कहना है कि ये सभी धर्मों पर हिन्दू कानून को लागू करने जैसा है।

इन देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है :-

एक तरफ भारत में समान नागरिक संहिता को लेकर बड़ी बहस चल रही है। वहीं दूसरी ओर मिस्र(इजिप्ट), बांग्लादेश, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और मलेशिया जैसे कई देश इस कानून को अपने यहां लागू कर चुके हैं।

इस विषय में विधि आयोग के विचार :-

न्याय मंत्रालय और विधि द्वारा वर्ष 2016 में समान नागरिक संहिता से संबंधित मुद्दों के समग्र अध्ययन करने के बाद एक विधि आयोग का गठन किया गया। विधि आयोग के द्वारा कहा गया कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा मूल अधिकारों के तहत अनुच्छेद 14 और 25 के बीच द्वंद्व से प्रभावित है।

आयोग ने भारतीय बहुलवादी संस्कृति के साथ ही महिला अधिकारों की सर्वोच्चता के मुद्दे को इंगित किया। पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा की जा रही कार्यवाहियों को ध्यान में रखते हुए विधि आयोग ने कहा कि महिला अधिकारों को वरीयता देना प्रत्येक धर्म और संस्थान का कर्तव्य होना चाहिए। विधि आयोग के विचारों के अनुसार, समाज में असमानता की स्थिति उत्पन्न करने वाली समस्त रुढ़ियों की समीक्षा की जानी चाहिए। इसलिये सभी निजी कानूनी प्रक्रियाओं को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता है जिससे उनसे संबंधित पूर्वाग्रह और रूढ़िवादी तथ्य सामने आ सकें।

वैश्विक स्तर पर प्रचलित मानवाधिकारों की दृष्टिकोण से सर्वमान्य व्यक्तिगत कानूनों को वरीयता मिलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने लड़कों और लड़कियों की विवाह की आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष कर दी है। जिससे समाज में समानता स्थापित की जा सके।

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समान नागरिक संहिता पर केंद्र-राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार :-

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार को एलान किया था कि अगर भाजपा राज्य में दोबारा चुनी गई तो समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए एक पैनल गठित किया जाएगा। इस घोषणा के बाद इस मुद्दे पर अधिकार क्षेत्र को लेकर बहस छिड़ गई है।

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों को इस संबंध में कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन कुछ विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं है। विशेषज्ञ एवं लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी ने कहा कि केंद्र और राज्य दोनों को इस तरह का कानून लाने का अधिकार है क्योंकि शादी, तलाक, विरासत और संपत्ति पर अधिकार जैसे मुद्दे संविधान की समवर्ती सूची में आते है।

साथ ही पर्सनल ला विवाह, तलाक, विरासत और संपत्ति के अधिकार से जुड़े कानून समान नागरिक संहिता के दायरे में आते हैं। उन्होंने कहा कि राज्य विधानसभा संबंधित राज्य में रहने वाले समुदाय के लिए कानून बना सकती है।इसका मतलब है कि स्थानीय विविधताओं को राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून के जरिये मान्यता दी जा सकती है।दूसरी तरफ, पूर्व केंद्रीय कानून सचिव पीके मल्होत्रा का मानना है कि केंद्र सरकार ही संसद के रास्ते ऐसा कानून ला सकती है।

उनकी राय थी कि चूंकि संविधान का अनुच्छेद-44 पूरे भारत में सभी नागरिकों को संदर्भित करता है तो केवल संसद ही ऐसा कानून बनाने में सक्षम है गोवा में समान नागरिक संहिता होने से जुड़े सवाल पर मल्होत्रा ने कहा कि उनकी समझ के अनुसार, गोवा के भारत का हिस्सा बनने से पहले से नि ही यह कानून अस्तित्व में था संविधान के के अनुच्छेद-44 में यह प्रावधान है कि सरकार भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगी।

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धामी ने शनिवार को यह भी कहा था कि समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने चाले पैनल में कानूनी विशेषज्ञ, सेवानिवृत्त लोग, बुद्धिजीवी और अन्य हितधारक शामिल होंगे। उत्तराखंड में सोमवार को मतदान होना है। धामी ने कहा था कि समिति के बनाए गए मसौदे के दायरे में विवाह, तलाक, संपत्ति और उत्तराधिकार से संबंधित मुद्दे शामिल होंगे।याद दिला दें कि समान नागरिक संहिता क भाजपा के चुनावी

घोषणापत्र का लगातार अनुच्छेद-44 पूरे भारत में सभी नागरिकों को संदर्भित करता है तो केवल संसद ही ऐसा कानून बनाने में सक्षम है।

गोवा में समान नागरिक संहिता होने से जुड़े सवाल पर मल्होत्रा ने कहा कि उनकी समझ के अनुसार, गोवा के भारत का हिस्सा बनने से पहले से ही यह कानून अस्तित्व में था संविधान के अनुच्छेद-44 में यह प्रविधान है कि सरकार भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगी।धामी ने शनिवार को यह भी कहा था कि 2018 को समाप्त हो गया था।

समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने वाले पैनल में कानूनी विशेषज्ञ, सेवानिवृत्त लोग, बुद्धिजीवी और अन्य हितधारक भी शामिल होंगे। उत्तराखंड में सोमवार को मतदान हुआ है। धामी ने कहा था कि समिति के बनाए मसौदे के दायरे में विवाह, तलाक, संपत्ति और उत्तराधिकार से संबंधित मुद्दे शामिल होंगे।याद दिला दें कि समान नागरिक संहिता भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का लगातार हिस्सा रही है। अमेरिका क्यों लगाना चाहता है उत्तर कोरियाई लोगों पर प्रतिबंध?

केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने हाल ही में एक भाजपा सांसद को लिखे पत्र में कहा था कि समान नागरिक संहिता के विषय के महत्व, इससे जुड़ी संवेदनशीलता और विभिन्न समुदायों को नियंत्रित करने वाले पर्सनल ला के प्रविधानों के गहन अध्ययन की आवश्यकता को देखते हुए समान नागरिक सहिता से संबंधित मुद्दों की जांच करने और सिफारिशें देने का प्रस्ताव 21वें विधि आयोग को भेजा गया था।

हालांकि, 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया था।लोकसभा में एक सदस्य द्वारा समान नागरिक संहिता की जरूरत का मुद्दा उठाने पर रिजिजू ने कहा था, ’22वां विधि आयोग इस मामले को देख सकता है।’ बीते दो वर्षों में विस्तृत शोध और राय-मशविर के बाद विधि आयोग ने भारत में पारिवारिक कानूनों में सुधार पर एक परामर्श पत्र जारी किया था। बता दें कि विधि आयोग जटिल कानूनी मुद्दों पर सरकार को सलाह देता है।

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