मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य क्या है?( What is Fundamental rights and duties) 1 :-

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हमारे भारत में मौलिक अधिकार को विशेष महत्व दिया जाता है।किसी देश के नागरिकों की उन्नति तथा व्यक्तित्व के विकास के लिए अच्छे जीवन की दशाएं होना आवश्यक है। कुछ मूलभूत आवश्यकताओं के अतिरिक्त हमें अपने विकास से के लिए अवसरों की भी आवश्यकता होती है। इसलिए कुछ मूलभूत अधिकार जी ने विशेषाधिकार भी कहते हैं, लोगों को मिलने चाहिए, जिससे उनका जीवन सार्थक बन सके। यह एक सफल लोकतंत्र के लिए आवश्यक भी है।

भारत के मौलिक कर्तव्य

भारतीय संविधान में अपने नागरिकों के लिए 6 मौलिक कर्तव्य है। यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 3 में वर्णित है, जिन्हें निम्नलिखित रुप से वर्गीकृत किया गया है

1. समानता का अधिकार,

2. स्वतंत्रता का अधिकार,

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार,

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार,

5. सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

1. समानता का अधिकार ( Rights to equality) :-

भारतीय संविधान नागरिकों को तीन प्रकार की संबंधों की गारंटी देता है।

(a) वैधानिक (कानूनी), (b) नागरिक (c) सामाजिक।

(a) कानूनी समानता से तात्पर्य है कि भारत के सभी नागरिक, चाहे वे धनी हो या निर्धन, कानून की दृष्टि में समान है। कानून धर्म, जाति, पंथ, जन्म स्थान या सामाजिक स्तर के आधार पर दो व्यक्तियों के बीच भेदभाव नहीं करता है।

(b) नागरिक समानता से आशा है कि सभी भारतीय नागरिकों को मत देने, चुनाव लड़ने तथा सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार है। भारत का प्रत्येक नागरिक जिसके पास किसी भी पद के लिए चुनाव लड़ने या सरकारी नौकरी करने की उल्लेखित योग्यताएं हैं, बिना किसी भेदभाव के कर सकता है।

संविधान में राज्य द्वारा लोगों को ऐसी पदवियां दिए जाने का निषेध है, जो देश में भी विषमताएं पैदा करती हो। किंतु भारत रत्न पदम श्री आदि सम्मान इसके अपवाद हैं। यह पुरस्कार किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए दिए जाते हैं।

(c) सामाजिक समानता से तात्पर्य है कि भारत के नागरिकों को शिक्षा, रोजगार तथा जीवन में प्रगति के समान अवसर प्रदान किए जाएं। अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों तथा पिछड़ी जातियों को शिक्षा तथा रोजगार में आरक्षण के रूप में विशेष संरक्षण प्रदान किए गए हैं। ताकि एवं अन्य वर्गों के समकक्ष हो सके। अस्पृश्यता (छुआछूत) मानवता के विरुद्ध अपराध घोषित किया गया है।

कोई भी व्यक्ति यदि किसी के साथ अपृश्यता का व्यवहार करता है तो वह कानून द्वारा दंडनीय है। किसी भी नागरिक को प्रजाति है जाति के आधार पर मंदिरों में सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता।

2. स्वतंत्रता का अधिकार ( Right to freedom) :-

भारतीय संविधान अपने नागरिकों को छह प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान करता है।

(a) 62 तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता से अभिप्राय है कि भारतीय नागरिक सार्वजनिक महत्व के सभी मामलों में अपने विचार, लेखन या भाषण द्वारा अभिव्यक्त कर सकते हैं। स्वतंत्रता के कारण ही भारत में प्रति सरकार की आलोचना के लिए स्वतंत्र हैं। किंतु इस अधिकार का प्रयोग सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए।

हम बिना सोचे समझे अकारण ही किसी की आलोचना नहीं कर सकते। यदि कोई व्यक्ति लोगों को हिंसा के लिए भड़काता है या ऐसा भाषण देता है, जो पड़ोसी देशों से मैत्री संबंधों के विरुद्ध हो तथा भारत की सुरक्षा के लिए खतरा हो, तो उस व्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा सकता है।

(b) सभा करने के लिए स्वतंत्रता से अभिप्राय है कि भारत के नागरिक सार्वजनिक सभा कर सकते हैं तथा बिना शास्त्र यह इंसाफ पूर्ण कृतियों के जुलूस निकाल सकते हैं। किंतु सामान्य कानून तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिए इस अधिकार के प्रयोग पर उचित अंकुश लगाया जा सकता है।

(c) संज्ञा संगठन निर्माण की स्वतंत्रता से आशा है कि भारतीय नागरिक अपने हितों की सुरक्षा के लिए विभिन्न संगठन बना सकते हैं।

(d) भारत के किसी भाग में रहने तथा बसने की स्वतंत्रता का अर्थ है कि देश के नागरिक व्यवसाय या नौकरी के लिए देश के किसी भी भाग में बस सकते हैं; किंतु जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में बसने पर नियंत्रण लगाया गया है।

(e) संपूर्ण देश में स्वतंत्रता पूर्व घूमने की स्वतंत्रता के अंतर्गत भारतीय नागरिकों को व्यवसाय, नौकरियां मनोरंजन के लिए कहीं भी घूमने की स्वतंत्रता है।

(f) किसी भी व्यवसाय, व्यापार या नौकरी की स्वतंत्रता का अर्थ है कि भारतीय नागरिक कोई भी व्यवसाय व्यापार कर सकते हैं जब तक कि वह गैरकानूनी ना हो, किंतु व्यक्ति की इस स्वतंत्रता पर सरकार कुछ नियंत्रण लगा सकती हैं; जैसे- सरकार किसी व्यवसाय या तकनीकी नौकरी के लिए न्यूनतम योग्यता ओं का प्रावधान कर सकती हैं।

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार ( Right against exploitation) :-

निर्धनता समाज के बड़े वर्ग द्वारा शोषण का मूल कारण है। ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरागत खर्चा तथा वस्तुओं के उच्च मूल्य के कारण बहुत से लोग ऊंचे ब्याज पर महाजनों से उधार लेते हैं। जब रोड दाता दे राशि लौटाने में असमर्थ होता है तो उसे महाजन के लिए बिना वेतन काम करने हेतु बाध्य किया जाता है, जिसे बेगार कहते हैं।

इसी प्रकार स्त्रियों और बच्चों का भी शोषण किया जाता है। निर्धन परिवारों के बच्चे बड़ी संख्या में अनेक खतरनाक उद्योगों में व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दशाओं में बहुत कम वेतन पर कई घंटों तक काम करते हैं। संविधान ऐसे शोषित वर्गों को संरक्षण प्रदान करता है। इसके लिए बेगार, बाल श्रम, स्त्रियों के देह शोषण आदि को निश्चित किया गया है।

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ( Right to freedom of religion) :-

भारत धर्मनिरपेक्ष देश है। राज्य किसी विशेष धर्म को संरक्षण नहीं देता। धर्म व्यक्ति की व्यक्तिगत सुरक्षा का मामला है तथा राज्य को व्यक्ति के धार्मिक विश्वासों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

हमारा संविधान अपने नागरिकों को अपनी पसंद के किसी भी धर्म को मानने, अपनाने तथा प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। सभी नागरिक अपनी धार्मिक तथा चैरिटेबल संस्थाओं का प्रबंध करने के लिए स्वतंत्र हैं। विभिन्न धार्मिक समुदाय अपनी शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना कर सकते हैं, या धार्मिक शिक्षा दी जाती हो।

5. सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार ( Cultural and educational rights) :-

भारत के लोग विभिन्न भाषाएं बोलते हैं, विभिन्न परंपराएं(रीति रिवाज) वन्य जीवन शैली अपनाते हैं तथा विभिन्न संस्कृतियों का पालन करते हैं। संविधान सभी लोगों को अपनी प्रादेशिक भाषाओं, लिपियों तथा साहित्य के विकास की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है। देशभर में वर्नाक्यूलर (प्रादेशिक भाषा) स्कूल तथा विद्यालय खोले जा सकते हैं।

राज्य ऐसी संस्थाओं को बिना किसी भेदभाव के वित्तीय सहायता प्रदान करता है। सरकार विभिन्न समुदायों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों को आयोजित करने के लिए भी प्रोत्साहन देती है।

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Rights to constitutional remedies) :-

यह सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है, क्योंकि अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त अन्य सभी अधिकारों की रक्षा करता है। यदि किसी नागरिक के किसी संविधानिक अधिकार का हनन होता है तो वह उसके स्थापना के लिए न्यायालय की शरण में जा सकता है। मौलिक अधिकारों को न्यायालय द्वारा लागू किया जा सकता है।

संविधान न्यायालय को ऐसे आदेश देने की व्यवस्था की है जिससे नागरिकों द्वारा मुकदमा करने पर उनके अधिकारों को वापस नहीं दिलाया जा सके। इसे न्यायालयों को ‘ नागरिकों के अधिकारों का संरक्षक ‘ माना जाता है।

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मौलिक अधिकारों की प्रकृति ( Nature of fundamental rights) :-

1. मौलिक अधिकार सार्वभौमिक रूप से लागू होते हैं। यह अधिकार सभी नागरिकों को बिना किसी जाति, वर्ण, धर्म, पंत और लिंग भेद के प्राप्त होते हैं।

2. मौलिक अधिकार न्यायोचित है। के दिन का हनन होता है तो नागरिक सीधे उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा सकते हैं।

3. मौलिक अधिकार पूर्णरूपेण शुद्ध नहीं है। इन पर अंकुश है। समाज के व्यापक हितों में प्रत्येक अधिकार की कुछ सीमाएं भी है; जैसे- स्वतंत्रता के अधिकार को उन स्थितियों में सीमित किया जाता है, जब वह दूसरे नागरिकों के लिए नुकसानदायक सिद्ध होता है।

4. स्वतंत्रता का अधिकार कुछ विशेष परिस्थितियों; जैसे आपातकाल, युद्ध का संकट या आंतरिक उथल-पुथल में कुछ समय के लिए निलंबित किया जा सकता है।कुछ निश्चित कानून इन अधिकारों को जनता की भर्ती के लिए सीमित करते हैं।

आंतरिक सुरक्षा अधिनियम का अनुरक्षण (Maintenance of Internal Security Act : MISA), भारतीय कानूनों की रक्षा ( Difference of Indian Rules : DIR), निवारक अवरोधक अधिनियम ( Preventive Detention Act : PDA) आदि के पालन से राष्ट्रीय हितों की रक्षा होती है तथा इन अधिकारों को पर्याप्त सीमा तक सीमित किया जा सकता है।

भारतीय संसद में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून पारित किया है जो राष्ट्र की सुरक्षा हितों की रक्षा करता है। यह उन गतिविधियों को भी रोकता है जो राष्ट्रीय हितों की विरोधी होती हैं।यद्यपि इन कानूनों के प्रयोग पर एक न्यूनतम सीमा तक पाबंदी लगी होती है यह तथापि केवल सक्षम अधिकारी ही इनको लागू कर सकता है।

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मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties):-

अधिकार और कर्तव्य साथ साथ चलते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था तब तक सफल नहीं हो सकती, जब तक कि नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य में संतुलन स्थापित ना हो। सरकार अपने नागरिकों के अधिकारों की संरक्षक है। भारत के संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को सम्मिलित नहीं किया गया था।

देश में प्रचलित दीवानी तथा फौजदारी कानून द्वारा नागरिकों के अधिकार तथा कर्तव्य नियंत्रित होते हैं थे। संविधान के 42 में संशोधन 1976 द्वारा संविधान में मौलिक कर्तव्य को जोड़ा गया। संविधान में नागरिकों के निम्नलिखित 10 मौलिक कर्तव्य उल्लेखित है।

1. प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता और उसके आदर्श था संबंधित संस्थाओं, राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान का सम्मान करना चाहिए।

2. व्यक्तियों को उन आदर्शों की कद्र उनका अनुसरण करना चाहिए, जिन्होंने हमारी स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित किया था।

3. सभी नागरिकों को भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखना चाहिए।

4. नागरिकों से आशा की जाती है कि वे देश की रक्षा करें तथा आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्र की सेवा करें।

5. सभी नागरिकों का एक पवित्र कर्तव्य है कि वे देश की संपूर्ण जनता में समरसता और भाईचारा बनाए रखें।

6. देश की संयुक्त संस्कृति तथा समृद्ध विरासत का मूल्य समझने तथा उसको सुरक्षित रखना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

7. नागरिकों को प्राकृतिक पर्यावरण; जिसमें वन, झीलें, नदिया, वन्य जीव आदि सम्मिलित हैं, की रक्षा तथा संवर्धन करना चाहिए तथा सभी प्राणियों के प्रति दया भाव रखना चाहिए।

8. सभी नागरिकों को स्वयं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवीयता, जिज्ञासा तथा सुधार की प्रवृत्ति विकसित करनी चाहिए।

9. सभी नागरिकों को सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करनी चाहिए तथा राजनीतिक हथियार के रूप में हिंसा तथा परित्याग करना चाहिए।

10. सभी नागरिकों को व्यक्तिगत तथा सामूहिक क्रियाकलापों में उत्कृष्टता हासिल करने का प्रयास करना चाहिए जिससे राष्ट्र की लगातार उन्नति हो तथा ऊंची उपलब्धियां प्राप्त हो।

11. सभी नागरिकों को यदि वे माता-पिता के संरक्षक है तो 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु वाले अपने बालक या प्रतिपालक को शिक्षा का अवसर प्रदान करना चाहिए।

भारतीय संविधान और धर्मनिरपेक्षता क्या है? (What is Indian constitution and secularism) 1 :-

सीमांत समुदायों के अधिकारों की प्राप्ति के लिए प्रयास (Effort for the Marginalised Communities to Realise their Rights) :-

संविधान तथा सरकार ने सीमांत समुदायों के कल्याण के लिए वास्तविक रूप से प्रयास किए हैं। इन समुदायों में अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियां तथा अन्य पिछड़ी जातियां सम्मिलित हैं।

समान नागरिक संहिता क्या होता है?

संवैधानिक प्रावधान क्या है?

1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (1) के अनुसार धर्म, प्रजाति, लिंग जातीय जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा, किंतु यदि पिछड़े वर्गों अर्थात अनुसूचित जातियों-जनजातियों के लिए कोई विशेष प्रावधान किया जाता है तो वह भेदभाव नहीं कहलाएगा।

2. संविधान के अनुच्छेद 17 के द्वारा अस्पृश्यता के व्यवहार को निश्चित घोषित कर दिया गया है। अब यह एक दंडनीय अपराध है।

3. संविधान के अनुच्छेद 25 (2)(b) के अनुसार सभी धार्मिक संस्था हिंदू जातियों तथा वर्गों के लिए खुले रहेंगे।

4. संविधान के अनुच्छेद 29(2) के अनुसार धर्म, प्रजातियां भाषा के आधार पर किसी भी भारतीय नागरिक को किसी भी सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त शैक्षिक संस्थान में प्रवेश देने से मना नहीं किया जाएगा।

5. संविधान के अनुच्छेद 355 के अनुसार केंद्रीय तथा राज्य के सरकारी कार्यालयों के पदों पर तथा सेवाओं में अनुसूचित जातियों – जनजातियों का पूरा ध्यान रखा जाएगा।

6. संविधान के अनुच्छेद 338 के अनुसार भारत का राष्ट्रपति एक विशेष अधिकारी को नियुक्त करेगा जो अनुसूचित जातियों जनजातियों की सुरक्षा के प्रयासों को सुनिश्चित करने के बारे में उचित पूछताछ करके राष्ट्रपति को रिपोर्ट देगा।

7. संविधान के अनुच्छेद 339 के अनुसार एक आयोग की स्थापना की जाएगी जो उचित पूछताछ के बाद राष्ट्रपति को अनुसूचित जातियों के क्षेत्रों के प्रशासन तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण की रिपोर्ट देगा।

8. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 46 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राज्य कमजोर वर्गो, विशेषता अनुसूचित जातियों जनजातियों के सचिव तथा आर्थिक हितों की रक्षा करेगा तथा उन्हें सामाजिक अन्याय और शोषण से बचायेगा।

9. अनुच्छेद 330 एवं 332 के द्वारा अनुसूचित जातियों जनजातियों के लिए लोकसभा एवं राज्य विधानसभा में राज्य की कुल जनसंख्या में उनकी जनसंख्या के अनुपात के आधार पर सीटें आरक्षित की जाएंगी।

ग्लोबल वार्मिंग के क्या कारण है?

सीमांत वर्गों के कल्याण के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय (Measures Taken by the Government for Welfare of Marginalised Communities) :-

1. सन 1955 में ‘ अस्पृश्यता उन्मूलन अधिनियम ‘ बनाया गया। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी रुप में अस्पृश्यता का व्यवहार करने पर कानून द्वारा दंडित होगा। तत्पश्चात ‘ नागरिक अधिकारों की सुरक्षा अधिनियम ‘ (1976) एवं ‘ क्रूरता प्रतिबंध अधिनियम ‘ (1990) बनाए गए जिनमें अस्पृश्यता तथा घोर क्रूरता के कर्मों के लिए दंड का प्रावधान किया गया।

2. अनुसूचित जातियों जनजातियों तथा पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व के लिए पर्याप्त व्यवस्था की गई है।

3. केंद्रीय तथा राज्य सरकारों की सेवा में अनुसूचित जातियों जनजातियों तथा पिछड़ी जातियों के लिए सीटों का आरक्षण किया गया है। आरक्षण के अतिरिक्त इन जातियों को अनेक सुविधाएं तथा रियायतें; जैसे – न्यूनतम अर्ह आयु में वृद्धि, योग्यता तथा अनुभव में रियायत आदि भी दी गई है।

4. सीमांत समुदायों की शिक्षा प्रदान करने हेतु विशेष सुविधाएं भी दी गई हैं, जिसमें कुछ निम्नलिखित हैं।

(a) प्रतियोगात्मक परीक्षाओं के लिए कोचिंग की सुविधा जिसके लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों से उनकी व्यवस्था की जाती है।

(b) कक्षा 8 से 10 तक राज्य सरकार द्वारा छात्रवृत्तियां।

(c) पाठ्य पुस्तकें, पुस्तकीय अनुदान, ॠण इत्यादि।

(d) अनुसूचित जातियों जनजातियों की लड़कियों के लिए छात्रावास की व्यवस्था।

(e) जनजाति क्षेत्र में व्यवसायिक प्रशिक्षण।

5. विभिन्न राज्य तथा केंद्र शासित क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों जनजातियों के हितों की सुरक्षा तथा वृद्धि के लिए पृथक कल्याण विभागों की स्थापना की गई है।

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