चावल के फोर्टीफिकेशन (fortification of rice) से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के धंधे का फोर्टीफिकेशन

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Fortification of rice/ What is fortification of rice


इस तरह के अनाज आगे जाकर कैंसर का कारण बनेंगे

प्रकृति के साथ खिलवाड़अब हमारे देश में एक नया षड्यंत्र कंपनियां करवा रही हैं, जिसमें गरीबों को मिलने वाले चावल को फोर्टिफाइड करने की घोषणा कर रहे हैं
“राशन की दुकान पर मिलने वाला चावल हो, मिड-डे मील में बालकों को मिलने वाला चावल हो, वर्ष 2024 तक हर योजना के माध्यम से मिलने वाला चावल फोर्टिफाइड कर दिया जाएगा”। महिलाओं और बच्चों के कुपोषण की समस्या के निदान हेतु चावल को फोर्टिफाइड करना एक समाधान के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।

लेकिन क्या वाकई भारत सरकार गरीबों के कुपोषण को लेकर चिंतित है ?? या बहुराष्ट्रीय कंपनियों की एजेंट बनकर दोनों मोटे धंधे में साजिधार बन गए हैं।

फोर्टीफिकेशन क्या है??/ What is fortification


फोर्टीफिकेशन एक अंग्रेजी शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है “दुर्गबन्दी या किलेबंदी” किंतु अनाज के लिए इस शब्द का प्रयोग पोषक तत्वों से अनाज को “पुष्ट” करना है।

अनाज का “फोर्टीफिकेशन”( fortification ) कैसे किया जाता है??


fortification
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प्राकृतिक रूप से कोई भी अनाज अपने गुण-धर्म अनुसार मिट्टी-सूर्यप्रकाश एवं जल से स्वयं ही पुष्टिकर्ता होता है, जैसे जामुन का फल लौह तत्व से भरपूर है, किंतु केले में उसकी मात्रा भिन्न है, आंवले में विटामिन सी के साथ कैल्शियम-आयरन भी है।
किंतु जब कृत्रिम रूप से उसपर कोई परत चढ़ा दी जाती है तो उसे अंग्रेजी के शब्द फोर्टिफाइड से अलंकृत कर दिया जाता है।

चावल को फोर्टिफाइड करने के लिए टूटे हुए चावलों का पाउडर बनाया जाता है फिर उसमें आयरन-कैल्शियम और कृत्रिम विटामिन्स का पाउडर मिला दिया जाता है, इस सबका आटा बनाने के बाद तेज गर्म चावलों पर मशीनों द्वारा इस लेप को चिपका दिया जाता है। और कृत्रिम रूप से कथित पौष्टिक चावलों का निर्माण होता है।

क्या ये चावल वास्तव में पौष्टिक हैं??


अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली(एम्स) के पेट रोग एवं मानव पोषण के वरिष्ठ डॉक्टरों ने बताया की दुनिया के किसी कोने में ऐसे चावल या अनाज खाने से किसी भी प्रकार के कुपोषण में आजतक कोई कमी नहीं आयी है।

कृत्रिम रूप से पौष्टिक किये गए चावल पोषण तो करते ही नहीं हैं बल्कि उल्टा शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं क्योंकि कृत्रिम परत चढ़े चावल अपने पूर्ण रूप से पकते ही नहीं हैं।

किस-किस खाद्य पदार्थ को फोर्टिफाइड किया जा रहा है??


देश मे अनाज को फोर्टिफाइड करने से पहले सबसे पहले समुद्री “नमक” को आयोडीन से फोर्टिफाइड किया गया। बिना आयोडीन युक्त नमक को देश मे कानूनी रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया और उसे दिमाग के लिए बेहद जरूरी बताया गया। जबकि उससे कई गुणा पौष्टिक सेंधा नमक और सांभर झील का नमक देशवासियों के भोजन से दूर करके उन्हें कुपोषित किया गया, जिस देश के हर भोजन दाल-सब्जी अनाजो में भरपूर आयोडीन था उन्हें जबरन कृत्रिम आयोडीन वाला घातक कुपोषित नमक खाने पर मजबूर किया गया।

इसके अलावा दूध को भी कृत्रिम “विटामिन डी” से फोर्टिफाइड किया जा रहा है लेकिन देश की सबसे बड़ी दूध सहकारिता कंपनी अमूल ने अपने दूध को कृत्रिम फोर्टीफिकेशन करने से ये कहते हुए मना कर दिया कि हम अपने ग्राहकों की सेहत से खिलवाड़ नही कर सकते हैं।

भारत सरकार अब बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों को कृत्रिम रूप से फोर्टिफाइड करने जा रही है।

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इतनी चीजों का फोर्टीफिकेशन/ fortification क्यों??


अगर मान लिया जाय कि देशवासियों में आयरन की कमी है तो केवल चावल का फोर्टीफिकेशन से काम क्यों नही चल सकता?? गेहूं, दालें, खाद्य तेल, दूध इतनी चीजों को फोर्टिफाय करने की क्या आवश्यकता है जबकि आजतक कोई वैज्ञानिक प्रमाण फोर्टीफिकेशन/ fortification को सही नहीं मानता बल्कि कृत्रिम पदार्थ डालने से सेहत पर घातक दुष्परिणाम ही मिले हैं।

पांच बहुराष्ट्रीय कंपनियों का धंधा।।


दुनिया मे केवल पांच बहुराष्ट्रीय कंपनियां (जर्मनी की बी ए एस एफ , स्विट्ज़रलैंड की लोनज़ा, फ्रांस की अड्सओ, नेथेरलैंड की रॉयल डी सी एम और ए डी एम ) ही कृत्रिम पोषक तत्वों की निर्माता और आपूर्तिकर्ता हैं और किसी भी देश की सरकारों के माध्यम से लॉबी बनाकर, सत्तारूढ़ पार्टियों को लालच देकर जबरन कानूनी रूप से खाद्य वस्तुओं को फोर्टिफाय कराने के लाखों करोड़ों के धंधे में लगी हुई हैं।

कुपोषण का भारतीय समाधान:


अगर भारत सरकार वास्तव में देशवासियों के कुपोषण को लेकर चिंतित है तो सरकारी राशन दुकानों के माध्यम से हर गरीब के घर मे स्वदेशी सस्ता और बेहद पौष्टिक गुड़ पहुंचा सकती थी, भारतीय गुड़ आयरन, कैल्शियम, फॉस्फोरस एवं अनेक आवश्यक विटामिन्स का सस्ता भंडार है।
देश मे करोड़ों टन गन्ने से केमिकल युक्त चीनी के स्थान पर पौष्टिक गुड़ बने और सरकार अपनी सस्ते गल्ले की दुकानों के माध्यम से अनाजो के साथ-साथ गुड़ खरीदकर भी पहुंचा सकती है। इससे लाखों कोल्हू गांव-गांव खुल जाएंगे, करोड़ों लोगों को अपने गांव में स्वरोजगार भी मिलेगा।

ना सिर्फ देश का गुड़ देशवासियों का कुपोषण दूर करता बल्कि दुनिया मे अनेक देशों के लोगों की कुपोषण की तकलीफ दूर करने का स्वदेशी,सस्ता और स्वास्थ्यवर्धक समाधान बनता।

लेकिन दुर्भाग्य से भारत सरकार ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के धंधे को चमकाने और सत्तारूढ़ पार्टी ने उन्ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों के फायदे के बदले मोटा कमीशन खाने वाले रास्ते को चुना है।

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